Edited By Tania pathak,Updated: 24 Jul, 2020 05:54 PM
यदि पता होता कि बुढापे में उसे ऐसे दिन देखने पड़ेंगे तो वह कभी अपने पुत्र को फ़ौज भर्ती न होने देती...
मानसा (अमरजीत): केंद्र और पंजाब की सरकार की तरफ से कारगिल की जंग के बाद बेशक शहीदों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने समेत ओर कई सहूलतें देने की शुरुआत की गई थी परन्तु इस जंग में सरहदों की रक्षा करते शहीद होने वाले जवानों के परिवारों को कोई भी सुविधा न मिलने के कारण इन शहीदों के पारिवारिक मैंबर आज भी सरकार की बेरुख़ी कारण निराश हैं। ख़ास तौर पर अब जब अब सारा देश कारगिल लड़ाई की 21 साल होने के मौके सभी शहीद सैनिकों को श्रद्धाँजलि भेंट कर रहा है तो 1999 से पहले शहादत का जाम पीने वाले सैनिकों के परिवार मायूसी के आलम में गुज़र रहे हैं।
मानसा के गाँव कुसला का जवान निर्मल सिंह भी कारगिल की जंग में शहादत का जाम पी गया था। अब उसकी माँ जगीर कौर (80) घर में अकेली रहती है। सरकार की तरफ से कोई भी सहायता न मिलने कारण वह मनरेगा में मज़दूरी करने के लिए मजबूर है। बीते दिनों बरसात कारण उसके घर में पानी भर गया और कमरो की छत भी गिर गई परन्तु सरकार की तरफ से उसकी कोई मदद नहीं की गई।
यहाँ तक कि उसे बुढापा पैंशन तक नहीं मिल रही। वह दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है, जिस कारण दुखी हो कर ईश्वर से मौत माँग रही है। शहीद की माता ने कहा कि यदि पता होता कि बुढापे में उसे ऐसे दिन देखने पड़ेंगे तो वह कभी अपने पुत्र को फ़ौज भर्ती न होने देती।
गाँव की पंचायत ने बताया कि शहीद निर्मल सिंह का बुत एक प्राइवेट संस्था ने लगाया है जबकि सरकार ने शहीद की यादगारी बनाने का कोई यत्न नहीं किया। उन्होंने बताया कि गाँव के स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखा गया था परन्तु सरकार ने इस को मंज़ूर नहीं किया सिर्फ़ दिखावे के लिए बोर्ड पर नाम लिख दिया। उन्होंने कहा कि शहीद की माता की हालात ख़राब हैं वह ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव पर भारी मुश्किलों का सामना कर रही है। उन्होंने सरकार को माँग की कि माता की मदद की जाये।