Edited By somnath,Updated: 22 Jul, 2019 03:09 PM
जालंधर (सोमनाथ): भारतीय संविधान के भाग-3 में आर्टिकल 12 से 35 तक मूल अधिकारों का वर्णन है। आर्टिकल 15 कहता है कि राज्य अपने किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, नस्ल और जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा लेकिन यह एक तल्ख सच्चाई है कि संविधान लागू होने के 69 साल बाद भी कई घटनाएं हमारे सामने आ जाती हैं, जिनमें आज भी निचली जातियों को राजनीति के चश्मे से देखा जाता है, खासकर कई पुलिस थानों में। यही कारण है कि गत वर्ष पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश भी दिया है कि एफ.आई.आर. लिखते समय किसी भी आरोपी की जाति नहीं लिखी जाएगी।
दलितों पर अभी भी जारी है ज्यादतियां
हाल ही में पर्दे पर आई फिल्म ‘आर्टिकल-15’ ने एक बार फिर से इस बात पर चर्चा शुरू कर दी है कि दलितों पर आज भी ज्यादतियां खत्म नहीं हुई हैं। भले ही यह फिल्म उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के कटरा गांव में मई, 2014 में घटी गैंगरेप की एक घटना और पुलिस अधीक्षक द्वारा आर्टिकल 15 पर पहरा देने पर आधारित है लेकिन यह कहानी सिर्फ उत्तर प्रदेश की नहीं है। यह तो वो मामला है जो मीडिया में सामने आया है फिल्म बना दी गई। देश के दूसरे राज्यों सहित पंजाब में भी दलितों के उत्पीडन से जुड़े कई केस ऐसे हैं जहां पर संविधान से खिलवाड़ की बात सामने आती है। कई केस तो ऐसे होते हैं कि जिसमें इज्जत तार-तार हो जाती है और चर्चा भी नहीं होती । यह कहानी बयां करता है पंजाबी यूनिवर्सिटी का एक शोधपत्र। आर्टिकल-15 को समझने से पहले इसकी पृष्ठभूमि में भी जानना जरूरी है।
यू.एन.ओ. तक दलितों के उत्पीडन का मामला
आर्टिकल-15 अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए बनाया गया था। आजादी से पहले लंदन की ऐतिहासिक गोलमेज परिषद से लेकर आजादी के बाद पंजाब के तल्हण कांड को लेकर यू.एन.ओ. तक दलितों के उत्पीडन का मामला गूंज चुका है लेकिन यह उत्पीडन आज भी बदस्तूर जारी है।
यह है फिल्म आर्टिकल-15 की पटकथा
फिल्म की पटकथा अनुसार अपर पुलिस अधीक्षक अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) की यहां पोस्टिंग होती है वहां सिपाहियों में कोई ब्राह्मण है तो कोई ओ.बी.सी. तो कोई दलित। ब्राह्मणों में भी ऊंच-नीच है तो दलितों में भी। गांव से 3 दलित लड़कियां गायब हैं। 2 लड़कियों की लाश अगले दिन पेड़ से टंगी मिलती है। एक लड़की का पता नहीं चलता। अयान इस मामले की छानबीन शुरू करता है तो उसे समझ में आता है कि दलितों के साथ कितना अन्याय हो रहा है। इन लड़कियों के साथ गैंगरेप हुआ है और उनकी गलती इतनी है कि उन्हें मजदूरी 3 रुपए बढ़ाने की मांग की थी।
पुलिस अधिकारी अयान एक अधिकारी से बैठकर बात कर रहे हैं-‘‘सर ये 3 लड़कियां अपनी दिहाड़ी में सिर्फ 3 रुपए अधिक मांग रही थीं सिर्फ 3 रुपए..जो मिनरल वाटर आप पी रहे हैं, उसके 2 या 3 घूंट के बराबरउनकी इस गलती की वजह से उनका रेप हो गया,उनको मारकर पेड़ पर टांग दिया गया ताकि पूरी जाति को उनकी औकात याद रहे’’इस कहानी में राजनीति और पुलिस को भी लपेटा गया है। ऊंची जाति और नीची जाति के भेद पर सियासी रोटियां सेंकी गईं और दलित नेताओं को भी नहीं छोड़ा गया है। ये दलित नेता सत्ता पाते ही बुत बनवाने लग जाते हैं और विपक्ष में आते ही दलित बन जाते हैं। जैसे संवाद सुनने को मिलते हैं, यह दलितों को भी संदेश देती है कि यदि वे हिंसा के रास्ते पर चलेंगे तो नुक्सान उनका ही होगा। गायब लड़की को तलाशते हुए अयान के जरिए फिल्म आगे बढ़ती है। गंदगी से भरे चैंबर में सफाई कर्मी डुबकी लगाता है ताकि शहर स्वच्छ रहे लेकिन उसको कभी भी इस काम की सराहना तो दूर सुरक्षा के उपकरण भी नहीं मिलते। अयान के अपने साथियों के साथ बातचीत वाले दृश्य भी बेहतरीन बन पड़े हैं। मामला जब बढ़ जाता है तो सी.बी.आई. ऑफिसर आता है और अयान से सवाल-जवाब करता है। फिल्म में संवाद अदायगी बहुत ही शानदार है। फिल्म में एक संवाद है-हम हमेशा हीरो की राह ही क्यों देखते हैं। यह एक और उम्दा संवाद है-‘यदि सभी समान हो गए तो राजा कौन बनेगा?’ इसका जवाब भी दिया गया है-‘राजा की जरूरत ही क्या है?’
