Kisan Andolan: मोदी का 'विपक्ष' को घेरने का पैंतरा क्या BJP को पड़ेगा महंगा?

Edited By Tania pathak,Updated: 22 Dec, 2020 10:44 AM

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प्रधानमंत्री को अपनी सरकार चारों ओर से घिरी दिखाई दे रही है तो अब यह एक नया राजनीतिक पैंतरा खेलते हुए सारी की सारी गाज अपने राजनीतिक ‘विरोधी पक्ष’ या विपक्ष पर गिरा खुद को पाक साफ बताना चाह रहे हैं।

मजीठा (सर्बजीत): एक तरफ चल रहे कोरोना काल और दूसरी तरफ पड़ रही कड़ाके की ठंड के बावजूद किसान जत्थेबंदियों द्वारा जारी रखे जा रहे देश व्यापिक आंदोलन में अब जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी सरकार चारों ओर से घिरी दिखाई दे रही है तो अब यह एक नया राजनीतिक पैंतरा खेलते हुए सारी की सारी गाज अपने राजनीतिक ‘विरोधी पक्ष’ या विपक्ष पर गिराकर खुद को पाक साफ बताना चाह रहे हैं। 

परन्तु किसान जत्थेबंदियां इतनी बुद्धू नहीं हैं कि उनको किसी बात की समझ न हो, परन्तु आज यहां यह बताना लाजिमी है कि देश के किसानों द्वारा शुरू किए गए देश व्यापिक आंदोलन को केवल तीन हफ्तों का ही समय हुआ होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों के आंदोलन को प्रचंड होता देखकर अपनी जुबान का ताला खोलते हुए मीडिया के जरिए किसान जत्थेबंदियों के सामने आकर बयान दे रहे हैं कि कृषि कानून किसानों के लाभ के लिए बनाए गए हैं और किसान किसी के भी गुमराह या बहकावे  में न आएं और अपना आंदोलन खत्म करें। 

लेकिन ऐसा इतनी जल्द संभव नहीं हो सकता, क्योंकि देशभर की किसान जत्थेबंदियों को मोदी सरकार ने ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है कि अब उनका वापस खाली हाथ लौटना मुनासिब नहीं लग रहा, क्योंकि देश के किसान को अन्नदाता इसलिए कहा जाता है कि एक तो वह जमीन में से अन्न की उपज करके समूचे देश का पेट पाल रहा है और दूसरा अपने मन में देश भर के किसान ‘खेती विरोधी कानून रद्द करो’ की मांग को मुख्य रखते हुए दिल्ली घेरी बैठे मोदी सरकार को घुटने-टेकने के लिए मजबूर करने की मनसा लिए हुए हैं। 

परन्तु अब देखना यह होगा कि क्या देश के प्रधानमंत्री जो कृषि कानूनों में संशोधन करने की बात किसान जत्थेबंदियों से कहते हुए विश्वास दिला रहे हैं कि यह कानून किसानों के लिए लाभप्रद रहेंगे, से लगता है कि किसानों के इस देश व्यापिक आंदोलन को दिनों-दिन उग्र होते देख किसी न किसी ढंग ये असफल बनाने की योजनाएं बनाकर किसान जत्थेबंदियों को बेरंग वापस भेजने की तैयारी में है, लेकिन यह तो अब आने वाली 25 दिसम्बर को ही पता चलेगा कि देश के प्रधानमंत्री किसानों के आगे अपनी रखने वाली बात में कौन-सा राजनीतिक दाव अंदर ही अंदर खेलते हैं, जिससे यह अंदोलन किसी न किसी ढंग खत्म किया जा सके। 

अंग्रेजों को भी उक्त कानून लेने ही पड़े थे वापस 
केंद्र सरकार की तरफ के पास किए गए तीन किसान विरोधी कानूनों की बात की जाए तो अब इन कानूनों को लेकर राजनीतिक फिजाओं में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि मोदी सरकार अंग्रेजों की सरकार की तर्ज पर चलती हुई लोगों व किसानों का बर्बाद करने की योजना बनाई बैठी है, क्योंकि यह जो कानून मोदी सरकार ने पास किए हैं। इसी तरह के कानून 1907 में अंग्रेज अपनी सरकार के समय लेकर आए थे, जिनके विरोध में उस समय के किसानों की तरफ से ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लहर चलाई, जो 7 महीनों तक चली और आखिरकार इस लहर के चलते अंग्रेजों को यह कानून वापस लेने ही पड़े थे और अब मोदी सरकार ने जो यह किसान विरोधी तीनों कानून पास किए हैं, वह अंग्रेजों की सरकार के समय पास किए कानूनों के साथ मिलते-जुलते कहे जा रहे हैं, परन्तु अब भविष्य में यदि यह खेती विरोधी बिल मोदी सरकार वापस नहीं लेती तो फिर किसान जत्थेबंदियां और मोदी सरकार के बीच ‘पेच’ फंसना स्वाभाविक है और यदि इन पास किए कानूनों को लेकर देश के हालात खराब होते हैं तो उसके लिए यदि मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा लिया जाए तो कोई अतिकथनी नहीं होगी, क्योंकि बुजुर्गों का कहना है कि ‘हाथों की बंधी दांतों से खोलनी पड़ती है।’

विपक्ष को हो सकता है किसान आंदोलन का लाभ
कृषि कानूनों को पास किए जाने को लेकर विगत दिवस अपनी बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से जो ‘गाज’ राजनीतिक विरोधी पक्ष या कि विपक्ष पर गिराई जा रही है, वह भाजपा को महंगी पड़ सकती है, क्योंकि इसी समय विपक्ष किसी भी तरह से अपने पत्ते नहीं खोलना चाह रहा और रही बात किसानों को वरगलाने और उनको अंदोलन करने के लिए उकसाने की, से जो लाभ विपक्ष द्वारा लिए जाने की बात को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा विपक्ष पर कीचड़ फैंका जा रहा है, वह सब जानते हैं, परन्तु मोदी जी को यह भूलना चाहिए कि इन कानूनों के पास करने और करवाने में आपकी सरकार का सबसे बड़ा हाथ है, जो किसान जत्थेबंदियां भली-भांति जानती है। 

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