किसान आंदोलन: बुजुर्ग किसानों के लिए अब यह फ्री सेवा हुई शुरू

Edited By Tania pathak,Updated: 23 Jan, 2021 10:10 AM

kisan agitation now this free service started for elderly farmers

दिल्ली बॉर्डर पर कृषि कानूनों को रद्द करवाने को लेकर चल रहे आंदोलन में दिन-रात

चंडीगढ़ (अविनाश पांडेय): सिंघू बॉर्डर पर ठंड में आंदोलन पर बैठे किसानों को खाने-पीने के साथ ही अब फ्री वाहन सुविधा भी मिल रही है। करीब 10 किलोमीटर की दूरी तक फैले इस आंदोलन में एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए अब ई-रिक्शा सहारा बना हुआ है। बताया गया कि पंजाब से करीब 15 ई-रिक्शा बॉर्डर पर लाए गए हैं जो आंदोलन स्थल के शुरूआती प्वाइंट से लेकर कुंडली बॉर्डर तक किसानों को पहुंचा रहे हैं। ई-रिक्शा का सबसे ज्यादा फायदा बुजुर्गों, महिलाओं व बच्चों को मिल रहा है। 

ई-रिक्शा चलाने वालों की मानें तो यह भी लंगर की तरह ही एक सेवा है जो किसानों के लिए की जा रही है। ई-रिक्शा सेवा में लगे लोगों का कहना है कि वे सभी किसी न किसी तरह से सेवा के कार्यों में लगे हुए हैं और अपने बुजुर्गों का ख्याल भी रख रहे हैं।

अरदास के लिए नहीं मंदिर और गुरुद्वारे की जरूरत
चंडीगढ़ (अर्चना सेठी): 52 साल के हरजीत सिंह और भोला का कहना है कि सुबह 4 बजे नहाकर सबसे पहले अरदास कर लोगों की तंदरुस्ती के लिए कामना करते हैं। शाम के समय रहीरास का पाठ कर सरबत का भला मांगते हैं। उनका कहना है कि अरदास के लिए मंदिर या गुरुद्वारे की जरूरत नहीं होती। जब इंसान सच्चे मन के साथ कहीं भी बैठकर जाप करता है तो वह स्थान भी तीर्थ ही बन जाता है।
‘कनाडा से आई महिलाओं ने आंदोलन के समर्थन में भरी हुंकार’
किसान आंदोलन की गूंज सात समंदर पार बैठे किसानों के परिजनों को भी सुनाई पड़ रही है। यही वजह है कि पंजाब के मानसा निवासी एक किसान का परिवार सिंघू बॉर्डर पर आंदोलन देखने के लिए पहुंचा। कनाडा से आई महिलाओं ने कहा कि वे रोज मीडिया में आ रही खबरों से आंदोलन के बारे में जानकारी ले रही थीं लेकिन उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है। उनका कहना है कि किसानों की मांगें जायज हैं और केंद्र सरकार को अब बिना देर किए तीनों कृषि कानून वापस ले लेने चाहिएं।

टी.वी. की सुविधा के साथ ट्राली में बना बैडरूम
बॉर्डर पर यूं तो टैंट में रहने वालों की भरमार है पर जगह की कमी के चलते अब लोगों ने ट्राली को ही बैडरूम बना लिया है। खास बात यह है कि ट्राली में टी.वी. के साथ डिश भी लगाई गई है जहां जरूरी खबरों के साथ-साथ बच्चे कार्टून भी देखते हैं। लुधियाना निवासी परमिंद्र सिंह का कहना है कि 22 दिनों से आंदोलन में आए हैं लेकिन टी.वी. नहीं होने के चलते उन्हें दिक्कत हो रही थी। उनका कहना है कि गत दिनों उनके परिवार से महिलाएं और बच्चे भी बॉर्डर पर आए तो उनकी जिद्द पर अस्थायी तौर से डिश लगाकर ट्राली में ही बेहतर बैडरूम तैयार किया गया। टी.वी. लगने के बाद अब बच्चों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो रही है और वे दिनभर कार्टून देखकर लुत्फ उठा रहे हैं।

बचपन से ही मिली है लंगर में सेवा की प्रेरणा
दिल्ली बॉर्डर पर कृषि कानूनों को रद्द करवाने को लेकर चल रहे आंदोलन में दिन-रात लंगर सेवा चल रही है। लंगर में सेवा करने के लिए सेवादारों की टीम दिनों-दिन बढ़ रही है। सिंघू बॉर्डर पर अब पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भारी तादाद नजर आ रही है। पंजाब-हरियाणा के अलावा दिल्ली के कई परिवारों की महिलाएं हर रोज सेवा के लिए आंदोलन स्थल पर आती हैं और शाम को वापस चली जाती हैं। महिलाओं का कहना है कि उन्हें लंगर में सेवा करने के लिए बचपन से ही प्रेरणा मिली है, जिसके लिए वे हर समय तैयार रहती हैं। लंगर में सेवा करने वाली महिलाओं की मानें तो इससे बड़़ी कोई सेवा नहीं है और जब तक यह आंदोलन चलेगा तब तक वे इसी तरह से सेवा करती रहेंगी।

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