पंजाबी यूनिवर्सिटी का शोध पत्र
पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी के एक शोध पत्र के मुताबिक अक्सर गांवों के खेतों में महिलाओं को शोषण से भरे माहौल में जबरन काम करना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में 15 लाख मजदूर खेतों में काम करते हैं। ग्रामीण और कृषि अर्थशास्त्र के जानकार प्रोफैसर ज्ञान सिंह और उनकी टीम ने पंजाब के 11 जिलों के 1017 घरों से प्राइमरी डाटा इकट्ठा किया है। अप्रैल, 2019 में जारी किए गए उनके विश्लेषण के मुताबिक यहां काम करने वाली 70 प्रतिशत महिलाओं ने माना है कि उनका यौन शोषण हुआ लेकिन वे इस बारे में चुप थीं। इनमें से कई को जातिगत भेदभाव की वजह से उत्पीडन झेलना पड़ा। सामाजिक और आर्थिक वजहों से वे यह दंश झेलने को मजबूर हैं। उनमें से लगभग सभी कर्ज का बोझ झेल रही हैं। अपने साथ हो रही ज्यादती का वे इसलिए विरोध नहीं कर पा रही हैं क्योंकि उन्हें अपनी मजदूरी छिनने का डर है। यहां तक कि उन्हें न्यूनतम से कम मजदूरी मिल रही है फिर भी वे मजबूर हैं।
जमीनी हकीकत से जुड़े किस्से
संविधान की रचना इस आधार पर की गई है कि देश के किसी नागरिक के साथ भेदभाव न हो लेकिन यह सच्चाई है कि संविधान में लिखित तथ्यों का जमीनी स्तर पर पालन नहीं हो पाता। उदाहरण के तौर पर कुछ घटनाएं ऐसी हैं जो खुद जमीनी हकीकत बयां कर रही हैं।
केस 1. बीनेवाल गैंगरेप
जिला होशियारपुर के कस्बा बीनेवाल की एक लड़की की लाश कस्बे के साथ लगती हिमाचल प्रदेश की सीमा पर एक पेड़ के साथ लटकी मिली थी। घटना 2015 की है और लड़की दलित परिवार से थी, जबकि लड़कों का संबंध ऊंची जाति से था। मामले को दबाने की कोशिशें भी हुईं। धरने प्रदर्शन भी हुए। अंतत: कोर्ट द्वारा तीनों दोषियों को सजा सुनाई गई जोकि अब जेल में हैं।
केस 2. जालंधर का तलहण कांड
वर्ष 2003 में जालंधर का तलहण कांड किसी से छिपा नहीं है। गुरुद्वारा साहिब के प्रबंधन को लेकर उपजा विवाद दलितों के बायकॉट से लेकर बूटा मंडी के रहने वाले दलित युवक विजय कुमार काला की पुलिस फायरिंग में हत्या तक पहुंच गया था। इस दौरान कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। विदेशों में बसते दलित भाईचारे द्वारा यू.एन.ओ. तक दलितों के बायकॉट का मामला उठाया गया।
केस 3. माछीवाड़ा में सगे भाइयों का एनकाऊंटर
माछीवाड़ा के गांव भोआपुर में दो सगे दलित भाइयों हरिन्द्र सिंह और जतिन्द्र सिंह का सितम्बर 2014 में एनकाऊंटर कर दिया गया। मामला राजनीति से प्रेरित था। सी.बी.आई. जांच तक की मांग उठी। मामला अन्य धाराओं सहित ‘द शैड्यूलड कास्ट एंड शैड्यूलड ट्राइब (प्रीवैंशन ऑफ अट्रासिटी) एक्ट के तहत दर्ज किया गया।
केस 4. भीम हत्याकांड
दिसम्बर, 2015 अबोहर में भीम टांक के हाथ-पैर काट दिए गए। इस मामले में मुख्य आरोपी को बचाने के लिए बड़ा सियासी खेल खेला गया। कई बड़े राजनेताओं ने इस केस को दबाने की कोशिश की। मुख्यारोपी को हर हाल में बचाने की कोशिशें की गईं लेकिन मामला मीडिया में उछलने के बाद आरोपियों की गिरफ्तारियां संभव हुईं। भीम टांक का संबंध दलित परिवार से था।
केस 5. पटियाला में दलित महिला से दुष्कर्म
पटियाला में अप्रैल 2018 को एक दलित महिला के साथ हुए 6 लोगों द्वारा दुष्कर्म किया गया। गैंगरेप के मामले में पुलिस की कारगुजारी पर सवाल खड़े हुए। गैंगरेप के आरोपी राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली थे और शंभू पुलिस स्टेशन में रेप और एस.सी./एस.टी. एक्ट के तहत केस दर्ज होने के बावजूद काफी दिनों तक
आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई।
क्या कहना है एडवोकेट का
आर्टिकल-15 के तहत राज्य, किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, नस्ल और जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। जहां तक अनुच्छेद के लागू होने और सजा की बात है तो इसके लिए ‘द शैड्यूलड कास्ट एंड शैड्यूलड ट्राइव (प्रीवैंशन ऑफ अट्रासिटी) एक्ट-1989 के तहत केस दर्ज हो सकता है जिसमें 5 साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। साथ ही पीड़ित को तीन चरणों में मुआवजे का प्रावधान है। -एडवोकेट इंद्रजीत सिंह