Edited By Updated: 09 Mar, 2017 09:52 AM
लुधियाना (हितेश): पंजाब के विधानसभा चुनाव में आजाद जीतने वालों की संख्या हर बार कम होती जा रही है लेकिन इस बार अकाली-भाजपा व कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी का तिकोना मुकाबला होने के बावजूद किसी आजाद की लॉटरी लगना अहम होगा। देश की राजनीति में कई ऐसे रोचक उदाहरण मौजूद हैं जब किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की सूरत में सरकार बनाने के लिए आजाद जीतने वालों की अहम भूमिका रहती है। यहां तक कि उन आजाद जीतने वालों में से मंत्री भी बन जाते हैं। इनमें झारखंड में सिर्फ एक सीट की जरूरत होने के कारण मधु कोड़ा को सी.एम. बनाया गया था। कई जगह आजादों की जरूरत न होने पर भी पार्टिया उनका समर्थन लेने के अलावा सरकार का हिस्सा भी बनाती हैं ताकि जरूरी संख्या से ज्यादा विधायक होने पर सरकार के अपने लोगों को आंखें दिखाने का मौका न मिले, जैसा कि सुखबीर बादल द्वारा पंजाब में भाजपा के बिना भी बहुमत जुटाने के लिए पहले बैंस ब्रदर्ज की हिमायत ली और फिर कांग्रेस के कई विधायकों से इस्तीफा दिलाकर अपनी पार्टी की टिकट से चुनाव लड़वाकर जिताया भी। अब पंजाब में वैसे तो कांग्रेस, अकाली-भाजपा के सामने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भी खड़े हैं जिससे तिकोना मुकाबला बना हैं। कई जगह ऐसे आजाद उम्मीदवार खड़े हैं जो तिकोना मुकाबला होने के बावजूद पाॢटयों के लिए सिरदर्द बने हैं। इनमें से कुछेक तो जीत के काफी करीब बताए जाते हैं। अगर इन्हें सफलता मिली तो सरकार बनाने की चाबी इनके हाथ में भी आ सकती है क्योंकि इस बार किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की अटकलें भी चल रही हैं।
बागी होकर आजाद लडऩे वाले बनते रहे हैं पार्टियों का हिस्सा
पंजाब का इतिहास गवाह है कि जितने भी आजाद लड़कर जीते या भारी मात्रा में वोटें हासिल करने में कामयाब रहे उनमें से अधिकतर किसी पार्टी की टिकट न मिलने कारण बागी होते हैं जिनमें से कई तो जीतकर अपनी पार्टी का ही दामन थाम लेते हैं या फिर सत्ता पर काबिज होने वाली पार्टी का हिस्सा बन जाते हैं। यही हाल पार्टी से टिकट न मिलने की सूरत में बागी हो कर चुनाव लड़ कर जीत के काफी करीब रहने वाले आजाद उम्मीदवारों का होता है। उनको ज्यादातर उसी सूरत में पार्टी में वापस लिया जाता है अगर वे अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार की हार की वजह बनें। इतना ही नहीं, ऐसे कई आजाद उम्मीदवार अगली बार पार्टी टिकट लेने में कामयाब हो जाते हैं। इसी तरह मजबूत स्थिति वाले आजाद उम्मीदवारों को भी दूसरी पाॢटयां अपना चुकी हैं।
लुधियाना उत्तरी- मदन लाल बग्गा
2007 में कांग्रेस से बागी होकर आजाद लड़े और करीब 22,000 वोट लेने के कारण कांग्रेस के राकेश पांडे की हार का कारण बने तथा भाजपा का खाता खुला और हरीश बेदी जीते। फिर बग्गा ने अकाली दल को ज्वाइन किया और टिकट न मिलने के कारण भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ आजाद चुनाव मैदान में उतरे।
मुक्तसर-सुखदर्शन सिंह मराड़
मराड़ ने एक बार आजाद जीतकर अकाली दल की मदद की लेकिन टिकट न मिली तो दोबारा आजाद चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से मौजूदा विधायक करण कौर बराड़ पूर्व सी.एम. हरचरण बराड़ की बहू हैं।
सुनाम-राजिंद्र दीपा
