Edited By Vatika,Updated: 09 Oct, 2019 09:17 AM
जहां एक तरफ पूरे भारत में विजयदशमी के दिन रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले अग्निभेंट किए जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ विजयदशमी को पंजाब के हलका पायल में 4 वेदों के ज्ञाता रावण को जलाया नहीं जाता
बीजा(बिपन): जहां एक तरफ पूरे भारत में विजयदशमी के दिन रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले अग्निभेंट किए जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ विजयदशमी को पंजाब के हलका पायल में 4 वेदों के ज्ञाता रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि उसकी विधिवत पूजा की जाती है और यह पूजा सारा दिन चलती रहती है। जहां रावण की 25 फुट की विशाल प्रतिमा स्थापित है और लोग विजयदशमी को यहां आकर रावण की पूजा करते हैं।
दूबे बिरादरी के लोग 1835 से करते आ रहे हैं विधिवत पूजा
जानकारों की मानें तो यह प्रथा 1835 से चलती आ रही है, जिसे दूबे बिरादरी के लोग निभाते आ रहे हैं। इस बिरादरी के लोग देश-विदेशों से यहां आकर रामलीला और दशहरा मेला का आयोजन करते हैं और रावण की विधिवत पूजा करते हैं, इसके साथ यहां पर बने 176 वर्ष पुराने मंदिर में भगवान श्रीराम चंद्र और लक्ष्मण, हनुमान व सीता माता की पूजा भी की जाती है।
बकरे की सांकेतिक बलि देकर उसके खून से किया जाता है रावण का तिलक
दूबे परिवार के सदस्य ने बताया कि इस मंदिर को 1835 में उनके पूर्वजों ने बनवाया था। दशहरा पर्व पर देश में रावण दहन होता है और यहां पर रावण की पूजा होती है। यहां पर रावण की प्रतिमा को शराब चढ़ाई जाती है और बकरे की सांकेतिक बलि देकर उसके खून से रावण का तिलक किया जाता है। यहां की मान्यता है कि जिसको औलाद नहीं होती वह स‘चे मन से यहां माथा टेकता है तो अगली बार वह खुशखबरी देने आता है। वहीं हलका एम.एल.ए. लखवीर सिंह लखा ने बताया कि वह बचपन से ही देखते आ रहे हैं और उनके बुजुर्गों ने ही बताया था कि इस मन्दिर का इतिहास काफी पुराना है यहां रावण का पक्का बुत बना हुआ है।