ट्रामा मरीजों को राहत : पी.जी.आई. में शुरू हुआ देश का पहला एंप्यूटी क्लीनिक

Edited By Sunita sarangal,Updated: 02 Feb, 2021 10:04 AM

country s first amputee clinic started in pgi

पहले अलग-अलग डिपार्टमैंट में जाना पड़ता था

चंडीगढ़(रवि पाल): पी.जी.आई. में अब एंप्यूटी क्लीनिक की शुरुआत हो गई है। पी.जी.आई. के डॉक्टरों की मानें तो यह देश का पहला अस्पताल बन गया है, जहां एंप्यूटी क्लीनिक खोला गया है। इस क्लीनिक में उन ट्रामा मरीजों को अच्छा इलाज मिल सकेगा, जिनके हाथ या पैर किसी एक्सीडैंट में घायल होने के बाद काट दिए जाते हैं। हालांकि पहले भी पी.जी.आई. में इलाज मिल रहा था लेकिन ट्रामा में आने के बाद उन्हें इलाज के लिए कई अलग-अलग डिपार्टमैंट में जाना पड़ता था। अब यह क्लीनिक खुल जाने से मरीजों को एक छत के नीचे सभी डिपार्टमैंट का इलाज मिल सकेगा। 

ऑर्थोपैडिक डिपार्टमैंट के हैड प्रो. एम.एस. ढिल्लों की मानें तो पी.जी.आई. डिसेबिलिटी से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए एक बैस्ट अस्पताल बन सकेगा। जहां मरीजों को सभी तरह का बेहतर इलाज मिलेगा। पी.जी.आई. डायरैक्टर डॉ. जगतराम ने बताया कि यह पी.जी.आई. के लिए एक बड़ी अचीवमैंट है, मरीजों को और ज्यादा सहूलियत मिलेगी। इस तरह की सुविधा देश में कहीं नहीं है। ट्रॉमा में रोजाना कई केस आते हैं जिसमें मरीज को अपने हाथ या पैर खोने पड़ते हैं। ऐसे में इलाज के लिए घूमना नहीं पड़ेगा।

6 डिपार्टमैंट को किया एक साथ
डॉ. ढिल्लों ने बताया कि सभी सर्विस को एक-एक जगह क्लब किया गया है, जिसमें मरीज को ऑर्थोपैडिक, फिजिकल एंड मेडिकल रिहैबिलिटेशन, ऑक्यूपेशनल थैरेपी, प्रोस्थेटिक, साइकोलॉजिस्ट और नर्सिंग डिपार्टमैंट की सर्विस को एड कर दिया गया है। पी.जी.आई. में पहले से नी-स्कूल चल रहा है। उसी की तरह इसे भी चलाया जाएगा। जहां मरीज के साथ इंटरैक्ट कर सकेंगे। उनकी काऊंसलिंग और एक जैसे केस को भी समझा जा सकेगा। आजकल आर्टिफिशियल लिंब बनाना ऑर्थोपैडिक का काम नहीं रह गया है। इसमें आजकल जनरल सर्जन्स, प्लास्टिक सर्जन्स, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट, ओर्थोटिस्ट्स और प्रोस्थेटिस्ट साथ ही साइकेट्रिस्ट, पोस्ट ऑपरेटिव रिहेब का भी इसमें योगदान रहता है।

मरीजों के साथ डॉक्टरों को भी होगा फायदा
मरीज को अलग-अलग डिपार्टमैंट में रैफर करने से मरीज का स्ट्रैस बढ़ता है। शरीर का कोई भी अंग खोना आसान नहीं है। बॉडी से ज्यादा मैंटल लैवल पर इसका असर पड़ता है। मरीजों के साथ ही डॉक्टरों को भी डाटाबेस इकट्ठा करने में फायदा होगा। जोकि उनकी फ्यूचर रिसर्च में एक बड़ा योगदान देगा। हालांकि इन मरीजों पर कोई ज्यादा स्टडी नहीं हुई है। 

कर रहे अवेयर
डॉक्टरों के मुताबिक मरीजों को इसके बारे में अवेयर करने के लिए प्रिंटेड बुकलेट्स, गवर्नमैंट एजैंसीज की मदद ली जाएगी। पी.जी.आई. ने एक हैल्प लाइन और फेसबुक पेज पहले ही शुरू कर दिया है।

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