अस्पताल पहुंचने से पहले ही ‘बिक’ जाते हैं मरीज

Edited By Vatika,Updated: 11 Dec, 2019 03:15 PM

patient in hospital

एक तरफ सरकार लोगों को बेहतर मैडीकल सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए दिन-रात एक करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर निजी व कॉर्पोरेट अस्पताल ज्यादा मरीज अपनी ओर खींचने के लिए कमीशन का खेल खेल रहे हैं।

लुधियाना (सहगल): एक तरफ सरकार लोगों को बेहतर मैडीकल सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए दिन-रात एक करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर निजी व कॉर्पोरेट अस्पताल ज्यादा मरीज अपनी ओर खींचने के लिए कमीशन का खेल खेल रहे हैं। दूर-दराज के क्षेत्रों में बैठे डाक्टर व छोटे अस्पतालों से संपर्क करने के लिए मार्कीटिंग टीमें तैनात की गई हैं, जो पंजाब व आसपास के राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर डाक्टरों को उचित प्रलोभन देने के लिए जुटे हुए हैं। यह धंधा इतना व्यापक रूप धारण कर चुका है कि इस पर अंकुश लगाना नामुमकिन दिखाई दे रहा है। हालांकि राज्य में एथिकल प्रैक्टिस के विरुद्ध काम करने वालों पर अंकुश लगाने के लिए पंजाब मैडीकल काऊंसिल जैसे संस्था है परंतु वह भी पिछले कई महीनों से सुप्त अवस्था में पड़ी दिखाई दे रही है।

 क्लीनिक, नर्सिंग होम्स के बाद कैमिस्टों तक पहुंचा धंधा
सूत्रों की मानें तो कमीशन का यह धंधा निजी क्लीनिकों, नॄसग होम, छोटे अस्पतालों से आगे बढ़ता हुआ कैमिस्टों तक जा पहुंचा है। इन कॉर्पोरेट संस्थाओं के प्रतिनिधि अब कैमिस्ट को भी अपने यहां मरीज भेजने पर उचित कमीशन का प्रलोभन दे रहे हैं। 10 हजार का बिल बनने पर रैफर करने वाले कैमिस्ट, डॉक्टर अथवा अस्पताल को 4 हजार का कमीशन ऑफर किया जा रहा है। जबकि 10 हजार से अधिक पर कमीशन की दर बढ़ जाती है। इसी तरह मरीज रैफर करने पर अगर बिल 20 हजार बनता है तो उस पर 6500 रुपए कमीशन ऑफर किया जा रहा है और 25 हजार बिल बनने पर 9 हजार रुपए कमीशन, अगर किसी तरह की हड्डियां टूटने पर मरीज को ऑर्थो विभाग में किसी अस्पताल में रैफर किया जाता है तो उस पर 30 प्रतिशत कमीशन ऑफर किया जा रहा है। जबकि ई.एन.टी. विभाग में मरीज रैफर करने पर 30 प्रतिशत, जनरल सर्जरी के लिए भेजे मरीज पर 55 प्रतिशत तक कमीशन ऑफर की जा रही है। यही आलम अन्य विभागों के लिए भी तय किया गया है। यह धंधा डायग्नोस्टिक सैंटरों व लैबोरेटरी के अलावा है जहां डाक्टरों के लिए पहले से ही कमीशन तय की जा चुकी है। हाल ही में धंधा मंदा पड़ते देख एक कॉर्पोरेट अस्पताल ने दिल्ली से एक मार्कीटिंग टीम का अनुभवी कारिंदा आयात किया है जो मरीजों को रैफर करने पर उनके भाव तय करने में एक्सपर्ट माना जाता है और तो और कई छोटे-बड़े अस्पताल एम्बुलैंस से मरीज उनके अस्पताल लाने पर उन्हें हथेली गरम करने के ऑफर देने से पीछे नहीं हटते। ऐसे मरीज की जान भी खिलौना मात्र बनकर रह गई है और उन पर उपचार का भार पहले से कई गुना अधिक बढ़ गया है।

पैकेज से अधिक बढ़ जाते हैं मरीजों के बिल
अधिकतर बड़े अस्पतालों में अक्सर देखने में आया है कि निर्धारित पैकेज से कहीं अधिक मरीजों के बिल बढ़ जाते हैं और बहुत बार पैकेज से 50 हजार से लेकर डेढ़-2 लाख तक मरीजों को अधिक देना पड़ता है। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री की बात पर ध्यान दें तो उनके एक बयान अनुसार कई  अस्पतालों में मरीजों को मरने के बाद भी वैंटीलेटर लगाकर रखा जाता है ताकि बिल बढ़ता रहे और उनकी जेब भरती रहे।

