3 नए दल इस बार आजमाएंगे चुनाव में किस्मत

Edited By swetha,Updated: 06 Apr, 2019 12:29 PM

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लोकसभा चुनावों के दौरान इस बार पंजाब में 3 नए दल न सिर्फ चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमाएंगे, बल्कि ये दल परंपरागत राजनीतिक दलों के वोट बैंक के जोड़-तोड़ को भी बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं।

गुरदासपुर(हरमनप्रीत): लोकसभा चुनावों के दौरान इस बार पंजाब में 3 नए दल न सिर्फ चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमाएंगे, बल्कि ये दल परंपरागत राजनीतिक दलों के वोट बैंक के जोड़-तोड़ को भी बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं। वहीं बागी नेताओं का वोट बैंक भी राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगा। इस समय राज्य के मौजूदा सियासी हालात ऐसे हैं कि एक तरफ कांग्रेस अकेले अपने बलबूते पर चुनाव मैदान में उतर रही है, जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन भी किसी अन्य तीसरे पक्ष से कोई समझौता करने की बजाय पहले की तरह स्वयं इस बार भी चुनाव मैदान में अपने प्रत्याशियों को उतार रहा है। 

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2014 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 4 लोकसभा सीटों पर शानदार जीत हासिल कर पंजाब के चुनाव इतिहास में नए मील पत्थर स्थापित करने वाली आम आदमी पार्टी इन चुनावों से पहले ही बुरी तरह बिखर चुकी है। इसमें से निकले 2 दलों ने न सिर्फ इस पार्टी के वोट बैंक को बड़े स्तर पर तोड़ने की नींव खोद दी है, बल्कि ये दल अन्य सियासी दलों के परिणामों को भी किसी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। इसी तरह शिअद में से मतभेदों के कारण अलग हुए टकसाली अकालियों द्वारा बनाया गया टकसाली अकाली दल भी कड़ी टक्कर देने में कम साबित नहीं होगा। 

अकालियों के लिए सिरदर्द बन सकते हैं टकसाली
शिरोमणि अकाली दल के टकसाली नेता जत्थेदार रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, जत्थेदार सेवा सिंह सेखवां, डा. रत्न सिंह अजनाला सहित अन्य कई नेताओं ने पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता और बिक्रम सिंह मजीठिया के हस्ताक्षेप पर सवाल उठाते हुए इस पार्टी से अलग होकर अकाली दल टकसाली का गठन किया है और अब यह दल खडूर साहिब, आनंदपुर साहिब और संगरूर से अपने उम्मीदवार ऐलान कर चुका है।  भले ही अकाली दल के दावे कुछ भी हों, मगर इन पुराने अकालियों का संबंधित क्षेत्रों में अपना निजी प्रभाव शिरोमणि अकाली दल के वोट बैंक को काफी हद तक प्रभावित करने की क्षमता रखता है, जिससे यह नई पार्टी भी पूरे उत्साह से चुनाव मैदान में उतर रही है। अब यह देखना वाली बात होगी कि पिछली बार पंजाब में आम आदमी पार्टी को मिले लाखों वोट इस बार किस-किस पार्टी के पक्ष में जाते हैं और टकसाली अकाली दल समेत 3 नए दलों को लोग कितना समर्थन देते हैं।

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‘आप’ को अपने देंगे चुनौती
2017 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भले ही आम आदमी पार्टी अकाली दल से अधिक सीट जीत कर विधानसभा में प्रमुख विरोधी दल  का दर्जा हासिल करने में सफल रही है, मगर इसके लिए बड़ी त्रासदी यह रही है कि इसका दिल्ली में बैठा नेतृत्व अपने नेताओं को एकजुट नहीं रख सका। इसके परिणामस्वरूप आज पंजाब में इसकी स्थिति यह है कि इसी पार्टी के विजयी विधायक और हलका इंचार्ज 3 प्रमुख हिस्सों में बंट गए हैं, जबकि कई नेता नाराज व निराश होकर घरों में बैठ गए हैं।

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खैहरा की पार्टी भी बदलेगी राजनीतिक समीकरण
 सुखपाल सिंह खैहरा की नाराजगी वैसे तो बहुत पहले ही शुरू हो चुकी थी, मगर उन्हें विरोधी पक्ष के नेता पद से उतार दिए जाने के बाद उन्हें पार्टी के खिलाफ खुलकर बोलने का अवसर मिल गया। इसके बाद स्थिति इस हद तक बिगड़ी कि  खैहरा ने पंजाब में वालंटियर्स के साथ बैठक कर अपनी ताकत का अंदाजा लगाने उपरांत अलग पार्टी बनाने का मन बना लिया। विशेष कर बरगाड़ी में किए मार्च ने भी खैहरा और उनके साथियों के उत्साह को बढ़ाया था। इस कारण  खैहरा पंजाब एकता पार्टी का गठन करके न सिर्फ खुद बठिंडा से चुनाव मैदान में उतरे हैं, बल्कि उनके साथी विधायक बलदेव सिंह भी फरीदकोट से चुनाव मैदान में हैं।  इन दोनों नेताओं ने पार्टी के पद से इस्तीफा तो दे दिया था, मगर अभी तक विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया। इस पार्टी ने बसपा, लोक इंसाफ पार्टी जैसी पार्टियों के अलावा नवां पंजाब पार्टी आदि के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की तैयारी की है, उसके मुताबिक परिणाम भले ही कुछ भी हो, मगर एक बार नए सियासी गठबंधन ने पंजाब के सियासी समीकरणों को डगमगा दिया है। आम आदमी पार्टी से ही अलग हुए लोकसभा मैंबर डा. धर्मवीर गांधी ने पहले इस पार्टी की सीनियर लीडरशिप से शुरू हुए मतभेदों के बाद पार्टी पर अपने सिद्धांतों से भटकने के आरोप लगाते हुए पंजाब मंच का गठन किया, मगर बाद में उन्होंने इस राज्य में नवां पंजाब पार्टी का गठन कर सीधे तौर पर विरोधियों को टक्कर देने का बड़ा फैसला किया है। कुल मिलाकर ‘आप’ को अपने ही चुनौती देने को तैयार बैठे हैं।
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