Jalandhar Special Report: एक E-Mail से सहमे ‘नन्हे फरिश्ते’, स्कूलों की ओर दौड़े माता-पिता...

Edited By Vatika,Updated: 16 Dec, 2025 10:59 AM

jalandhar school bomb threat

सुबह सामान्य थी, जिस तरह की सोमवार की सुबह होती है। छुट्टी के बाद की सुबह कुछ

जालंधर (अनिल पाहवा): सुबह सामान्य थी, जिस तरह की सोमवार की सुबह होती है। छुट्टी के बाद की सुबह कुछ आलसी होती है, लेकिन दोपहर होते-होते बच्चे व बड़े सामान्य होने लगते हैं तथा रोजाना की लाईफ में ढलने लगते हैं। जालंधर के स्कूलों में भी सामान्य चहल-पहल थी। स्कूल बसें अपने तय रास्तों पर दौड़ रही थीं, बच्चों के कंधों पर बैग थे और चेहरों पर आज के दिन की छोटी-छोटी उम्मीदें। कोई टिफिन में रखी मम्मी के हाथ की परांठी के बारे में सोच रहा था, कोई आज होने वाले यूनिट टैस्ट को लेकर हल्का-सा नर्वस था, तो कोई खेल पीरियड का इंतज़ार कर रहा था। लेकिन किसी को क्या पता था कि यह दिन जालंधर के लिए डर, बेचैनी और सवालों से भरा एक ऐसा दिन बन जाएगा, जिसे शहर लंबे समय तक भूल नहीं पाएगा।

किसी ने टिफिन खोला ही था, कोई पेपर कर रहा था हल 
करीब दस अलग-अलग स्कूलों में एक साथ बम की धमकी भरी ई-मेल मिलने की खबर ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया। कुछ ही मिनटों में स्कूल परिसरों में हलचल मच गई। जो बच्चे कक्षा में बैठे थे, उनकी आंखें टीचर्ज़ की आवाज़ की जगह अचानक बदलते माहौल को पढ़ने लगीं। कहीं बच्चों से कहा गया कि यह मॉक ड्रिल है, शांत रहो, लाइन में खड़े हो जाओ, कहीं स्कूल स्टाफ तेजी से एक-दूसरे से बात करता दिखा।  कई स्कूलों में बच्चे खाना खा रहे थे। किसी ने टिफिन खोला ही था, किसी के हाथ में चम्मच था। कुछ बच्चे परीक्षा हॉल में पेपर हल कर रहे थे—जहां एक-एक सवाल पर माथा सिकोड़कर बैठना होता है, वहां अचानक दहशत का साया फैल गया। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। बच्चों के चेहरे पर वही सवाल था—'मैम, क्या हुआ?'

टीचर्ज़ के लिए बेहद कठिन पल
अध्यापकों के लिए यह सबसे कठिन पल था। एक ओर बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी, दूसरी ओर उनके मन में फैलते डर को संभालने की चुनौती। कई टीचर खुद घबराए हुए थे, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर संयम की परत चढ़ा ली। छोटे बच्चों को गोद में लेकर, उनके कंधों पर हाथ रखकर उन्हें बाहर की ओर ले जाया गया। 'कुछ नहीं हुआ है, सब ठीक है, ये शब्द बच्चों के कानों में बार-बार दोहराए गए, लेकिन दिलों की धड़कनें तेज़ थीं। स्कूल गेट के बाहर का नज़ारा और भी भावुक कर देने वाला था। जैसे ही खबर फैली, अभिभावक बदहवास हालत में स्कूलों की ओर दौड़ पड़े। किसी ने ऑफिस से छुट्टी ली, किसी ने अधूरा काम छोड़ा। मोबाइल फोन पर लगातार कॉल्स आ रही थीं—बच्चा ठीक है?, 'स्कूल से बाहर निकल आए क्या?' हर कॉल में घबराहट साफ झलक रही थी।

कोई सहमा-सहमा सा, कोई खामोश
बच्चों के चेहरे इस घटना की असली तस्वीर थे। किसी की आंखों में आंसू थे, कोई खामोश था, कोई मां का हाथ पकड़कर चुपचाप खड़ा था। कुछ बच्चे बार-बार पूछ रहे थे 'क्या स्कूल में बम था?' और जवाब में बड़े लोग सिर्फ यही कह पा रहे थे 'नहीं बेटा, ये मॉक ड्रिल थी, वैसे सब ठीक है।' पुलिस और सुरक्षा एजैंसियां तुरंत हरकत में आईं। स्कूल परिसरों को खाली कराया गया, बम निरोधक दस्ते ने जांच शुरू की। हर कोना, हर कमरा, हर बैग—सब कुछ ध्यान से देखा गया। घंटों की मशक्कत के बाद राहत की सांस जरूर मिली कि कहीं कोई विस्फोटक नहीं मिला, लेकिन जो मानसिक डर फैल चुका था, उसे इतनी आसानी से मिटाया नहीं जा सकता।

बड़ा सवाल-क्या स्कूल भी सुरक्षित नहीं है?
यह सिर्फ बम की धमकी नहीं थी, यह बच्चों के मासूम मन पर लगा एक गहरा निशान था। आज जो बच्चा स्कूल को सुरक्षित जगह मानता था, उसके मन में पहली बार यह सवाल उठा 'क्या स्कूल भी सुरक्षित नहीं है?' मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसी घटनाएं बच्चों में लंबे समय तक डर और असुरक्षा की भावना छोड़ जाती हैं। कुछ बच्चे रात को डरकर जाग सकते हैं, कुछ स्कूल जाने से कतराने लग सकते हैं। इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा साफ दिखा। कोई कह रहा था 'ये सिर्फ शरारत नहीं, बच्चों की जान से खेलने जैसा है।' कोई सवाल उठा रहा था कि ऐसी धमकियां भेजने वालों पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती? लोग यह भी पूछ रहे थे कि आखिर हमारे बच्चों की सुरक्षा कितनी मजबूत है। इस घटना ने समाज को एक कड़वा सच दिखा दिया—डिजिटल दौर में एक ई-मेल भी कितनी बड़ी अफरा-तफरी मचा सकता है। कुछ पलों में बच्चों की हंसी, स्कूल की रौनक, सब कुछ डर में बदल गया। यह सोचकर ही रूह कांप जाती है कि अगर यह महज धमकी न होकर हकीकत होती तो क्या होता?

हमारी जिम्मेदारी
जालंधर के लिए एक चेतावनी है। यह बताता है कि बच्चों की सुरक्षा सिर्फ स्कूल की चारदीवारी तक सीमित नहीं हो सकती। सबसे अहम बात यह है कि हमें बच्चों के मन को भी संभालना होगा। उन्हें फिर से यह भरोसा दिलाना होगा कि स्कूल सीखने, खेलने और सपने देखने की जगह है, डरने की नहीं। जालंधर के उन बच्चों की आंखों में आज भी वह सवाल होगा, लेकिन हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस सवाल का जवाब सुरक्षा, संवेदनशीलता और सच्चे भरोसे से दें। क्योंकि कोई भी धमकी, चाहे वह झूठी ही क्यों न हो, अगर उसने बच्चों के चेहरे से मुस्कान छीन ली, तो वह पूरे समाज पर लगा एक गहरा धब्बा है।

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