चुनाव में मिली हार के बाद ढींढसा पिता-पुत्र के राजनीतिक भविष्य को लगा ग्रहण

Edited By Kalash,Updated: 13 Mar, 2022 02:46 PM

political future of dhindsa father son was eclipsed

पंजाब विधानसभा के आए नतीजों में जहां आम आदमी पार्टी की चली आंधी में बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ उड़ गए वही राजनीति में अहम स्थान रखने वाले

शेरपुर (अनीश): पंजाब विधानसभा के आए नतीजों में जहां आम आदमी पार्टी की चली आंधी में बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ उड़ गए वही राजनीति में अहम स्थान रखने वाले सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके पुत्र परमिंदर सिंह ढींढसा के राजनीतिक भविष्य को भी ग्रहण लग गया है। ढींढसा ने अपना राजसी सफर 1972 से हलका धनौला से आजाद चुनाव जीत कर शुरू किया और लगातार 1977, 1980 और 1985 में चार बार विधायक रहे। 1997 की चुनाव में सुनाम से बाबू भगवान दास अरोड़ा से पहली बार चुनाव हारे और बादल सरकार ने चुनाव हारने के बाद भी उन्हें पंजाब राज्य बिजली बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया। 2004 की लोक सभा चुनाव में उन्होंने जीत प्राप्त की और 2009 में हार प्राप्त हुई। हार मिलने के बावजूद एक बार फिर प्रकाश सिंह बादल ने ढींढसा पर मेहरबान होते राज्य सभा में भेजा पर अब बदले समीकरणों के अंतर्गत वह अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं और उनका राज्य सभा मैंबर का कार्यकाल अप्रैल में पूरा हो रहा है, जिस कारण वह अपने दम पर या गठजोड के अंतर्गत राज्य सभा में नहीं जा सकते।

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अब उनका राजनीतिक भविष्य मोदी सरकार पर निर्भर है। देखना यह होगा कि मोदी सरकार सुखदेव ढींढसा के राजनीतिक भविष्य पर क्या फैसला लेती है। यदि बात उनके पुत्र परमिंदर सिंह ढींडसा की करें तो उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2000 में सुनाम से जीत कर की और इसके बाद 2002, 2007 और 2012 के चुनाव में सुनाम से जीत के अकाली भाजपा गठजोड की सरकार में मंत्री रहे। 2017 के चुनाव में उन्होंने सुनाम हलका बदल कर विधानसभा हलका लहरागागा से चुनाव लड़े और पूर्व मुख्यमंत्री बीबी राजिंदर कौर भट्ठल को हरा कर चुनाव जीते, पर शिरोमणी अकाली दल 15 सीटों पर सिमट कर रह गया। इस बार उन्होंने हलका लहरागागा से अपनी अलग पार्टी शिरोमणी अकाली दल संयुक्त-भाजपा, कैप्टन गठजोड के साथ चुनाव लड़े, पर आम आदमी पार्टी की आंधी में उम्मीदवार एडवोकेट बरिंदर गोयल ने बड़ी लीड के साथ चुनाव जीता और ढींढसा का राजनीतिक भविष्य खतरे में डाल दिया, जिस करण बदले हुए राजनीतिक समीकरणों के अंतर्गत एक बार दोनों पिता -पुत्रों के राजनीतिक भविष्य पर बादल छा गए हैं। 

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