Jalandhar : जानें क्यों मनाया जाता है सोढल का मेला, पढ़े पूरी Report

Edited By Kamini,Updated: 16 Sep, 2024 09:05 PM

jalandhar know why shri siddh baba sodal mela is celebrated

उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध बाबा सोढल मेला इन दिनों पूरे यौवन पर है और लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा सोढल के दर पर माथा टेक भी चुके हैं।

जालंधर :  उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध बाबा सोढल मेला इन दिनों पूरे यौवन पर है और लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा सोढल के दर पर माथा टेक भी चुके हैं। बता गत दिन रविवार को झंडे के रस्म अदा करने का बाद आज से शुरू हो गया है जोकि 3-4 तक चलेगा। वैसे तो बाबा सोढल का माले मंगलवार 17 सितंबर को है, जिसको लेकर जालंधर में अधिकारिक तौर पर छुट्टी की घोषण की गई है। जालंधर स्थित श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।

इसलिए मनाया जाता है सोढल मेला

मान्यता है कि इस तपोभूमि पर आदर्श मुनि तपस्या करते थे। बाबा सोढल की माता जी उनकी सेवा करती थीं। एक दिन मुनि जी ने कहने पर बाबा सोढल की माता जी ने उनसे पुत्र रत्न का वरदान मांगा लिया। मुनि जी ने ध्यान लगाते हुए कहा, तुम्हारे भाग्य में औलाद सुख नहीं है। इसके बाद उन्होंने भगवान विष्णु की अराधना करते हुए पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन उन्होंने संतान पर कभी गुस्सा न करने की हिदायत भी दी। इसी बीच एक दिन बाबा जी की मां तालाब पर कपड़े धो रही थीं, तब बाबा सोढल 5 साल के थे। इस दौरान उनकी मां ने उन पर गुस्सा किया तो वे तालाब में गायब हो गए। जब उनकी मां रोने लगी तो बाबा सोढल नाग के रूप में प्रकट हुए और दर्शन दिए। इस दौरान उन्होंने कहा कि, मैं सदा यहीं आपके बीच रहूंगा। इस स्थान पर नतमस्तक होने वाले नि:संतान भक्तों को भी औलाद सुख मिलेगा। सालों से बाबा सोढल की मान्यता आज लाखों भक्तों की मन्नतों में बदल चुकी है। भक्त अपनी मुरादें पूरी होने पर बच्चों को और अपने सगे-संबंधियों के साथ लेकर ढोल-बाजों के साथ नाचते-गाते आते हैं। मेले के दौरान मंदिर के चारों तरफ भक्तों के लिए दिन-रात लंगर चलता है।

श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, यहां अनंत चौदस पर बहुत बड़ा मेला लगाया जाता है। ये मेला कई दिनों तक लगा रहता है। इस दौरान देश-विदेश से श्रद्धालु मेले में पहुंचे हैं और एक दिन पहले ही हवन से इसकी शुरुआत हो जाती है। आपको बता दें कि आनंद व चड्ढा परिवारों के सदस्यों के मेले में पहुंचना बहुत जरूरी है। मेले की रीत आनंद व चड्ढा परिवार द्वारा बरसों पहले शुरू की गई। अब ये मेला सिर्फ आनंद व चड्ढा बिरादरी तक ही सीमित नहीं रही बल्कि सभी लोगों के लिए आस्था केंद्र बन गया है। 1960 के आसपास चंद घंटों तक चलने वाला मेला अब 3 से 4 दिन तक दिन-रात चलता है। मान्यता के अनुसार, चड्‌ढा और आनंद परिवार के सदस्य एक दिन पहले ही इकट्ठे हो जाते हैं।

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