नगर निगम की नई वार्डबंदी पर बठिंडा में सियासी घमासान, सात दिनों में 78 आपत्तियां दर्ज, पढ़ें पूरी खबर

Edited By Vatika,Updated: 31 Dec, 2025 09:30 AM

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नगर निगम बठिंडा द्वारा आगामी निगम चुनावों के मद्देनज़र जारी की गई नई

बठिंडा (विजय वर्मा): नगर निगम बठिंडा द्वारा आगामी निगम चुनावों के मद्देनज़र जारी की गई नई वार्डबंदी का प्रारूप लगातार विवादों में घिरता जा रहा है। सरकार की ओर से आपत्तियां और सुझाव देने के लिए केवल सात दिनों का समय तय किया गया था। इसी सीमित अवधि में मंगलवार तक राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और आम नागरिकों की ओर से कुल 78 लिखित आपत्तियां नगर निगम कार्यालय में दर्ज कराई जा चुकी हैं। इससे साफ है कि प्रस्तावित वार्डबंदी को लेकर शहर में असंतोष लगातार गहराता जा रहा है।

नगर निगम की ओर से महज एक माह के भीतर कराए गए सर्वे को लेकर विपक्षी दलों ने शुरू से ही सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि वार्डों के निर्धारण में भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या घनत्व और जनगणना के आधिकारिक आंकड़ों को नजरअंदाज किया गया। राजनीतिक दलों का कहना है कि वार्डों का गठन निष्पक्ष और संतुलित तरीके से करने के बजाय राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता देकर किया गया है।

आबादी का असंतुलन बना बड़ा मुद्दा
राजनीतिक दलों और आम लोगों की आपत्तियों में सबसे बड़ा मुद्दा वार्डों की आबादी में भारी असमानता का है। कई प्रस्तावित वार्डों में जहां आबादी सात हजार से अधिक बताई गई है, वहीं कुछ वार्ड ऐसे भी हैं जिनकी आबादी मात्र दो से तीन हजार के बीच रखी गई है। आपत्ति जताने वालों का कहना है कि इससे प्रतिनिधित्व की समानता प्रभावित होगी और एक पार्षद पर मतदाताओं का दबाव असमान रूप से बढ़ेगा।

रिजर्वेशन प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल
नई वार्डबंदी में आरक्षण को लेकर भी तीखा विरोध दर्ज किया गया है। आरोप है कि अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की वास्तविक आबादी को नजरअंदाज कर वार्डों का पुनर्विभाजन किया गया। आम तौर पर जिन क्षेत्रों में एससी या बीसी वर्ग की संख्या अधिक होती है, उन्हें उसी वर्ग के लिए आरक्षित किया जाता है, लेकिन इस प्रारूप में कई ऐसे वार्डों को जनरल कर दिया गया है, जहां एससी आबादी अधिक है। वहीं, सामान्य वर्ग के मतदाताओं की संख्या अधिक होने वाले कुछ वार्डों को आरक्षित कर दिया गया है।

विपक्षी दलों का एक सुर में विरोध
शिरोमणि अकाली दल, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों ने इस वार्डबंदी को पक्षपातपूर्ण करार दिया है। अकाली दल के हलका इंचार्ज बबली ढिल्लों ने कहा कि नए वार्ड बंटवारे में न तो आबादी का संतुलन रखा गया है और न ही भौगोलिक एकरूपता। उन्होंने आरोप लगाया कि कई वार्डों में आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ की गई है और रिजर्वेशन भी मनमाने ढंग से तय किया गया है। भाजपा के जिला प्रधान सरूपचंद सिंगला ने कहा कि निगम ने आपत्तियां दर्ज कराने के लिए बेहद कम समय दिया, जिससे आम जनता और राजनीतिक दलों को तथ्यों के साथ अपनी बात रखने में परेशानी हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरी प्रक्रिया सत्ताधारी दल के हितों को ध्यान में रखकर जल्दबाजी में पूरी की गई है।कांग्रेस के जिला शहरी प्रधान राजन गर्ग ने कहा कि सत्ताधारी ‘आप’ सरकार ने वार्डबंदी में निष्पक्षता के सभी मानकों को दरकिनार कर दिया है। उन्होंने कहा कि लोगों में भारी रोष है और यदि निगम ने दर्ज 78 आपत्तियों पर गंभीरता से विचार नहीं किया तो कांग्रेस पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट जाने से पीछे नहीं हटेगी।

नगर निगम दफ्तर में जारी है आपत्तियों का सिलसिला
नगर निगम अधिकारियों के अनुसार, मंगलवार तक कुल 78 आपत्तियां प्राप्त हो चुकी हैं और अभी भी लोग अपने एतराज दर्ज कराने के लिए निगम कार्यालय पहुंच रहे हैं। नियमानुसार, आपत्तियों की अवधि समाप्त होने के बाद इन सभी आपत्तियों को एक कमेटी के समक्ष रखा जाएगा। कमेटी द्वारा विचार-विमर्श के बाद यदि वार्डबंदी के प्रारूप में किसी तरह के बदलाव की आवश्यकता महसूस होती है तो सरकार को पुनः प्रस्ताव भेजा जाएगा। वहीं, यदि तय प्रारूप को ही सही माना गया तो कमेटी की मंजूरी के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा।

कानूनी दायरे में जारी अधिसूचना
गौरतलब है कि पंजाब सरकार के स्थानीय सरकार विभाग ने नगर निगम बठिंडा में नई वार्डबंदी को लेकर अधिसूचना जारी की है। यह अधिसूचना पंजाब म्यूनिसिपल एक्ट, 1976 की धारा 8 तथा डिलिमिटेशन ऑफ वार्ड्स ऑफ म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑर्डर, 1995 की धारा 7 के तहत जारी की गई है। अधिसूचना के अनुसार नगर निगम बठिंडा को नगर पार्षदों के चुनाव के लिए कुल 50 वार्डों में विभाजित करने का प्रस्ताव है, जिनमें अनुसूचित जातियों, महिलाओं, अनुसूचित जाति की महिलाओं और पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के लिए आरक्षण निर्धारित किया गया है। अब यह देखना अहम होगा कि नगर निगम और राज्य सरकार इन 78 आपत्तियों को कितनी गंभीरता से लेती है। यदि विरोधी दलों और जनता की मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो यह मामला केवल सियासी विवाद तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कानूनी लड़ाई का रूप भी ले सकता है।

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