दलित वोट पर भाजपा की नजर, बिहार चुनाव के बाद बढ़ेगी सक्रियता

Edited By Tania pathak,Updated: 07 Oct, 2020 10:18 AM

bjp s eye on dalit vote activism will increase after bihar election

पंजाब की सियासत में 25 साल बाद अपने दम पर मैदान में उतर रही भाजपा पंजाब में हिन्दू और दलित वोटरों का समीकरण बनाने की कोशिश करेगी लेकिन इससे पहले भाजपा कृषि कानूनों को लेकर सड़कों पर उतरे किसान संगठनों....

जालंधर (विशेष): पंजाब की सियासत में 25 साल बाद अपने दम पर मैदान में उतर रही भाजपा पंजाब में हिन्दू और दलित वोटरों का समीकरण बनाने की कोशिश करेगी लेकिन इससे पहले भाजपा कृषि कानूनों को लेकर सड़कों पर उतरे किसान संगठनों के साथ बातचीत करेगी। उन्हें मनाने के बाद पार्टी का अगला कदम संगठन विस्तार का होगा और यह काम बिहार चुनाव के बाद होगा। बिहार में चुनाव नवम्बर में समाप्त होंगे और इसके बाद भाजपा की केंद्रीय लीडरशिप पंजाब में पूरी तरह से सक्रिय हो जाएगी।

दूसरे चरण में संगठन का विस्तार
पार्टी पहले चरण में किसान संगठनों के साथ बातचीत करके उन्हें मनाने का प्रयास कर रही है और किसानों के साथ बातचीत के बाद पार्टी का अगला फोकस राज्य भर में संगठन विस्तार पर होगा। फिलहाल भाजपा का जालंधर, लुधियाना, अमृतसर, पठानकोट, होशियारपुर में अच्छा-खासा संगठन है क्योंकि भाजपा-अकाली दल में समझौते के तहत जिन 23 सीटों पर चुनाव लड़ती थी उनमें से अधिकतर सीटें इन्हीं जिलों में हैं। पंजाब के शेष जिलों में पार्टी के  विस्तार और संगठन का काम पार्टी किसानों का मामला हल करने के बाद करेगी।  

दलित वोट पर भाजपा की नजर
पंजाब में भाजपा हिन्दू और दलित वोट के समीकरण पर काम करने की योजना भी बना रही है। पंजाब में करीब 33 फीसदी दलित वोटर हैं और भाजपा सवर्णों व दलितों को एक मंच पर लाकर राज्य की सियासत में नया प्रयोग करना चाहती है। यह वोट बैंक पहले राज्य में कांग्रेस का मजबूत आधार हुआ करता था लेकिन बाद में इसका एक बड़ा हिस्सा बसपा के साथ चला गया था लेकिन अकाली दल ने बसपा में तोड़-फोड़ करवा कर उसके नेता अपनी पार्टी में शामिल कर लिए थे जिस कारण यह वोट कुछ हद तक अकाली दल के साथ भी जुड़ा।  
2017 के चुनाव में भी दोआबा में इसका अकाली दल को फायदा हुआ। बसपा का आधार अब पंजाब में लगभग न के बराबर है लिहाजा भाजपा को लग रहा है कि यदि यह वोट बैंक उसके साथ जुड़ जाए तो 2022 में उसे पंजाब में काफी फायदा हो सकता है।

पहले चरण में किसानों को मनाने की कवायद
केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित किए गए कृषि कानूनों से सिर्फ कांग्रेस की अंदरूनी सियासत ही नहीं गरमाई बल्कि भाजपा को भी इस मुद्दे ने पंजाब में पैर जमाने का मौका दे दिया है। पंजाब में भाजपा का कार्यकत्र्ता अकाली दल के साथ गठबंधन तोडऩे के लिए पार्टी हाईकमान पर लंबे समय से दबाव बना रहा था लेकिन कृषि विधेयकों की नाराजगी के चलते अकाली दल ने खुद ही भाजपा कार्यकत्र्ताओं की यह मुराद पूरी कर दी लेकिन इसे कानूनों के खिलाफ जिस तरह से किसान सड़कों पर हैं उसे देख कर भाजपा के लिए सियासी स्थिति काफी पेचीदा हो गई है। पंजाब में किसानों के वोट के बिना किसी भी पार्टी का सत्ता में आना मुश्किल है लिहाजा अब पार्टी का पूरा जोर इस मामले में किसान संगठनों के साथ बातचीत कर के उन्हें मनाने में लगा है। भाजपा ने इस मोर्चे पर हंस राज हंस को उतार कर किसान संगठनों के साथ बातचीत करने के लिए लगा भी दिया है। पार्टी के पंजाब और केंद्र के कई नेता सीधे तौर पर भी किसान संगठनों के साथ संपर्क में हैं और उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की जा रही है।

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