एग्रीकल्चर अपडेटः प्राइवेट कंपनियों के बनाए चक्रव्यूह में फंसे किसान

Edited By swetha,Updated: 29 Jul, 2019 09:45 AM

agriculture update

किसानों के सिर पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के लिए भले ही फसलों की कम हो रही पैदावार और सही मंडी की कमी समेत कई कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन दूसरे पक्ष से देखा जाए तो बढ़ रहे खेती खर्च भी किसानों की कमर तोड़ रहे हैं।

गुरदासपुर(हरमनप्रीत): किसानों के सिर पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के लिए भले ही फसलों की कम हो रही पैदावार और सही मंडी की कमी समेत कई कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन दूसरे पक्ष से देखा जाए तो बढ़ रहे खेती खर्च भी किसानों की कमर तोड़ रहे हैं। खाद व दवाइयों का इस्तेमाल करने के मामले में कई किसान प्राइवेट कंपनियों द्वारा बनाए चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। किसान फसलों की समस्याओं के समाधान के लिए खेती विशेषज्ञों के पास जाने की बजाय सीधा डीलर के पास जाकर खुद को लुटवाते हैं।

झूठा प्रचार कर डलवा दी जाती हैं हजारों टन खाद व दवाइयां
कई कंपनियां अपनी खाद दवाइयों और अन्य उत्पादों की खपत बढ़ाने हेतु इस हद तक झूठा प्रचार करती हैं कि किसानों द्वारा प्रतिवर्ष बासमती और धान के फसलों में बिना जरूरत ही हजारों टन अनावश्यक दवाइयां डाल दी जाती हैं। पंजाब सरकार ने इस बार सख्ती करते हुए 9 हजार के करीब जहरों का इस्तेमाल रोकने तथा किसानों को जागरूक करने के प्रयास शुरू किए हैं, लेकिन अभी भी कई कंपनियों के प्रतिनिधि दवाइयां बेचने के बड़े लक्ष्य पूरा करने हेतु बासमती और धान में कीटनाशक रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग करवाने का प्रयास करते हैं। इस गोरख धंधे में कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ कीटनाशक बेचने वाले कई डीलर भी शामिल हैं। इन डीलरों को कंपनियां अधिक से अधिक दवाई बेचने पर बड़ा डिस्काऊंट या विदेशों में नि:शुल्क घुमाने का पैकेज देती हैं।

फफूंद रोग खत्म करने के लिए भी करवा दिया जाता है कीटनाशकों प्रयोग
बासमती के पौधे के लंबे होकर सूखने की बीमारी फफूंद से फैलती है, जिसका एक बार हमला होने के बाद कोई उपचार नहीं हो सकता। कई बीमारियां नाइट्रोजन खाद के अधिक इस्तेमाल के कारण हमला करती हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए विशेषज्ञों द्वारा कुछ विशेष किस्म की दवाइयों का इस्तेमाल करने की सिफारिश की जाती है। इसके विपरीत किसान खेतों में ऐसी बीमारियों की रोकथाम के लिए दवाई विक्रेताओं के कहने पर दानेदार कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं जिसका कोई फायदा नहीं होता। 

बीमारियों की निशानियों और रोकथाम संबंधी नहीं है जानकारी 
किसानों को अभी तक इस बात की भी पूरी जानकारी नहीं है कि किस बीमारी के क्या लक्षण हैं और उसकी रोकथाम कैसे करनी है। बासमती की फसल पर पैरों के गलने (फुट-राट), भुरड़ रोग, झुलस रोग, तने का गलना और कांगियारी जैसी बीमारियों का तकरीबन प्रत्येक वर्ष हमला होता है। इनमें से एक बीमारी फुट-राट एक दुश्मन फफूंद से फैलती है। जिसके हमले से प्रभावित पौधे दूसरे पौधों से ऊंचे हो जाते हैं। प्रभावित पौधे पीले पडऩे के बाद नीचे से ऊपर की ओर मुरझा कर सूखने शुरू हो जाते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए पी.ए.यू. द्वारा बासमती के बीजों के शोधन और फसल पर कुछ दवाइयों का छिड़काव करने की सिफारिश की गई है। झुलस रोग के हमले से पत्तों पर हरी-पीली धारियां बन जाती हैं और पत्ता नोक की ओर से मुड़ कर सूखना शुरू हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए नाइट्रोजन का प्रयोग अधिक नहीं करना चाहिए। पत्तों में धारियां पडऩे वाले रोग के हमले से पत्तों की नाड़ के बीच बारीक  धारियां पड़ जाती हैं जिसकी रोकथाम के लिए बीज का शोधन कर उसे बीजना चाहिए। भूरड़ रोग के हमले से पत्तों पर सलेटी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे बाद में मुंजरा को जड़ों पर काले दाग पड़ जाते हैं। अगर फसल पर भूरे धब्बों के रोग का हमला हो जाए तो गोल आंख की शक्ल जैसे, बीच में से गहरे भूरे और बाहर से हलके भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में दानों पर भी देखने को मिलते हैं। इसके अलावा तने के गलने वाले रोग की रोकथाम हेतु फसल को निरंतर पानी नहीं देना चाहिए और नाइट्रोजन वाली खाद का इस्तेमाल भी सिफारिश अनुसार करना चाहिए। रूड़ी और नाइट्रोजन वाली खाद के अधिक इस्तेमाल से कांगियारी का हमला अधिक होता है जिससे दानों के स्थान पर हरे रंग की फफूंद के गोले जैसे बन जाते हैं। बंट नाम की बीमारी का हमला होने से कई बार सारा दाना ही काला पाऊडर बन जाता है। इसकी रोकथाम के लिए नाइट्रोजन खाद का अधिक इस्तेमाल करने से संकोच करने के साथ-साथ सिफारिश की हुई दवाइयों का छिड़कवा करना चाहिए। दवाइयों का चयन करते समय सबसे जरूरी है कि किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें, क्योंकि अनावश्यक दवाई खेती खर्च तो बढ़ाती ही है, इससे बासमती चावल में जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंडी में बासमती के मंडीकरण में अड़चने पैदा हो जाती हैं।  
 

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