Edited By Vatika,Updated: 20 Apr, 2021 11:01 AM
पंजाब में चुनावों को 1 वर्ष से भी कम समय शेष रह गया है जिसके चलते चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं
जालंधर (पुनीत): पंजाब में चुनावों को 1 वर्ष से भी कम समय शेष रह गया है जिसके चलते चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं और सभी पार्टियों की नजरें दलित वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने पर टिकी हुई हैं। भाजपा की बात की जाए तो वह इस बार पंजाब में अकाली दल से अलग होकर चुनाव लडऩे वाली है जिसके चलते वह दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करके मजबूत जनाधार बनाना चाहती है। इसके लिए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने 14 अप्रैल को घोषणा की है कि भाजपा के पंजाब में सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री दलित समाज से होगा।
वहीं, पार्टी के स्टेट ऑर्गेनाइजिंग सैक्रेटरी दिनेश कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि पार्टी ने इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया है। जब उनसे तरुण चुघ की घोषणा बारे बात की गई तो उन्होंने कहा कि भाजपा दलितों का सम्मान करने वाली पार्टी है लेकिन सी.एम. का फैसला फिलहाल नहीं लिया गया है। तरुण चुघ के बयान के बारे में उन्हीं से बात की जाए तो बेहतर होगा। वहीं, जब तरुण चुघ से मीडिया द्वारा व्हाट्सएप कॉल, टैक्स्ट मैसेज आदि के जरिए उनकी प्रतिक्रिया पूछने की कोशिश की गई तो उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया। वहीं, राजनीति से जुड़े माहिरों का कहना है कि चुघ द्वारा इस तरह का बयान दिया जाना कई तरह के प्रश्न खड़े करता है। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हाईकमान से हरी झंडी लिए बिना ही यह घोषणा कर दी गई या केवल चुघ को ही इस अहम फैसले की जानकारी दी गई थी?
सबसे अहम यह भी है कि इस तरह के बड़े फैसले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ही लिए जाते हैं और वह खुद बड़ी रैलियों में इस तरह की घोषणा करते हैं। प्रधानमंत्री अभी ममता के गढ़ में चुनावी रैलियों में व्यस्त हैं और जब पंजाब की ओर ध्यान देंगे तो स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। भाजपा नेताओं का मानना है कि पंजाब में यदि पार्टी को अपने बलबूते पर सत्ता में आना है तो उसे कई बड़े फैसले लेने होंगे क्योंकि यह पहली बार है जब भाजपा अपनी पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल से अलग होकर चुनाव लडऩे जा रही है।