वैज्ञानिकों का दावा:दिल्ली के प्रदूषित पर्यावरण के लिए पंजाब के किसान नहीं जिम्मेदार

Edited By swetha,Updated: 10 Nov, 2018 10:03 AM

delhi polluted air

पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के जलवायु तब्दीली एवं खेती मौसम विभाग के वैज्ञानिक प्रभजोत कौर व हरप्रीत सिंह ने खुलासा किया कि दिल्ली समेत देश के दूसरे राज्यों के प्रदूषित पर्यावरण के लिए पंजाब के किसान जिम्मेदार नहीं हैं।

लुधियाना (सलूजा): पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के जलवायु तब्दीली एवं खेती मौसम विभाग के वैज्ञानिक प्रभजोत कौर व हरप्रीत सिंह ने खुलासा किया कि दिल्ली समेत देश के दूसरे राज्यों के प्रदूषित पर्यावरण के लिए पंजाब के किसान जिम्मेदार नहीं हैं। 

उन्होंने इस संबंध में तथ्यों पर आधारित जानकारी मीडिया के साथ सांझा करते हुए बताया कि पंजाब सरकार के प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले 2018 में पराली को जलाने के मामलों में कमी आई है। गत 2 वर्षों के दौरान पराली को जलाने को लेकर जितनी घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं, उनके आंकड़े कम हैं। इस वर्ष 5 नवंबर तक धान की पराली जलाने के 27,238 मामले सामने आए हैं, जो पिछले वर्ष 2017 के मुकाबले 10,051 कम है।
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पंजाब में एयर क्वालिटी इंडेक्स 101-200 मीडियम स्थिति में है, जबकि नई दिल्ली में 301-400 है, जो बहुत खराब हालात में है। बावजूद इसके किस तरह पंजाब के किसानों को राजधानी दिल्ली की हवा को अधिक गंदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि अक्टूबर के पिछले 1 सप्ताह से पंजाब का वातावरण स्थिर है। बयूफरोट मापदंड के अनुसार यदि हवा की गति 2 कि.मी./घंटा से कम हो जाए तो हवा की स्थिति शांत मानी जाती है।

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इंडिया मीटरियोलॉजिकल डिपार्टमेंट द्वारा पंजाब के मुख्य जिलों में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन स्थापित किए गए हैं। इन स्टेशनों ने पंजाब, हरियाणा और नई दिल्ली में आमतौर पर हवा की शांत स्थिति (हवा की गति 2 कि.मी./घंटा) रिकॉर्ड की है। 1 नवंबर, 2018 दौरान उत्तरी भारत में पश्चिमी चक्रवात आने से पंजाब में बने स्थिर वातावरण में हलचल हुई है। कई स्थानों पर हल्की बारिश हुई है। इस तरह बारिश ने न सिर्फ वातावरण को साफ किया, बल्कि उत्तर-पूर्व व उत्तर-पश्चिम की तरफ से चल रही हवा की दिशा बदलकर दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्व की तरफ कर दी है। इसलिए नई दिल्ली के मौजूदा हालात के लिए पंजाब के किसानों को किस तरह दोषी ठहराया जा सकता है।

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‘मेरी नहीं अपने दिल की सुनो’
पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के उप-कुलपति डॉ. बलदेव सिंह ढिल्लों ने पराली के मुद्दे पर किसानों को कहा कि हम सभी यह जानते हैं कि पराली को जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है। इसके साथ जमीन की पैदावार शक्ति भी प्रभावित होती है। पी.ए.यू. पराली को संभालने के विषय पर दिन-रात काम कर रही है। किसान पराली को खेतों में भी बहाकर अगली फसल की बुआई कर सकते हैं, जिससे नई फसल की पैदावार में कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने कहा कि पराली का इस्तेमाल बायोगैस सहित अलग-अलग कार्यों के लिए किया जा सकता है, जिससे किसान को आर्थिक तौर पर फायदा मिलेगा। उन्होंने भावुक अपील करते हुए कहा कि पराली को जलाने के मामले में किसान ‘मेरी नहीं अपने दिल की सुनो’ रुझान को हमेशा के लिए अलविदा कह दें।

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