Jalandhar के सिविल अस्पताल के इस विभाग के Doctor की कार्य प्रणाली शक के घेरे में!

Edited By Vijay,Updated: 26 Sep, 2024 03:55 PM

jalandhar civil hospital

किसी न किसी बात को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले सिविल अस्पताल के

जालंधर (रत्ता): किसी न किसी बात को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले सिविल अस्पताल के रेडियोलोजी विभाग के एक डॉक्टर का अब ऐसा किस्सा सामने आया है जो कि न केवल हैरान कर देने वाला है बल्कि उक्त डाक्टर की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह भी लगता है। मामला यह है कि उक्त डाक्टर ने लड़ाई झगड़े के केस में पहले तो चोटिल व्यक्ति की ग्रीवियस रिपोर्ट बना दी लेकिन अगले ही दिन उसी चोटिल व्यक्ति की सिंपल रिपोर्ट बना दी। जानकारी के मुताबिक लड़ाई झगड़े में चोटिल हुए एक व्यक्ति ने 6 फरवरी को सरकारी स्वास्थ्य केंद्र जंडियाला में एम एल आर कटवाई। एम एल आर काटने वाले मेडिकल ऑफिसर ने उस चोटिल व्यक्ति को एक्स-रे तथा सी टी स्कैन करवाने के लिए सिविल अस्पताल जालंधर रेफर कर दिया।
     
उक्त चोटिल व्यक्ति ने जब सी टी स्कैन करवाई तो रेडियोलॉजी विभाग के उक्त डाक्टर ने 6 फरवरी को एंट्री नंबर एमपीएस/75/सीएचजे/24 के मुताबिक उसकी ग्रीवियस रिपोर्ट बना दी और उसके बाद यां तो शायद डॉक्टर साहब भूल गए यां फिर उन्होंने न जाने किस निजी हित में उसी व्यक्ति की 7 फरवरी को एंट्री नंबर एमपीएस/84/सीएचजे/24 के मुताबिक सिंपल रिपोर्ट बना दी। इसके उपरांत जब मई महीने में मामला सिविल सर्जन के पास पहुंचा तो उन्होंने पूरे मामले की जांच करने के लिए सहायक सिविल सर्जन की अध्यक्षता में एक बोर्ड गठित कर दिया। बोर्ड ने जब उक्त चोटिल व्यक्ति को जांच के लिए बुलाकर उसकी दोबारा सी टी स्कैन करवाई तो उसमें कहीं भी कोई फ्रैक्चर नजर नहीं आया। बोर्ड ने जब रिपोर्ट बनाने वाले डॉक्टर को जांच के लिए बुलाया तो उसने लिखती रूप में इस बात को कबूल किया कि दो बार एंट्री होने के कारण उसके द्वारा ही उक्त व्यक्ति की दो रिपोर्ट्स बन गई थी। 

बोर्ड ने जांच के बाद अपनी रिपोर्ट तत्कालीन सिविल सर्जन को सौंप दी और उसमें लिखा था कि सिविल अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग के उक्त डाक्टर ने इस बात को लिखित रूप में कबूल किया है कि दो बार एंट्री हो जाने तथा काम का बहुत ज्यादा होने के कारण उससे अलग-अलग दो रिपोर्ट्स बन गई थी इसलिए पहली रिपोर्ट (ग्रीवियस) को खारिज कर दिया जाए तथा दूसरी रिपोर्ट (सिंपल) को सही माना जाए। उधर इस बारे में जब रेडियोलॉजी विभाग के उक्त डॉक्टर से टेलीफोन पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि चोटिल व्यक्ति ने अलग-अलग दिन आकर उनके पास एंट्री करवाई थी इसलिए उसकी दो रिपोर्ट्स बन गई। णब सोचने की बात यह है कि अगर डॉक्टर साहब की बात मान भी ली जाए तो सवाल यह पैदा होता है कि आखिर उन्होंने एक ही व्यक्ति की पहली एंट्री की ग्रीवियस तथा दूसरी एंट्री की सिंपल रिपोर्ट किस कारण बनाई।


 आखिर सिविल सर्जन ने ठंडे बस्ते में क्यों डाला मामला !
उक्त मामले में संबंधित डॉक्टर ने जांच कमेटी के सामने जहां इस बात को लिखती रूप में कबूल कर लिया कि दो बार एंट्री होने के कारण दोनों रिपोर्ट्स ( ग्रीवियस एवं सिंपल) उसी ने बनाई है वही तत्कालीन सिविल सर्जन साहब ने उक्त कथित दोषी डॉक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बजाय न जाने किस कारण मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। ऐसे में उक्त डाक्टर की कार्यप्रणाली तो शक के घेरे में आ ही गई साथ ही सिविल सर्जन साहब की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया।


ऐसी और भी कई रिपोर्ट्स बनाई होगी डॉक्टर साहब ने !
लड़ाई झगड़े के केस में अगर उक्त डाक्टर साहब पहले ग्रीवियस और फिर खुद ही सिंपल रिपोर्ट बना सकते हैं तो हो सकता है कि उन्होंने कई केसों में पहले तो सिंपल रिपोर्ट दे दी हो लेकिन बाद में उसे बदलकर ग्रीवियस कर दिया हो। यह सभी को पता है कि अगर किसी की रिपोर्ट सिंपल बनती है तो सामने वाली पार्टी पर कानून की कोई संगीन धारा नहीं लगती और अगर उसी की ग्रीवियस रिपोर्ट बन जाए तो सामने वाली पार्टी कानून के शिकंजे में आ जाती है।

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