आखिर क्यों चुनावी गणित में हिन्दुओं-व्यापारियों को भूल रही राजनीतिक पार्टियां

Edited By Kalash,Updated: 20 Jan, 2022 11:10 AM

why political parties are forgetting hindus and businessmen in elections

देश की आजादी के बाद विभिन्न वर्गों को उनके क्षेत्र के हिसाब से प्रतिनिधित्व देकर लगातार केंद्र और राज्यों की सत्ता पर काबिज रही राजनीतिक पार्टियां चुनाव के गणित में हिन्दुओं व व्यापारियों को भूलती जा रही है

जालंधर (नरेश कुमार): देश की आजादी के बाद विभिन्न वर्गों को उनके क्षेत्र के हिसाब से प्रतिनिधित्व देकर लगातार केंद्र और राज्यों की सत्ता पर काबिज रही राजनीतिक पार्टियां चुनाव के गणित में हिन्दुओं व व्यापारियों को भूलती जा रही है। सियासत में धर्म और जाति के आधार पर उन्हें प्रतिनिधित्व और उनके मुद्दों की गंभीरता ने ही कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखा था लेकिन पंजाब विधान सभा चुनाव में पार्टी इसे भुला कर सिर्फ दलित और जाट सिख वोट की राजनीती कर रही है।

कांग्रेस ने पंजाब में मुख्यमंत्री पद के लिए चरणजीत सिंह चन्नी के नाम को आगे बढ़ाने का संकेत दे दिया है जबकि सत्ता के दूसरे बड़े केंद्र नवजोत सिंह सिद्धू बने हुए हैं जिन्हें पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया हुआ है। कांग्रेस सुनील जाखड़ के जिस तीसरे चेहरे को हिन्दू बता कर उन्हें महज बोर्ड़ों में स्थान दे रही हैं, चुनाव के बाद सरकार में उनकी भूमिका को लेकर संदेह है क्योंकि सुनील जाखड़ के परिवार से उनके भतीजे संदीप जाखड़ चुनाव लड़ रहे हैं।

पिछले चुनाव के दौरान हिन्दू वोटरों ने राज्य की व्यवस्था बदलने और उनके मुद्दे सुलझाने की उम्मीद में कांग्रेस को बंपर बहुमत दिया था लेकिन सरकार में आने के बाद कांग्रेस ने हिन्दुओं और शहरी वोटरों की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया है और इसी कारण पंजाब से उद्योग का पलायन भी हो रहा है।

सरकार का खजाना भरने के बावजूद सुविधाओं से वंचित हिन्दू
पंजाब में अढ़ाई लाख से ज्यादा उद्योग-धंधे रजिस्टर्ड हैं और इनमें से अधिकतर उद्योग-धंधे हिन्दुओं द्वारा चलाए जा रहे हैं। पंजाब के हिन्दू न सिर्फ व्यपार और उद्योग चला कर राज्य सरकार को टैक्स दे रहे हैं बल्कि पंजाब में रोजगार उपलब्ध करवाने में भी इस वर्ग की बड़ी भूमिका है। उद्योग और व्यापर चलाने वाला यह वर्ग पंजाब सरकार से किसी तरह की सब्सिडी भी नहीं लेता बल्कि उसे अपने काम करवाने के लिए अफसरों के नखरे भी झेलने पड़ते हैं लेकिन इसके बावजूद इस वर्ग को सुविधाएं न के बराबर हैं। पंजाब के उद्योगिक क्षेत्रों और फोकल प्वाइंट्स में आधारभूत सुविधाओं की भारी कमी है। सड़कें टूटी हुई हैं और सीवरेज की हालत भी अच्छी नहीं है लेकिन इसके बावजूद इस वर्ग ने पंजाब में रोजगार मुहैया करवाने और राजस्व कमाने की जिम्मेदारी को संभाला हुआ है।

चुनाव से व्यापारिक मुद्दे गायब
पंजाब में कांग्रेस घूम फिर कर मोटे तौर पर अकाली दल के शासन में हुई श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मुद्दे के अलावा, नशे के मुद्दे को दुबारा भुनाने का प्रयास कर रही है लेकिन उद्योग और व्यापर के मुद्दे कांग्रेस की चर्चा से गायब हैं। इससे पहले चुनावों से पूर्व पार्टी उद्योगिक मुद्दों पर ध्यान देती थी और उद्योग से जुड़ी संस्थाओं से विशेष फीडबैंक लेने के लिए व्यवस्था की जाती थी लेकिन इस चुनाव में व्यापारिक मुद्दे गौण नजर आ रहे हैं।

हिन्दू प्रभाव वाली सीटों पर रणनीतिक चूक
पंजाब में हिन्दू आबादी करीब 40 फीसदी है और इस आबादी में अरोड़ा, खत्री, ब्राह्मण और बनिया समुदाय के लोग आते हैं। शहरी क्षेत्रों में हिन्दू आबादी का निर्णायक वोट बैंक है और राज्य की अधिकतर शहरी सीटों पर यह वोट किसी भी उम्मीदवार को हराने या जिताने की ताकत रखते हैं लेकिन शहरी हिन्दू सीटों पर भी कांग्रेस गैर हिन्दू चेहरों को आगे कर रही है जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। गढ़शंकर की हिन्दू प्रभाव वाली सीट से अमरप्रीत सिंह लाली की उतारना बटाला सेट पर अश्वनी सेखड़ी की दावेदारी को कमजोर किया जाना और रमन बहाल का पार्टी से निराश हो कर जाना कांग्रेस के भूले चुनावी गणित का उदाहरण मात्र है।

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