वैलेंटाइन वीक में जासूसों के जरिए परिजनों की बच्चें पर  खुफिया ‘नजर’

Edited By swetha,Updated: 08 Feb, 2020 10:23 AM

valentine week

एवरेज रोजाना 1500 से 2500 का खर्च

जालंधर(पुनीत): प्रेमी जोड़े रूटीन के मुताबिक वैलेंटाइन वीक में एक-दूसरे से मिलने को खासी त्वज्जो देते हैं, जिसको लेकर परिजन भी सुचेत हैं। वे अपने बच्चों पर नजर रखने के लिए जासूसी का सहारा ले रहा हैं। इसके चलते वैलेंटाइन वीक में परिजनों की बच्चों पर तीसरी आंख से खुफिया नजर रहेगी। बड़े स्तर पर ऐसे परिजन भी हैं जो जानना चाहते हैं कि बच्चे इस वीक में किससे मिलते हैं और उनका शड्यूल क्या है? इसके लिए इंवैस्टीगेटर्स (जासूसों) से संपर्क किया गया है जोकि अपनी सर्विस देने के लिए हाइटैक टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इंवैस्टीगेटर्स इस क्रम में बच्चों के आने-जाने से लेकर रैस्टोरैंट व अन्य जगहों के बारे में जानकारी एकत्रित करके अभिभावकों/क्लाइंट को मुहैया करवा रहे हैं।  

सी.एस.आई. प्राइवेट इंवैस्टीगेशन व सिक्योरिटी एजैंसी की चीफ इंवैस्टीगेर्ट के. कौर का कहना है कि यूं तो परिजन अपने बच्चों की इंवैस्टीगेशन को लेकर रूटीन में उनसे संपर्क करते हैं लेकिन वैलेन्टाइन वीक में यह संख्या बढ़ जाती है। उन्होंने बताया की पिछले सप्ताह रोजाना 100 से अधिक इंक्वायरी कॉल आई, जिसे लेकर क्लाइंट्स ने उनसे इंवैस्टीगेशन/खर्च के बारे में जाना। जो कॉल आती है उनमें 25 प्रतिशत के करीब केस फाइनल होते हैं।  उन्होंने कहा कि इस हाइटैक दौर में अभिभावक अपने बच्चों को लेकर खासे गंभीर हैं। इंवैस्टीगेशन के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि वैलेंटाइन वीक को लेकर दूसरे राज्यों से भी इंवैस्टीगेटर्स को बुलाना पड़ता है। इसमें क्लाइंट के मुताबिक बच्चों (सब्जैक्ट) की डिटेल देनी पड़ती है। 

एवरेज रोजाना 1500 से 2500 का खर्च
इंवैस्टीगेटर्स के मुताबिक एक एवरेज इंक्वायरी के लिए रोजाना 1500 से लेकर 2500 रुपए तक खर्च आता है। यदि दिन-रात की इंवैस्टीगेशन की डिमांड आती है तो उसके लिए अलग से चार्ज लिया जाता है, जिसकी इंवैस्टीशन करनी होती है उसके शहर से बाहर आने-जाने पर अलग से चार्ज किया जाता है। उनका कहना है कि एवरेज इंक्वायरी में एक आध व्यक्ति कार्य करता है जबकि इसके विपरीत यदि हाइटैक इंवेस्टीगेशन की डिमांड आती है तो उसके लिए 3-4 इंवैस्टीगेटर्स को इस काम में लगाना पड़ता है। इसके लिए रोजाना का खर्च 10 हजार के आंकड़े को छू जाता है। 

अभिभावकों करत हैं इंवैस्टीगेटर्स की मदद 
5 साल पहले जो काम करने का ढंग था, उसके मुकाबले आज के दौर में काम का तरीका बेहद बदल चुका है। इसका मुख्य कारण यह है कि अब सोशल मीडिया के कारण लड़का-लड़की के संपर्क करने का ढंग बदल चुका है। अब लड़का-लड़की को दूसरे व्यक्ति तक अपना संदेश पहुंचाना आसान हो चुका है। इंटरनैट के कारण इंवैस्टीगेटर्स को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है, हालांकि अभिभावकों द्वारा भी इंवैस्टीगेटर्स को पूरी हैल्प की जाती है ताकि उन्हें अधिक पसीना न बहाना पड़े।  

गुमराह करने हेतु फेक आई-डी का सहारा
के.कौर बताती है कि आज के समय में मोबाइल फोन सबकी जरूरत बन चुका है। फोन में होने वाली बातचीत किसी तक न पहुंचे, इसके लिए कई तरह के पासवर्ड इत्यादि लगाए जाते हैं। उनका कहना है कि इसके विपरीत कई युवा अपने परिजनों को गुमराह करने के लिए फेक आई-डी का सहारा लेते हैं। फोन को बिना पासवर्ड के रखा जाता है ताकि घर वालों को किसी तरह का शक न हो। उन्होंने कहा कि जिस तरह से युवाओं ने अलग-अलग रास्ते ढूंढे हैं, उसी तर्ज पर इंवैस्टीगेटर्स ने भी अपने कार्य करने के ढंग में बदलाव किया है।  

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