कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनेगी वाटर मीटर पालिसी

Edited By Sunita sarangal,Updated: 29 Jan, 2020 09:08 AM

water meter policy will be a headache for congress

लाचार निगम कैसे लगवा पाएगा शहर में 3.50 लाख नए वाटर मीटर

जालंधर(खुराना): कांग्रेस को पंजाब की सत्ता में आए 3 साल और निगम पर शासन करते हुए 2 साल हो चुके हैं परंतु इस कार्यकाल दौरान जालंधर नगर निगम की लगातार बिगड़ रही हालत किसी से छिपी हुई नहीं है। खुद आर्थिक तंगी का सामना कर रही पंजाब सरकार ने 3 साल में अपने विधायकों और निगम को एक फूटी कौड़ी तक नहीं दी है वहीं दूसरी ओर नगर निगम ने भी अपनी आय के साधन बढ़ाने हेतु कोई प्रयास नहीं किया। इसी का फल है कि आज जालंधर निगम से न सफाई हो पा रही, न सीवरेज समस्या का हल निकल रहा है, न टूटी सड़कें बन पा रही हैं और न ही स्ट्रीट लाइटों का इंतजाम हो पा रहा है।

ऐसी स्थिति में जालंधर निगम द्वारा पंजाब सरकार के प्रैशर में आकर नई वाटर मीटर पालिसी लागू तो कर दी गई है पर यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी सिरदर्दी साबित होने जा रही है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार नई वाटर मीटर पालिसी के तहत निगम को शहर में 3.50 लाख नए वाटर मीटर लगवाने होंगे और यह काम निगम के लिए असंभव दिख रहा है।

सर्फेस वाटर के लिए जरूरी है वाटर मीटर पालिसी
अकाली-भाजपा सरकार ने ब्यास दरिया के पानी को जालंधर तक लाकर इसे पीने योग्य बनाने हेतु सर्फेस वाटर प्रोजैक्ट शुरू किया था, जिसे कांग्रेस सरकार ने अपने हिसाब से बदल दिया है। अब यह प्रोजैक्ट जहां स्मार्ट सिटी के 800 करोड़ रुपए खर्च करके होगा वहीं 800 करोड़ की मैचिंग ग्रांट का प्रबंध एशियन डेवलपमैंट बैंक से ऋण लेकर किया जाएगा, जिसकी शर्तों के आधार पर शहर में हर वाटर कनैक्शन पर मीटर लगाना अनिवार्य है। जालंधर में सर्फेस वाटर प्रोजैक्ट कछुए की चाल से चल रहा है और इस हिसाब से वाटर मीटर पालिसी भी अगली सरकार ही आकर लागू करेगी।

हर घर पर पड़ेगा हजारों रुपए का आर्थिक बोझ
जो निगम वर्तमान में हजारों लोगों से वाटर बिल के दो-चार सौ रुपए भी नहीं वसूल पाता, उस निगम में आते हजारों नहीं बल्कि 3.50 लाख से ज्यादा घरों व संस्थानों को अगर वाटर मीटर लगवाने पड़ें तो उन पर आने वाला हजारों रुपए का खर्च लोग बर्दाश्त करने में आनाकानी करेंगे ही क्योंकि निगम ने लोगों को पानी का बिल देने की आदत ही नहीं डाली। घरेलू वाटर मीटर लगाने पर जहां एक सामान्य परिवार को करीब 3000 रुपए देने होंगे वहीं कमर्शियल मीटर इससे कई गुणा ज्यादा कीमत पर पड़ेंगे। लाखों लोगों पर पड़ रहा यह आर्थिक बोझ पहले से ही कमजोर स्थिति में चल रही कांग्रेस कैसे वहन कर पाएगी, यह देखने वाली बात होगी।

निगम के पास न स्टाफ है और न ही मंजूरशुदा प्लम्बर
वाटर मीटर पालिसी के तहत जहां निगम को शहर में 3.50 लाख से ज्यादा वाटर मीटर लगवाने होंगे वहीं एक लाख से ज्यादा अवैध कनैक्शनों को भी रैगुलर करना होगा। इस हेतु निगम के पास कुल मिलाकर 35 व्यक्तियों का स्टाफ है जो 10 लाख की आबादी वाले शहर में पानी के बिल बनाता भी है, बांटता भी है और वसूलता भी है। निगम के पास मात्र 10 मंजूरशुदा प्लम्बर हैं, जो यदि दिन में 100 नए वाटर मीटर भी लगाएं तो उन्हें काम पूरा करने में वर्षों लग सकते हैं। इसलिए मांग उठ रही है कि यह सारा काम प्राइवेट कम्पनी के हवाले कर दिया जाए, जो नए सिरे से सारा डाटा क्रिएट करे और खुद वसूली भी करे। इस ओर अभी कांग्रेसियों ने सोचा तक नहीं है। 

शहर का डाटा
रिहायशी घर : 3 लाख
कमर्शियल यूनिट : 70 हजार
इंडस्ट्री : 15 हजार

लगे हुए वाटर मीटर 
रिहायशी घर : 2 हजार
कमर्शियल यूनिट : 13 हजार
इंडस्ट्री : 7 हजार

मीटर भी नई टैक्नोलॉजी वाले लगवा रहे
कांग्रेसी नेताओं और निगमाधिकारियों की बात करें तो यह कोशिश कर रहे हैं कि हर घर नई टैक्नोलॉजी वाला वाटर मीटर ही लगवाए ताकि भविष्य में उसे चिप लगाकर स्मार्ट मीटर में बदला जा सके। ऐसा घरेलू वाटर मीटर 2000 रुपए से ज्यादा का बताया जा रहा है, जिसे लगाने का खर्च भी हजार रुपए या इससे अधिक आ जाएगा। नए कनैक्शनों पर यदि रोड कटिंग का खर्च भी जोड़ लिया जाए तो कई घरों को नया वाटर मीटर 10,000 रुपए में भी पड़ सकता है।

हवा में तीर मार रही है सब-कमेटी
मेयर जगदीश राजा ने वाटर मीटर पालिसी में संशोधन करने के लिए पार्षदों पर आधारित सब-कमेटी बना रखी है, जिसकी बैठक कल 29 जनवरी को भी होगी जिसमें फाइनल फैसला लिया जाएगा। यह सब-कमेटी निगम के हालात को समझे बगैर हवा में तीर मार रही लगती है। इस कमेटी का मकसद सिर्फ स्लम एरिया में रहते छोटे घरों व गरीबों को फ्री पानी उपलब्ध करवाने तक ही सीमित है। हालांकि वाटर मीटर पालिसी लागू करना इस निगम के लिए बहुत दूर की कौड़ी है परंतु कमेटी द्वारा वाटर मीटर निर्माता कम्पनियों से डैमो भी लिया जा चुका है।

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