Edited By Sunita sarangal,Updated: 14 May, 2023 10:26 AM

जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 35 प्रतिशत के करीब वोट बैंक दलित समुदाय का होना और डेरा फैक्टर का प्रभाव होना भी इसका मुख्य कारण माना जा रहा था।
जालंधर: कांग्रेस का गढ़ रही जालंधर लोकसभा सीट (रिजर्व) रेत की भांति कांग्रेस के हाथों से फिसल गई और ‘आप’ के झाड़ू ने पहली बार इस सीट पर अपना परचम लहरा दिया परंतु कांग्रेस की हार के बाद पार्टी का एक बड़ा वर्ग हाईकमान द्वारा उम्मीदवार के चयन पर भी सवाल खड़े करने लग पड़ा है।
यूं तो संतोख चौधरी के अकस्मात निधन के बाद टिकट की रेस में पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का नाम सबसे आगे चल रहा था, क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनावों में जब आम आदमी पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीत कर राज्य में कांग्रेस का एक तरह से सूपड़ा साफ कर दिया था। मालवा क्षेत्र की 69 में 67 सीटें ‘आप’ ने जीतीं परंतु ऐसे समय में भी कांग्रेस जालंधर की 9 विधानसभा सीटों में से 5 पर परचम लहराने में कामयाब हुई थी।
जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 35 प्रतिशत के करीब वोट बैंक दलित समुदाय का होना और डेरा फैक्टर का प्रभाव होना भी इसका मुख्य कारण माना जा रहा था। वहीं कांग्रेस ने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतार कर चरणजीत चन्नी को पंजाब का पहला दलित मुख्यमंत्री बनाया और चन्नी ने बतौर मुख्यमंत्री जालंधर के डेरा बल्लां सहित अन्य डेरों में नतमस्तक होकर जहां अपना खासा प्रभाव बनाया वहीं दलित समुदाय में अपनी पैठ को भी बढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।
कांग्रेस क्यों नहीं ले पाई चन्नी को टिकट देने का फैसला?
चन्नी ने डेरा बल्लां में गुरु रविदास महाराज की बाणी के अध्ययन केंद्र की स्थापना के लिए 25 करोड़ रुपए की ग्रांट जारी की। ऐसे ही कई कारण रहे कि चन्नी उपचुनाव में उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेसियों की पहली पसंद बन कर उभरे थे, परंतु वरिष्ठ नेताओं का एक वर्ग ऐसा भी था जो नहीं चाहता था कि चन्नी को टिकट मिले। उन्होंने हाईकमान तक बात रखते हुए चन्नी के नाम का अंदरखाते विरोध करते हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का ठीकरा चन्नी के सिर फोड़ते हुए कहा कि हार के बाद चन्नी अमरीका चले गए और लगभग 9 महीने तक वहीं रहे, जिसका आम जनता में गलत प्रभाव पड़ा है।
वहीं विदेश से लौटने के बाद वह आय से अधिक संपत्ति के मामले में चर्चाओं में हैं। यहां तक कि पंजाब विजिलेंस ने चन्नी के खिलाफ लुकआऊट नोटिस जारी करते हुए उनके विदेश जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे हालात में अगर विवादों में घिरे चन्नी को टिकट दी गई तो कांग्रेस विपक्षी दलों के सीधा निशाने पर आ जाएगी। अगर इस बीच विजिलेंस ने कोई केस दर्ज कर दिया तो जहां कांग्रेस की किरकिरी होगी, वहीं पार्टी को हार का सामना करना पड़ेगा। अगर करमजीत चौधरी को टिकट दी जाती है तो जहां उन्हें संतोख चौधरी के किए कामों का लाभ मिलेगा, वहीं दिवंगत सांसद के निधन की सहानुभूति वोट भी मिल जाएगी।
घातक साबित हुआ बिना सर्वे उम्मीदवार का ऐलान
कांग्रेस हाईकमान ने कोई रिस्क न लेते हुए बिना कोई सर्वे कराए चुनाव तिथियों की घोषणा होने से करीब एक महीना पहले ही करमजीत चौधरी को टिकट देने का ऐलान कर दिया। हालांकि चरणजीत चन्नी ने जालंधर में धुआंधार चुनाव प्रचार करके ‘आप’ सरकार को आड़े हाथों लिया, वहीं अपनी सरकार के 111 दिनों के कामों को जनता के बीच मजबूती से रखा। चन्नी की जनसभाओं में एकत्रित भारी भीड़ को देख कांग्रेसी भी मानते रहे हैं कि चन्नी को ही जालंधर में चुनाव लड़ाया जाना चाहिए था।
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