दीपा यहां से विधायक रहे भगवान दास अरोड़ा के दामाद हैं। पहले कांग्रेस टिकट के लिए अरोड़ा के बेटे अमन के साथ लड़ाई रही। अमन पिछली बार कांग्रेस की टिकट पर लड़े थे और अब आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा। फिर भी दीपा की जगह कांग्रेस ने दमन बाजवा को टिकट दी। यहां से परमिंद्र ढींडसा की सीट बदलने का फायदा दीपा को मिलने की उम्मीद है।
बंगा-त्रिलोचन सूंढ
सूंढ पहले विधायक रहे हैं शहीद परिवार से संबंधित होने के बावजूद कांग्रेस ने टिकट काट दी तो आजादरूप से चुनाव मैदान में उतर गए। अकाली दल ने नवांशहर से बसपा की टिकट पर लड़ चुके सुखविंद्र सुक्खी को उतारा है तो कांग्रेस ने पहले आदमपुर से हार चुके बसपा के पूर्व नेता सतनाम कैंथ को टिकट दी है।
महलकलां-गोबिंद सिंह कांझला
गोबिंद सिंह कांझला मंत्री रह चुके हैं और पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर आए थे। टिकट नहीं मिलने पर आजादरूप से चुनाव लड़ा। अकाली दल ने कांग्रेस से आए अजीत सिंह शांत को हलका बदलकर टिकट दी है और कांग्रेस की मौजूदा विधायक हरचंद कौर उम्मीदवार हैं।
जंगी लाल महाजन
1991 से लेकर 1997 जिला भाजपा ग्रामीण के अध्यक्ष रहे। नगर परिषद के प्रधान भी रहे। एक बार निॢवरोध पार्षद भी चुने गए। इस बार बागी होकर आजाद रूप से विधानसभा चुनाव लड़ा व भाजपा के अरुणेश शॉकर, कांग्रेस के रजनीश बब्बी व आम आदमी पार्टी के सलोखन जग्गी को टक्कर दी।
जालंधर वैस्ट-सुरेन्द्र्र महे
महे पहले जालंधर के मेयर रह चुके हैं। इस बार पार्टी ने मोङ्क्षहद्र सिंह के.पी. को आदमपुर शिफ्ट तो कर दिया और टिकट महे को न देकर कांग्रेस के पार्षद सुशील रिंकू को दे दी। इस पर महे रिंकू के खिलाफ आजाद रूप से चुनाव मैदान में कूद गए। भाजपा की तरफ से कैबिनेट मंत्री व कई बार विधायक चुने गए भगत चूनी लाल के बेटे महिन्द्र भगत उम्मीदवार हैं।
फाजिल्का-राजदीप कौर
सेहत मंत्री सुरजीत ज्याणी भाजपा की टिकट पर लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने अकाली सांसद शेर सिंह घुबाया के बेटे दविंद्र को टिकट दी है। राजदीप आजाद रूप से चुनाव लड़ रही हैं।
घनौर-अनूपइंद्र कौर संधू
कांग्रेस के मदन लाल जलालपुर उम्मीदवार हैं जबकि अकाली दल ने मौजूदा विधायक व पूर्व मंत्री अजैब सिंह मुखमैलपुर की पत्नी को टिकट दी है। कांग्रेस को जहां पूर्व मंत्री जसजीत रंधावा की बेटी के ‘आप’ की टिकट पर लडऩे के कारण नुक्सान होने का खतरा है वहीं पिछली बार सनौर से अकाली दल की टिकट पर लड़े तेजिन्द्रपाल संधू के परिवार में से अनूपइंद्र कौर संधू अकाली दल से बागी होकर खड़ी हैं।
सुजानपुर-नरेश पुरी
नरेश पुरी के पिता कई बार कांग्रेस विधायक व मंत्री रह चुके हैं लेकिन पिछली बार टिकट नहीं मिली तो आजाद चुनाव लड़ कर दूसरे नंबर पर आए और कांग्रेस की हार का कारण बने जबकि कांग्रेस ने पिछली बार विनय महाजन व इस बार अमित मांटू को टिकट दी तो पुरी ने फिर से बगावत कर दी। भाजपा ने मौजूदा विधायक व डिप्टी स्पीकर दिनेश बब्बू को ही दोबारा चुनाव मैदान में उतारा है।
पठानकोट-अशोक शर्मा
अशोक शर्मा पहले विधायक रह चुके हैं लेकिन पिछली बार टिकट न मिलने पर आजाद चुनाव लड़कर वह 23,713 वोट ले गए थे। अब टिकट नहीं मिली तो फिर उन्होंने विधान सभा चुनाव आजाद लड़ा है। कांग्रेस ने पिछली बार लड़े रमन भल्ला की टिकट काट कर अमित विज को दे दी। भाजपा की तरफ से मौजूदा विधायक अश्विनी शर्मा ही चुनाव लड़ रहे हैं।