Jalandhar: नगर निगम का खजाना खाली, बिल्डरों, कॉलोनाइजरों और डिफाल्टरों से...

Edited By Urmila,Updated: 08 Sep, 2024 10:09 AM

municipal corporation treasury is empty builders colonizers and

33 साल पहले 1991 में बने जालंधर नगर निगम ने कभी भी पैसों की तंगी का मुंह नहीं देखा। यहां अकाली भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रहीं पर ऐसी नौबत कभी नहीं आई कि निगम को अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़े हों।

जालंधर : 33 साल पहले 1991 में बने जालंधर नगर निगम ने कभी भी पैसों की तंगी का मुंह नहीं देखा। यहां अकाली भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रहीं पर ऐसी नौबत कभी नहीं आई कि निगम को अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़े हों। अब पिछले अढ़ाई साल से पंजाब में आम आदमी पार्टी का राज है और जालंधर निगम में लोकतंत्र गायब है। निगम में अफसरों का राज है। ऐसे में जालंधर निगम का खजाना लगभग खाली हो गया है और सितम्बर महीने का पहला सप्ताह बीत जाने के बावजूद निगम ने अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को अभी तक वेतन अदा नहीं किया है। यह वेतन पहली तारीख को कर्मचारियों के खातों में चला जाना शुरू हो जाता है पर निगम का अकाऊंट्स विभाग फिलहाल लाचार-सा दिख रहा है।

पंजाब सरकार ने अभी तक नहीं भेजा जी.एस.टी. शेयर

जब से चुंगियां खत्म हुई हैं, तब से जालंधर निगम पूरी तरह से पंजाब सरकार द्वारा दी जाने वाली जी.एस.टी. शेयर की राशि पर निर्भर हो चुका है। जब भी पंजाब सरकार जी.एस.टी. शेयर की राशि देने में देरी करती है, निगम कर्मचारियों का वेतन लेट हो जाता है। गौरतलब है कि सरकार हर महीने निगम को 11-12 करोड़ रुपए जी.एस.टी. शेयर के रूप में भेजती है जिसे वेतन देने पर ही खर्च कर दिया जाता है। वैसे निगम का कुल वेतन खर्च 15 करोड के लगभग है।

बिल्डरों, कालोनाइजरों, डिफाल्टरों से वसूली की ओर ध्यान नहीं

- निगम के बिल्डिंग विभाग द्वारा काटे गए चालानों में ही करोड़ों रुपए छिपे हुए हैं जिनकी ओर निगम अधिकारियों ने पिछले समय दौरान कोई ध्यान नहीं दिया। आज भी चालान काटकर फाइल कर दिया जाता है, बिल्डिंग बनकर तैयार हो जाती है। अधिकारी बदल जाते हैं, चालान वहीं का वहीं रह जाता है।

लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों की भी कोई जवाबतलबी नहीं होती

- यदि शहर में हर कॉलोनी मंजूरशुदा हो और हर बिल्डिंग का नक्शा पास हो तो जालंधर निगम को 100 करोड़ रुपए आसानी से आ सकते हैं। ब्रांच को साल में आते सिर्फ 10-20 करोड़ हैं। इस प्रकार जालंधर निगम को हर साल 80-90 करोड रुपए के रैवेन्यू का नुकसान झेलना पड़ रहा है ।

- शहर में हजारों वाटर सीवर कनैक्शन अवैध चल रहे हैं जिन्हें वैध करने के लिए स्टाफ नहीं है। बहुत से लोग निगम से लाइसैंस नहीं ले रहे पर निगम सख्ती भी नहीं कर रहा। लोग जाली एन.ओ.सी. बनाकर लाखों रुपए का रैवेन्यू चोरी कर रहे हैं पर निगम कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रहा। अच्छी-भली सड़कों को तोड़कर दोबारा बनाए जाने संबंधी एस्टीमेट बन रहे हैं पर किसी को जवाबदेह नहीं बनाया जा रहा।

- नगर निगम ने अभी तक जी.आई.एस. सर्वे के डाटा का इस्तेमाल टैक्सेशन सिस्टम पर लागू नहीं किया है जिस कारण निगम को भारी आर्थिक हानि हो रही है पर इस लापरवाही की ओर किसी का ध्यान नहीं।

- निगम ने दर्जनों कॉलोनाइजरों से करोड़ों रुपए लेने हैं पर उन्हें डिमांड नोटिस ही नहीं भेजे जा रहे। इस मामले में नालायकी बरतने वाले अफसरों पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही।

- निगम ने कई सालों से पुडा से 23 करोड़ रूपए लेने हैं। इस बाबत नोटिस भी भेजा जा चुका है पर कार्यवाही कोई नहीं हो रही।

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