तीन कृषि कानून रद्द होने पर जानें पंजाब में किसे होगा कितना फायदा

Edited By Urmila,Updated: 20 Nov, 2021 11:48 AM

find out who will benefit in punjab if three agricultural laws are repealed

केंद्र सरकार की तरफ से लागू किए गए तीन खेती कानूनों को मोदी सरकार ने अब रद्द करने का ऐलान कर दिया है। इसका सबसे अधिक प्रभाव पंजाब पर पड़ेगा। पंजाब में किस राजनीतिक पार्टी को कितना...

जालंधर (अनिल पाहवा): केंद्र सरकार की तरफ से लागू किए गए तीन खेती कानूनों को मोदी सरकार ने अब रद्द करने का ऐलान कर दिया है। इसका सबसे अधिक प्रभाव पंजाब पर पड़ेगा। पंजाब में किस राजनीतिक पार्टी को कितना और कैसे लाभ होगा, यह सवाल लगभग हर पंजाब निवासी के मन में है। पंजाब में 2022 के शुरू में विधानसभा के मतदान होने हैं। सब राजनीतिक पार्टियों का ध्यान इस तरफ लगा हुआ है। किसान बिल पंजाब के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा था। इनको अब रद्द करने का ऐलान कर दिया गया है। अब बड़ा सवाल यह होगा कि आखिर अब कौन से मुद्दे को कैश किया जाए। सब राजनीतिक पार्टियों के लिए किसान बिलों का रद्द होना एक अलग तरह का मुद्दा है। हर राजनीतिक पार्टी इसको अपने हिसाब के साथ निपटने की कोशिश करेगी।

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भाजपा पर असर
किसान बिलों के लागू होने और उनके रद्द होने दोनों का ही सबसे बड़ा प्रभाव भाजपा पर ही पड़ा है। भाजपा के कुछ नेताओं के कपड़े फाड़े गए, कुछ भाजपा नेताओं के साथ मारपीट की गई, कुछ दूसरे भाजपा नेताओं की मोटर गाड़ियां तोड़ीं गई। इसके अलावा भाजपा के नेताओं को राज्य में सड़कों पर उतरना कठिन हो गया। ऊपर से आ रही विधानसभा मतदान पार्टी के लिए परेशानी वाली स्थिति पैदा कर रही थीं क्योंकि इस हालत में मतदान लड़ना संभव ही नहीं था। अब पंजाब में भाजपा अकेले ही मतदान लड़ रही है। यह पहली बार है जब भाजपा पंजाब में अकाली दल के बिना ही चयन मैदान में उतरेगी। भाजपा के प्रांतीय प्रधान दुष्यंत गौतम भी यह दावा कर चुके हैं कि पार्टी सब 117 सीटों पर चयन लड़ेगी। ऐसे हालात में भाजपा के लिए उक्त फैसला एक बड़े लाभ का सौदा होगा। यह भी चर्चा है कि जो किसान कानूनों को लेकर विरोध कर रहे थे, क्या वह अब भाजपा को वोट पाएंगे?

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अकाली दल की रणनीति
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल भाजपा से अलग होकर अब बसपा के साथ चयन मैदान में उतर चुका है। बसपा को 117 में से 20 सीटें दीं गई हैं। भाजपा को शिरोमणी अकाली दल की तरफ से 23 सीटें दीं जाती थीं। किसानों का मुद्दा अब खत्म होने वाला है परन्तु शिरोमणि अकाली दल पर यह दोष सदा बरकरार रहेंगे कि उसने बिल बनाए जाने के फैसले का विरोध नहीं किया था। वास्तव में बिल बनाते समय जो बैठकें हो रही थीं, उस समय भी केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल हर बार उसका हिस्सा होती थी। वैसे भी किसान बिलों को लेकर बेशक हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया था परन्तु यह फैसला भी बहुत देरी के साथ लिया गया। इसका प्रभाव पार्टी पर पड़ सकता है।

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कांग्रेस का पक्ष भारी
पंजाब में विधानसभा की मतदान से पहले कांग्रेस ने कई कदम उठाए, जिस कारण वह पहले के मुकाबले कुछ मजबूत हो गई। कांग्रेस ही वह पार्टी थी, जिसने किसान आंदोलन को हवा दी और किसानों को दिल्ली की तरफ कूच करने का आईडिया दिया, नहीं तो उससे पहले किसान पंजाब में रेलवे ट्रैकों पर बैठे थे और उसका केंद्र पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। जब किसान दिल्ली जा कर बैठे तो कुछ हद तक केंद्र सरकार पर प्रभाव होना शुरू हुआ इसलिए किसानों के मन में यह बात साफ है कि कांग्रेस ने उनको न सिर्फ रास्ता दिखाया, बल्कि समय-समय पर उनके मुद्दों को भी आगे बढ़ाया। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने खुद ट्रैक्टर चला कर किसानों की हिमायत को कैश करने की कोशिश की थी। 

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‘आप’ की योजना
किसान आंदोलन अब शायद खत्म हो जाएगा और पंजाब में अब तक ठंडी पड़ी असेंबली मतदान की तैयारी फिर से जोर पकड़ लेगी। इस मसले पर आम आदमी पार्टी कौन-सी रणनीति अपनाती है, यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं परन्तु पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह इस फैसले का स्वागत किया है, उसे देखते लगता है कि पार्टी आने वाले दिनों में पंजाब में इस मसले को कैश करने के लिए कोई बड़ी योजना बना सकती है। बताने योग्य है कि केजरीवाल ने 19 नवंबर के दिन को ऐतिहासिक बताया और 26 जनवरी और 15 अगस्त की तरह इस दिन को भी याद रखने की बात कही।

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कैप्टन अमरिंदर सिंह की तैयारी
पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह के विदाई होने के बाद एक चर्चा यह भी थी कि वह भाजपा के साथ मिल कर कृषि कानूनों का हल निकाल सकते हैं। भाजपा ने कैप्टन को वह मौका ही नहीं दिया और बिना किसी भी न-नुक्कर से सीधा कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान खुद ही प्रधानमंत्री ने किया। इसके बाद अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर कैप्टन अमरिंदर सिंह की भविष्य की योजना क्या होगी। अभी जिस तरह पंजाब में भाजपा अकेले मतदान लड़ने का ऐलान कर चुकी है तो उस स्थिति में कैप्टन की दाल गलती नजर नहीं आ रही। कैप्टन को अब न चाहते हुए भी शाही ठाठ-बाठ और सिसवां फार्म हाऊस की हवाओं को भूलना पड़ेगा। उनको अपनी साख बचाने के लिए मैदान में आना ही पड़ेगा।

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