Edited By Urmila,Updated: 07 Mar, 2022 05:23 PM

क्रिकेट पर सट्टेबाजी का धंधा तो खैर कई दशकों पुराना है परन्तु पिछले कई वर्षों से देश में राजनीतिक सट्टेबाजी भी जोर पकड़ रही है। पिछले कई वर्षों से लोक सभा और विधान सभा मतदान...
जालंधर (खुराना): क्रिकेट पर सट्टेबाजी का धंधा तो खैर कई दशकों पुराना है परन्तु पिछले कई वर्षों से देश में राजनीतिक सट्टेबाजी भी जोर पकड़ रही है। पिछले कई वर्षों से लोक सभा और विधान सभा मतदान के लिए करोड़ों-अरबों रुपए का सट्टा लगता आया है। कुछ दिनों से 5 राज्यों में हो रही मतदान को लेकर भी भारी सट्टेबाजी हर रोज हो रही है। पंजाब की बात करें तो जहां आम लोगों में चर्चा है कि 10 मार्च को आने वाले नतीजे हैरान करने वाले होंगे और शायद ही किसी पार्टी को बहुमत मिले। ऐसे में कौन-कौन-सी पार्टियों में गठजोड़ होगा, इसके अनुमान तक लगाए जा रहे हैं। ज्यादातर जानकार तो खिचड़ी सरकार आने पर गवर्नर राज के क्यास लगाए जा रहे हैं।
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इन हालातों में शहर के सट्टेबाज एक ही पार्टी की बहुमत के साथ सरकार आने पर दाव खेल रहे हैं और सट्टेबाजों की तरफ से यह दृढ़ता के साथ कहा जा रहा है कि एक पार्टी की सरकार भारी बहुमत के साथ आ रही है। सट्टेबाजों ने एक राजनीतिक दल को 66-68 तक का भाव दिया है। आसान भाषा में समझें तो सट्टेबाज एक पार्टी की इतनी सीटों पर आने का दावा कर रहे हैं। एक आम व्यक्ति यदि बोले कि एक पार्टी को इतनी सीटें हरगिज नहीं आ सकती तो सट्टेबाज का जवाब होगा कि आप 66 सीटों पर ‘नो’ कर दो या उनके बोले अनुसार 68 सीटों पर ‘येस’ कर दो। मान लें कि यदि कोई आदमी 66 पर ‘नो’ कह देता है और एक लाख का सट्टा लगा देता है तो नतीजे आने पर यदि उस पार्टी को 66 सीटें नहीं मिलती तो सट्टेबाज शर्त लगाने वाले को अपनी तरफ से 1 लाख रुपए देगा।
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यदि वह 68 पर येस करता है तो इतनी सीटों के साथ सरकार आ जाती है तो भी सट्टेबाज को शर्त जीतने वाले को पैसे देने होंगे। इन दो आंकड़ों के बीच का मार्जन सट्टेबाज के फेवर में होता है। शहर में हजारों-लाखों लोग पंजाब में खिचड़ी सरकार आने या अप्रत्यक्ष नतीजो की उम्मीदें लगाए बैठे हैं। ऐसे में एक दल को 66-68 सीटें मिलने की बात कईयों को हजम नहीं हो रही। ऐसे में 66 सीटों पर लाखों-करोड़ों रुपए की ‘नो’ की शर्त लग चुकी है। कईयों ने ‘येस’ पर भी दाव खेला है। सट्टेबाज राजनीतिक अस्थिरता में ऐसा दावा क्यों और कैसे और किस क्लेक्शन के आधार पर कर रहे हैं। कईयों को इस पर यकीन नहीं हो रहा परन्तु इसकी चर्चा पूरे राजनीतिक इलाको में जोरों पर है।
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