अब इलाज करवाना हुआ महंगा, दवाइयों पर पड़ी महंगाई की मार

Edited By Urmila,Updated: 06 May, 2022 10:55 AM

increased burden on the pockets of patients more than 10 percent increase

महंगाई की मार दवाइयों पर भी पड़ रही है, जिससे मरीजों की परेशानी बढऩे लगी है। पैट्रोल-डीजल की तरह दवाइयां भी इंसानी जिंदगी का हिस्सा हैं। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक 80 प्रतिशत घरों में किसी न किसी ...

जालंधर (पुनीत): महंगाई की मार दवाइयों पर भी पड़ रही है, जिससे मरीजों की परेशानी बढ़ने लगी है। पैट्रोल-डीजल की तरह दवाइयां भी इंसानी जिंदगी का हिस्सा हैं। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक 80 प्रतिशत घरों में किसी न किसी किसी रूप में दवाइयों का इस्तेमाल होता है, इसके चलते दवा के दामों में बढ़ौतरी हो जाने से हर वर्ग प्रभावित होगा। इसकी सबसे अधिक मार मध्यम वर्ग पर पड़ेगी क्योंकि जब भी किसी वस्तु के दाम बढ़ते हैं तो मध्यम वर्ग का बजट बिगड़ता है।

हर वर्ग पर कहर बनकर फट रहे महंगाई के बम ने बड़े स्तर पर दवा कारोबार को भी प्रभावित किया है, जिसके चलते 800 के करीब दवाइयों के दामों में 10 प्रतिशत या इससे अधिक की बढ़ौतरी हुई है। बुखार, दिल, हाई ब्लड प्रैशर, विटामिन, शूगर, खून बढ़ाने वाली, मिनरल, स्किन से संबंधित, एनीमिया, एंटी एलर्जिक, विषरोधी, खून पतला करने वाली, कुष्ठ रोग, टी.बी., माइग्रेन, डिमेंशिया, साइकोथैरेपी, हार्मोन, उदर रोग सहित कई और जरूरी दवाइयां भी महंगी हो चुकी हैं। 

नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी.पी.ए.) द्वारा दवाइयों के दाम बढ़ाने की अनुमति दी जा चुकी है। फिलहाल पुरानी दवाइयों के मार्कीट में होने के कारण लोगों को दाम बढ़ने का पता नहीं चल पाया था। अब नया स्टाक आने के चलते लोगों को बढ़े हुए दामों का एहसास होने लगा है। जिन दवाइयों के दामों में बढ़ौतरी हुई है, उनमें से कई दवाइयां राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (एन.एल.ई.एम.) के तहत मूल्य नियंत्रण में रखी जाती हैं। एन.पी.पी.ए. के अनुसार उद्योग प्रोत्साहन अैर घरेलू व्यापार विभाग के आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने वार्षिक 10.76 फीसदी वृद्धि की अनुमति दी है।

2019 में 2 व 2020 में मात्र 0.5 प्रतिशत हुई वृद्धि
इस बार दवाई के दामों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होने से जनजीवन पर इसका बेहद असर पडऩे वाला है। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकतर दवाइयों की मूल्यवृद्धि की हर वर्ष अनुमति दी जाती है, इस बार हुई मूल्य वृद्धि अब तक की सबसे अधिक बढ़ौतरी है। ऐसा पहली बार है कि सूचीबद्ध दवाइयों को सूची से बाहर की दवाइयों से ज्यादा महंगा करने की अनुमति दी गई है। अब तक मूल्य वृद्धि की बात करें तो इनमें प्रति वर्ष के हिसाब से एक से दो फीसदी बढ़ौतरी की जाती थी। इससे पहले साल 2019 में एन.पी.पी.ए. ने दवाइयों की कीमतों में 2 फीसदी और इसके बाद साल 2020 में दवाइयों के दाम में 0.5 फीसदी की वृद्धि करने की अनुमति दी थी।

देश में 1.6 लाख करोड़ का दवा बाजार
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.) में बढ़ौतरी के चलते दवाइयां महंगी हुई हैं, इसमें कहा गया है कि इनपुट कॉस्ट पर दबाव ज्यादा बढ़ गया है। देश में करीब 1.6 लाख करोड़ रुपए का दवा बाजार है, इसमें अधिसूचित दवाइयों की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है। जिस कदर दाम बढ़े हैं उससे कई बड़ी कंपनियों की टर्न ओवर में अभूतपूर्व बढ़ौतरी होना तय है। दवाइयों का ऑनलाइन बाजार भी इस समय जोरों-शोरों से चल रहा है, इसका कारण यह है कि दवाओं का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

राज्यसभा में उठा दवाइयों की वृद्धि का मुद्दा
राज्यसभा में दवाओं के दामों में बढ़ौतरी का मुद्दा उठाया जा चुका है। कई सभा सदस्यों ने सरकार से कहा कि दवाओं के बढ़ते दाम से आम जनता त्रस्त हो गई है, सरकार को इस पर ध्यान देना होगा। दवाइयों की कीमतों में एक साथ इतनी बड़ी वृद्धि कभी नहीं की गई। सरकार को इन कीमतों को वापिस लेना चाहिए। बाजार में दवाइयों के बढ़े दामों को लेकर हो-हल्ला शुरू हो चुका है जिसके चलते आने वाले समय में इस मुद्दे के दोबारा से उठने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। नेताओं का साफ कहना है कि महंगाई के चलते बढ़ते दामों की वजह से जनता का हाल पहले ही बेहद चिंतायोग्य है। ऊपर से दवाइयों के दाम बढ़ाने से जले पर नमक लगाने वाला काम हो रहा है।

