Edited By Kamini,Updated: 08 Aug, 2025 03:39 PM

यहां तक कि कई जगहों पर जमीनों के रेट आधे रह गए हैं।
गुरदासपुर (हरमन): पंजाब की युवा पीढ़ी के विदेशों में जाकर काम करने के रुझान ने जहां राज्य के बहुत से गांवों को युवाओं से खाली कर दिया है, वहीं इस प्रवास का राज्य के विभिन्न व्यवसायों पर भी बड़ा असर पड़ा है। विशेष रूप से, कृषि प्रधान इस राज्य में 12वीं पास करने के बाद से ही युवा लड़के और लड़कियों द्वारा पिछले एक दशक में तेजी से विदेशों का रुख करने के चलते अब हालात ये बन गए हैं कि ज्यादातर गांवों में खेती का काम या तो प्रवासी मजदूरों के हवाले रह गया है या फिर ज्यादातर किसान अब मशीनों के भरोसे ही खेती का काम कर रहे हैं।
हालात ये बन गए हैं कि जिन जमीनों के रेट पिछले 2 दशकों में तेजी से आसमान छूने लगे थे, उन जमीनों के रेट अब औंधे मुंह गिर गए हैं। यहां तक कि कई जगहों पर जमीनों के रेट आधे रह गए हैं। अगर तेजी से बढ़ती महंगाई के साथ जमीनों के रेट में हुए इजाफे की तुलना करें तो पिछले करीब एक दशक में जमीनों के रेट में न के बराबर ही इजाफा हुआ है।
डेढ़ दशक पहले कारोबारियों ने की थी मोटी कमाई
करीब 15-20 साल पहले ग्रामीण जमीनों के रेट में इतना उछाल आया था कि सामान्य जमीनों के रेट 10-15 लाख प्रति एकड़ से बढ़कर 30 लाख रुपए तक पहुंच गए थे। यहां तक कि बहुत सारी जमीनों को किसान सिर्फ इसलिए बेचने के लिए तैयार हो जाते थे कि उन्हें जमीन का रेट कई गुना ज्यादा मिल जाता था। इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों के पास की खेती योग्य जमीनों को प्लॉटों के रूप में बदलने का रुझान भी इतने बड़े स्तर पर शुरू हुआ था कि जिन लोगों को कोई और कारोबार नहीं मिलता था, उन्होंने भी इस कारोबार में किस्मत आजमाने के लिए जमीनों की खरीद-फरोख्त का काम शुरू किया था। इसके चलते अनेक जमीनें रजिस्ट्री से पहले बयाना के आधार पर ही कई बार बिक जाती थीं और इनसे संबंधित व्यापारी मोटी कमाई कर लेते थे। उस समय जमीनों की खरीद-फरोख्त करने वाले बड़े कारोबारी और लैंड प्रमोटर अच्छी कमाई कर चुके हैं।
प्रवासी पंजाबियों का बदलता रुझान
पंजाब में युवाओं को रोजगार की कमी और अन्य कई कारणों से अब अधिकतर युवा लड़के-लड़कियां यहां पढ़ाई करने की बजाय विदेशों में जाने को तरजीह देने लगे हैं। इसके साथ ही, जमीनों को लेकर प्रवासी पंजाबियों का रुझान भी बदल चुका है। कुछ साल पहले तो पंजाब के युवा जब विदेशों में जाकर अच्छी नौकरियां या कारोबार करने लगते थे, तो वे विदेशों में कमाए पैसे को पंजाब में भेजकर गांवों में जमीनें खरीदना अपनी शान समझते थे। ऐसे कई प्रवासियों के फार्म हाउस और गांवों में बहु-मंजिला घर इन प्रवासियों की शान और सफलता की कहानी बयान करते थे। लेकिन अब स्थिति इसके उलट हो चुकी है, क्योंकि ज्यादातर युवा इस कोशिश में हैं कि वे अपनी जमीनें बेचकर विदेशों में जाकर कारोबार करें।
खेती में घाटे ने भी बदला रुझान
पिछले कुछ सालों से खेती के धंधे में आ रही कई गंभीर चुनौतियों ने भी किसानों का रुझान जमीनें खरीदने से बदल दिया है। खेती का धंधा लाभप्रद न रहने के कारण पहले ही युवा खेती के काम को तरजीह देना बंद कर चुके थे और कुछ ही बिरले युवा अब अपने घर पर खेती के कामकाज में रुचि दिखाते हैं। दिन-ब-दिन बढ़ते खेती के खर्चे और किसानों की बढ़ती मुश्किलों के कारण लोगों का खेती से मोह भंग होना शुरू हो रहा है, जिस कारण खेती की जमीनों के रेट कम होना स्वाभाविक है। यहां तक कि गांवों में जमीनों को ठेके पर लेने के इच्छुक किसान भी अब कम से कम राशि देकर जमीन ठेके पर लेना चाहते हैं, जबकि पहले यही जमीनें ठेके पर लेने के लिए किसान बढ़-चढ़कर बोली लगाते थे।
जमीन बेचने के लिए आतुर हैं युवा
टीम ग्लोबल गुरदासपुर और अमृतसर के वीजा सलाहकार गैवी क्लेर ने कहा कि रोजाना ही उनके पास कई युवा विदेश जाने संबंधी सलाह लेने और अन्य कार्रवाईयां पूरी करने के लिए आते हैं। उन्होंने कहा कि इन युवाओं में विदेश जाने की उत्सुकता इतनी ज्यादा होती है कि वे इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। जमीनें खरीदने संबंधी युवाओं का मोह इस हद तक भंग हो चुका है कि जब विदेश जाने के लिए युवाओं को फंड शो करने पड़ते हैं, तो ज्यादातर युवा अपने माता-पिता को इस बात के लिए मनाने की कोशिश करते हैं कि जमीन बेचकर उन्हें विदेश भेज दें। इस संबंध में डाला लैंड प्रमोटर के एम.डी. मनजीत सिंह डाला ने कहा कि आज भी अप्रूव्ड कॉलोनियों में प्लॉटों की खरीद-फरोख्त का कारोबार ठीक ढंग से चल रहा है।
उन्होंने कहा कि जहां तक जमीनों की बात है तो किसान हाथ से काम करने से मुंह मोड़ते जा रहे हैं और युवाओं का रुझान विदेशों की ओर हो चुका है। इसी कारण जमीनें खरीदने वालों में अब कॉम्पिटिशन कम है, जिसकी वजह से रेट ज्यादा नहीं बढ़ रहे। उन्होंने कहा कि सड़कों और शहरों के साथ लगती जमीनों के रेट अभी भी आसमान छू रहे हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि सभी जमीनों के रेट कम हैं। उन्होंने कहा कि जिस ढंग से दो दशक पहले जमीनों के रेट तेजी से बढ़े थे, उसके मुकाबले अब पिछले डेढ़ दशक में रेट एक तरह से स्थिर ही हुए पड़े हैं, जो जमीनों के मालिकों के लिए निराशाजनक है।
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