Edited By Kalash,Updated: 31 Dec, 2025 01:25 PM

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन और हैडफोन हमारी जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुके हैं।
बरनाला (विवेक सिंधवानी, रवि): आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन और हैडफोन हमारी जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन इसके साथ ही कानों की बीमारियों के मरीजों में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। ई.एन.टी. (नाक, कान और गला विशेषज्ञ) डॉ. गौरव ग्रोवर ने इस विषय पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए लोगों को सचेत किया है।
मोबाइल और हैडफोन की बढ़ती आदत और इसके प्रभाव
डॉ. ग्रोवर के अनुसार, जब हम लंबे समय तक हैडफोन या इयरफोन का उपयोग करते हैं, विशेषकर तेज आवाज में, तो यह सीधे कान के पर्दे और अंदरूनी नसों पर दबाव डालता है। कान के अंदर बेहद नाजुक सेल होते हैं जो आवाज को दिमाग तक पहुंचाते हैं। लगातार तेज आवाज इन सैल्स को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे सुनने की क्षमता कम हो सकती है।
मुख्य लक्षण, जिन्हें नजरअंदाज न करें
डॉक्टर ने बताया कि यदि आप निम्न लक्षण महसूस कर रहे हैं, तो यह कानों की कमजोरी का संकेत हो सकता है:
टिन्निटस: कानों में लगातार सूं-सूं या घंटी जैसी आवाज आना।
कान में भारीपन: ऐसा महसूस होना जैसे कान बंद हों।
सिरदर्द और चक्कर: ज्यादा देर तक फोन उपयोग करने पर सिर भारी रहना।
सुनने में मुश्किल: सामने वाले की बात साफ न सुनाई देना या बार-बार पूछना।
बचाव के उपाय और सावधानियां
इस समस्या से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:
60/60 नियम: आवाज को कभी भी 60% से अधिक न रखें और दिन में 60 मिनट से अधिक हैडफोन न लगाएं।
स्पीकर फोन का उपयोग: लंबी कॉल के लिए मोबाइल को कान से लगाकर रखने के बजाय स्पीकर फोन इस्तेमाल करें।
क्वालिटी का ध्यान: अच्छी कंपनी के ‘नॉइज कैंसिलिंग’ हैडफोन इस्तेमाल करें ताकि बाहर की आवाज रोकने के लिए वॉल्यूम न बढ़ाना पड़े।
ब्रेक लें: यदि काम के लिए हैडफोन लगाना जरूरी है, तो हर आधे घंटे बाद 5-10 मिनट का ब्रेक लें।
कान में किसी भी प्रकार की तकलीफ होने पर स्वयं इलाज करने या तेल डालने की बजाय तुरंत किसी ई.एन.टी. विशेषज्ञ से जांच करवाएं। समय पर जांच करवाने से सुनने की क्षमता को खराब होने से बचाया जा सकता है। याद रखें इलाज से बेहतर परहेज है।
अपने शहर की खबरें Whatsapp पर पढ़ने के लिए Click Here