मरीजों की जेबों पर बढ़ा ‘बोझ’, दवाइयों के दामों में हुई 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ौतरी
जालंधर (पुनीत): महंगाई की मार दवाइयों पर भी पड़ रही है, जिससे मरीजों की परेशानी बढऩे लगी है। पैट्रोल-डीजल की तरह दवाइयां भी इंसानी जिंदगी का हिस्सा हैं। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक 80 प्रतिशत घरों में किसी न किसी किसी रूप में दवाइयों का इस्तेमाल होता है, इसके चलते दवा के दामों में बढ़ौतरी हो जाने से हर वर्ग प्रभावित होगा। इसकी सबसे अधिक मार मध्यम वर्ग पर पड़ेगी क्योंकि जब भी किसी वस्तु के दाम बढ़ते हैं तो मध्यम वर्ग का बजट बिगड़ता है।

हर वर्ग पर कहर बनकर फट रहे महंगाई के बम ने बड़े स्तर पर दवा कारोबार को भी प्रभावित किया है, जिसके चलते 800 के करीब दवाइयों के दामों में 10 प्रतिशत या इससे अधिक की बढ़ौतरी हुई है। बुखार, दिल, हाई ब्लड प्रैशर, विटामिन, शूगर, खून बढ़ाने वाली, मिनरल, स्किन से संबंधित, एनीमिया, एंटी एलर्जिक, विषरोधी, खून पतला करने वाली, कुष्ठ रोग, टी.बी., माइग्रेन, डिमेंशिया, साइकोथैरेपी, हार्मोन, उदर रोग सहित कई और जरूरी दवाइयां भी महंगी हो चुकी हैं। 

नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी.पी.ए.) द्वारा दवाइयों के दाम बढ़ाने की अनुमति दी जा चुकी है। फिलहाल पुरानी दवाइयों के मार्कीट में होने के कारण लोगों को दाम बढ़ने का पता नहीं चल पाया था। अब नया स्टाक आने के चलते लोगों को बढ़े हुए दामों का एहसास होने लगा है। जिन दवाइयों के दामों में बढ़ौतरी हुई है, उनमें से कई दवाइयां राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (एन.एल.ई.एम.) के तहत मूल्य नियंत्रण में रखी जाती हैं। एन.पी.पी.ए. के अनुसार उद्योग प्रोत्साहन अैर घरेलू व्यापार विभाग के आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने वार्षिक 10.76 फीसदी वृद्धि की अनुमति दी है।

2019 में 2 व 2020 में मात्र 0.5 प्रतिशत हुई वृद्धि
इस बार दवाई के दामों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होने से जनजीवन पर इसका बेहद असर पडऩे वाला है। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकतर दवाइयों की मूल्यवृद्धि की हर वर्ष अनुमति दी जाती है, इस बार हुई मूल्य वृद्धि अब तक की सबसे अधिक बढ़ौतरी है। ऐसा पहली बार है कि सूचीबद्ध दवाइयों को सूची से बाहर की दवाइयों से ज्यादा महंगा करने की अनुमति दी गई है। अब तक मूल्य वृद्धि की बात करें तो इनमें प्रति वर्ष के हिसाब से एक से दो फीसदी बढ़ौतरी की जाती थी। इससे पहले साल 2019 में एन.पी.पी.ए. ने दवाइयों की कीमतों में 2 फीसदी और इसके बाद साल 2020 में दवाइयों के दाम में 0.5 फीसदी की वृद्धि करने की अनुमति दी थी।

देश में 1.6 लाख करोड़ का दवा बाजार
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.) में बढ़ौतरी के चलते दवाइयां महंगी हुई हैं, इसमें कहा गया है कि इनपुट कॉस्ट पर दबाव ज्यादा बढ़ गया है। देश में करीब 1.6 लाख करोड़ रुपए का दवा बाजार है, इसमें अधिसूचित दवाइयों की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है। जिस कदर दाम बढ़े हैं उससे कई बड़ी कंपनियों की टर्न ओवर में अभूतपूर्व बढ़ौतरी होना तय है। दवाइयों का ऑनलाइन बाजार भी इस समय जोरों-शोरों से चल रहा है, इसका कारण यह है कि दवाओं का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

राज्यसभा में उठा दवाइयों की वृद्धि का मुद्दा
राज्यसभा में दवाओं के दामों में बढ़ौतरी का मुद्दा उठाया जा चुका है। कई सभा सदस्यों ने सरकार से कहा कि दवाओं के बढ़ते दाम से आम जनता त्रस्त हो गई है, सरकार को इस पर ध्यान देना होगा। दवाइयों की कीमतों में एक साथ इतनी बड़ी वृद्धि कभी नहीं की गई। सरकार को इन कीमतों को वापिस लेना चाहिए। बाजार में दवाइयों के बढ़े दामों को लेकर हो-हल्ला शुरू हो चुका है जिसके चलते आने वाले समय में इस मुद्दे के दोबारा से उठने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। नेताओं का साफ कहना है कि महंगाई के चलते बढ़ते दामों की वजह से जनता का हाल पहले ही बेहद चिंतायोग्य है। ऊपर से दवाइयों के दाम बढ़ाने से जले पर नमक लगाने वाला काम हो रहा है।

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