अकाली दल का गढ़ माने जाने वाले ये 2 जिले कोर कमेटी से बाहर, खड़ी हो सकती है बड़ी चुनौती!

Edited By Urmila,Updated: 28 Jun, 2025 11:25 AM

barnala and sangrur out from akali dal core committee

शिरोमणि अकाली दल (बादल) द्वारा हाल ही में घोषित 31 सदस्यीय कोर कमेटी में से बरनाला और संगरूर जिलों को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है।

बरनाला (विवेक सिंधवानी, रवि): शिरोमणि अकाली दल (बादल) द्वारा हाल ही में घोषित 31 सदस्यीय कोर कमेटी में से बरनाला और संगरूर जिलों को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है, जिससे कभी अकाली दल का गढ़ रहे इन दोनों जिलों के राजनीतिक हलकों में हैरानी और निराशा का माहौल है। बरनाला और संगरूर जिलों के कुल 9 विधानसभा क्षेत्रों में से किसी भी अकाली नेता को इस महत्वपूर्ण कमेटी में जगह नहीं दी गई है, जो पार्टी के आंतरिक हलकों में चिंता का विषय बना हुआ है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब इन जिलों में अकाली दल पहले से ही अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है, और इसे पार्टी द्वारा एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिससे जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल और गिर सकता है।

एक समय था जब बरनाला और संगरूर जिलों को शिरोमणि अकाली दल की 'राजधानी' कहा जाता था। ये वे जिले थे जहां से अकाली दल लगभग सभी विधानसभा सीटों पर कब्जा करता था और पार्टी की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। स्वर्गीय सरदार सुरजीत सिंह बरनाला के समय से लेकर स्वर्गीय सुखदेव सिंह ढींडसा के दौर तक, इन जिलों में अकाली दल का दबदबा था और पार्टी एक मजबूत स्थिति में थी। उस समय सुखदेव सिंह ढींडसा, परमिंदर सिंह ढींडसा, गोबिंद सिंह लोंगोवाल, इकबाल सिंह झूंडा और बलदेव सिंह मान जैसे कद्दावर नेता अकाली दल की कोर कमेटी का हिस्सा रह चुके हैं, जो इन जिलों की राजनीतिक ताकत को दर्शाता था। लेकिन, आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है, जहां शिरोमणि अकाली दल के हिस्से में एक भी सीट नहीं है।

पिछले कई सालों से अकाली दल इन जिलों में एक भी चुनाव जीतने में विफल रहा है। इसके बावजूद, इन जिलों के कई प्रमुख अकाली नेता कोर कमेटी में शामिल होने की इच्छा रखते थे और पार्टी के सदस्यता अभियान में भी सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहे थे, जिसे वे पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण मानते थे। लेकिन, उनके सभी प्रयास व्यर्थ गए हैं, और उन्हें लग रहा है कि उनकी लंबे समय की सेवाओं और त्याग को अनदेखा किया गया है।

जिले के कई वरिष्ठ अकाली नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर अपनी निराशा व्यक्त की। उनका कहना है कि जब पार्टी संकट के गहरे दौर से गुजर रही है और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को फिर से प्रेरित करने और संगठन को मजबूत करने की सख्त जरूरत है, ऐसे फैसले कार्यकर्ताओं का मनोबल और भी गिरा सकते हैं। उनका मानना है कि कोर कमेटी में स्थानीय, प्रभावशाली नेताओं को शामिल करने से जिलों में पार्टी की स्थिति मजबूत हो सकती थी और नई ऊर्जा का संचार हो सकता था। यह एक संकेत देता कि पार्टी नेतृत्व जमीनी स्तर की चिंताओं को समझता है और स्थानीय नेताओं को मान्यता देता है।

हालांकि, एक छोटी सी महत्वपूर्ण बात यह है कि बरनाला जिले के गांव खुड्डी खुर्द के मूल निवासी और एक बार भदौड़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके दरबार सिंह गुरु कोर कमेटी में शामिल होने में सफल रहे हैं। लेकिन, इसे भी पूरी तरह से बरनाला या संगरूर जिले का प्रतिनिधित्व नहीं माना जा रहा है। दरबार सिंह गुरु पिछले एक दशक से अधिक समय से फतेहगढ़ साहिब जिले और बस्सी पठानन विधानसभा क्षेत्र में ही सक्रिय हैं। बरनाला या संगरूर जिलों के स्थानीय मुद्दों और कार्यकर्ताओं के साथ उनका सीधा और निरंतर राजनीतिक संबंध बहुत कम रहा है। इसलिए, उनकी भागीदारी को इन दोनों जिलों के वास्तविक प्रतिनिधित्व के रूप में नहीं देखा जा सकता, जो स्थानीय अकाली कार्यकर्ताओं की निराशा को और बढ़ाता है।

अकाली दल के इस फैसले ने बरनाला और संगरूर में पार्टी के भविष्य को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिलों में पहले से ही पार्टी की कमजोर स्थिति और लगातार चुनावों में हार के कारण कार्यकर्ताओं में निराशा है। ऐसे में कोर कमेटी में जिलों का प्रतिनिधित्व न मिलना, पार्टी के लिए और चुनौतियां खड़ी कर सकता है। यह फैसला पार्टी के जिला स्तरीय नेतृत्व को भी कमजोर कर सकता है, क्योंकि उन्हें लग सकता है कि केंद्रीय नेतृत्व उनके प्रयासों और समर्पण को मान्यता नहीं दे रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिरोमणि अकाली दल को अपने पुराने गढ़ों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए स्थानीय नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें पार्टी के निर्णय लेने वाले निकायों में शामिल करना चाहिए। बरनाला और संगरूर जैसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण जिलों की उपेक्षा करना पार्टी के लिए लंबे समय में हानिकारक साबित हो सकता है। यदि पार्टी अपने आधार को फिर से मजबूत करना चाहती है तो उसे इन जिलों में जमीनी स्तर पर काम करने वाले समर्पित नेताओं को आगे लाना होगा और उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपनी होंगी।

यह देखना बाकी है कि इस फैसले का बरनाला और संगरूर जिलों में अकाली दल की राजनीतिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है और क्या पार्टी भविष्य में अपनी रणनीति में कोई बदलाव करती है ताकि अपने पुराने गढ़ों में अपनी प्रतिष्ठा को फिर से बहाल किया जा सके। क्या अकाली दल इन जिलों की चिंताओं को सुनेगा और उन्हें हल करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा? यह समय ही बताएगा।

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