Edited By Vatika,Updated: 30 Sep, 2024 10:38 AM
घर के अंदर पालतू जानवर के काटने या खरोंच से रैबीज होने के मामले पूरे देश में बीते सालों में तेजी से बढ़े हैं।
जालंधर: घर के अंदर पालतू जानवर के काटने या खरोंच से रैबीज होने के मामले पूरे देश में बीते सालों में तेजी से बढ़े हैं। आंकड़ों के मुताबिक 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग पालतू जानवर के काटने के बाद रैबीज टीकाकरण के लिए अस्पताल पहुंचे हैं। इनमें से भी 98 प्रतिशत से ज्यादा मामले कुत्तों के काटने और दो फीसदी से बिल्ली, बंदर या किसी जंगली जानवर के काटने से थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक रैबीज के लक्षण औसतन 2 से 3 महीने में दिखने लगते हैं। दुनिया में केवल 8 लोग रैबीज के बाद बच पाए हैं। इनमें से 7 को पहले ही वैक्सीन लगी थी और एक प्रतिरोधक क्षमता के कारण बच सका था, यानी एक बार रैबीज हुआ तो मौत तय है।
भारत में हर साल रैबीज से 20 हजार मौतें
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यू.एच.ओ. के मुताबिक मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका के साथ 150 से ज्यादा देशों में रैबीज का खतरा है। पूरी दुनिया में में रैबीज से 70 हजार लोगों की मौत हो जाती है, जबकि भारत में 20 हजार लोगों की हर साल इससे जान चली जाती है। इनमें भी 40 प्रतिशत से ज्यादा 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। शहरों की तुलना में गांव के इलाकों की स्थिति बेहद नाजुक है। रैबीज के टीकाकरण की जानकारी न होने और कम संसाधनों के चलते हालात बिगड़ते हैं।
क्या बरतें सावधानी
इंस्टीट्यूट ऑफ मैडीकल साइंस बी.एच.यू. वाराणसी के निदेशक डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता के मुताबिक रैबीज के 40 फीसदी मामले पालतू या घरेलू जानवरों से जुड़े हैं। कुत्तों और बिल्ली के बच्चों को 3 से 4 सप्ताह के अंतराल पर कई टीके लगवाने होते हैं। साथ ही 6 महीने या एक साल और 3 साल में बूस्टर टीके की डोज लगवानी होती है, लेकिन जानवर पालने वाले अक्सर इसकी अनदेखी करते हैं।
रैबीज के बारे में कुछ बातेंः-
* रैबीज से पीड़ित व्यक्ति के लिए कोई प्रभावी इलाज नहीं होता।
* भारत में रैबीज के मामले सबसे ज्यादा हैं।
* जिन लोगों को रैबीज होने का खतरा हो, उन्हें रैबीज का टीका लगवाना चाहिए
* रैबीज से पीड़ित व्यक्ति के लिए कोई प्रभावी इलाज नहीं होता।
* भारत में रैबीज के मामले सबसे ज्यादा हैं।
* जिन लोगों को रैबीज होने का खतरा हो, उन्हें रैबीज का टीका लगवाना चाहिए।
क्या हैं रैबीज के लक्षण
* सुस्ती, बुखार, उल्टी और भूख न लगना।
* मस्तिष्क संबंधी शिथिलता, कमजोरी और पक्षाघात ।
* सांस लेने और भोजन निगलने में कठिनाई।
* अत्यधिक लार आना, असामान्य व्यवहार, आक्रामकता।
* पानी पीने में असमर्थता या पानी से डर लगना।
* हवा के झोंके से डर या रोशनी से डर।