 कई अस्पताल कर रहे हैं एथिकल प्रैक्टिस 
जहां एक ओर कई अस्पताल एथिकल प्रैक्टिस से जुड़े हुए हैं वहीं कुछ निजी और कॉर्पोरेट  अस्पताल अपनी टर्नओवर बढ़ाने के चक्कर में मरीजों का दोहन करने में जुटे हुए हैं। मोहन देई ओसवाल हॉस्पिटल के प्रबंधकों का कहना है कि उन्होंने अपने अस्पताल में कोई भी मार्कीटिंग की टीम नहीं रखी, हां वैसे वह ऐसी टीम रखने की सोच रहे हैं जो लोगों को गांव-गांव जाकर कैंसर व अन्य बीमारियों से बचाव के प्रति जागरूक करे। उन्होंने बताया कि उनका अस्पताल चैरीटेबल अस्पताल है जहां मरीजों को कैंसर का आधुनिक उपचार कम पैसों पर उपलब्ध कराया जाता है। वहीं दयानंद अस्पताल के प्रबंधकों का कहना है कि वे मरीजों को अस्पताल में दवाइयां खरीदने पर न सिर्फ डिस्काऊंट देते हैं बल्कि गरीब मरीजों को वार्ड में भर्ती होने पर बिल में छूट भी दे रहे हैं जिसके पीछे उनका उद्देश्य मरीजों को कम पैसे में अति आधुनिक उपचार प्रदान करना है। 

पहले कुछ अस्पतालों की होगी जांच
सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार बग्गा के अनुसार प्रथम चरण में कुछ निजी अस्पतालों जिनमें कुछ कॉर्पोरेट अस्पताल भी शामिल हैं, से डेंगू के मरीजों की रिपोर्टों को तलब किया जाएगा। उसमें यह देखा जाएगा कि डेंगू के टैस्ट के लिए कितने पैसे मरीज से लिए गए। बाद में अन्य अस्पतालों को भी इस जांच में शामिल कर लिया जाएगा। डेंगू के टैस्ट से अधिक पैसे मरीजों से लिए जाने की बात सामने आने पर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा डेंगू की जांच एलाइजा विधि से करने को कहा गया है पर अधिकतर अस्पतालों के पास एलाइजा विधि से डेंगू की जांच करने के तकनीक ही नहीं है। ऐसा उन्हें पता चला है शेष जांच में सब सामने आ जाएगा। सिविस अस्पताल में डेंगू की जांच व उपचार के व्यापक प्रबंध हैं, लोग बेझिझक होकर सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाएं। 


सरकार को भेजी जाएगी ज्यादा फीस वसूलने वालों की लिस्ट
डेंगू का सीजन शुरू होने से पहले ही सरकार द्वारा नोटीफिकेशन जारी कर डेंगू के टैस्टों के दाम निर्धारित कर दिए गए। नोटीफिकेशन में डेंगू के टैस्ट के लिए 600 रुपए तय किए गए जबकि  निजी अस्पताल मरीजों से 1200 से 1600 रुपए तक वसूल करते रहे। सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार बग्गा का कहना है कि शीघ्र ही इस मामले में जांच शुरू की जाएगी और अस्पतालों से मरीजों के बिल मंगवाए जाएंगे जिन अस्पतालों ने डेंगू टैस्ट के 600 रुपए से अधिक वसूले हैं उनकी रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेज दी जाएगी, फिर जैसे सरकार से निर्देश आएंगे अस्पतालों पर उचित कार्रवाई की जाएगी। अस्पतालों की इसके लिए कड़ी कार्रवाई से गुजरना पड़ सकता है क्योंकि सरकार द्वारा ऐसा नोटीफिकेशन पिछले कई वर्षों से जारी किया जा रहा है तथा अस्पताल बार-बार उसका उल्लंघन कर रहे हैं और बदनामी पंजाब सरकार की हो रही है।


डेंगू के नाम पर हो रही लूट
माहिरों का कहना है कि डेंगू के साथ-साथ वायरल के बहुत से मरीज सामने आते हैं दोनों ही मामलों में मरीज के प्लेटलैट्स की संख्या नीचे आ जाती है। ऐसे में मरीजों को डेंगू का अंदेशा  दिखाकर अस्पताल में भर्ती होने को कहा जाता है। अस्पताल में भर्ती होने पर उसे कई दिन तक इलाज के नाम पर रोके रखा जाता है। जिला मलेरिया अफसर की मानें तो उनके द्वारा की गई क्रॉस चैकिंग में बहुत से डेंगू के मामले नैगेटिव हो जाते हैं।

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