कर्फ्यू को देखते शहर में राशन की कालाबाजारी जारी, प्रशासन खामोश

Edited By Vaneet,Updated: 30 Mar, 2020 01:57 PM

black marketing of ration continues in the city due to curfew

देश में केंंद्र सरकार द्वारा 21 दिनों के लिए किए गए संपूर्ण लॉकडाउन के बाद श्री मुक्तसर साहिब में कालाबा...

श्री मुक्तसर साहिब(तनेजा,खुराना): देश में केंंद्र सरकार द्वारा 21 दिनों के लिए किए गए संपूर्ण लॉकडाउन के बाद श्री मुक्तसर साहिब में कालाबाजारी शुरू हो गई है लेकिन तरह-तरह के दावे करने वाला प्रशासन इस बार भी खामोश हुआ पड़ा है। 

शहर मेंं कुछ दुकानदारों द्वारा ग्राहकोंं को महंगे दामों पर राशन बेचा जा रहा है जिसको देखते यह साफ है कि कालाबजारी रोकने के प्रशासन के दावे खोखले ही साबित हो रहे हैं। एक तरफ कोरोना के चलते लगा कर्फ्यू तो दूसरी ओर लोगों में राशन का फिर्क आजकल शहर के कुछ दुकानदारों की जेब के लिए फायदेमंद हो रहा है क्योंकि दुकानदार मनमर्जी से ग्राहकों को राशन दे रहे हैं जबकि कफ्यू से डरे लोग मजबूरी के चलते ऐसे मेंं राशन खरीद रहे हैं। दुकानों पर बिक रहे राशन की कीमतें हैरान कर देने वाली हैं लेकिन उससे भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि राशन की कालाबजारी प्रशासन की आंखों से परे होकर शरेआम की जा रही है लेकिन जिला प्रशासन सुस्त चाल ही चल रहा है।

आसमान को छूने लगे राशन के दाम
कर्फ्यू के चलते शहर के कई दुकानदारों द्वारा मनमर्जी के रेटों पर लोगों को राशन बेचा जा रहा है। शहर मेंं इस समय लोगोंं को धोती मूंगी 100-115 रूपए तक मिल रही है जबकि मांह की दाल 90-110, चनों की दाल 60-90, काले चनों की दाल 60-90, मसर की दाल 65-80, रिफाइंड तेल 90-100, चीनी 37-40, घी 87-100, गुड 34-45 के हिसाब से मिल रहा है लेकिन दूसरी ओर कालाबजारी को रोकने के लिए प्रशासन के दावे फेल होते दिखाई दे रहे हैं।

समाजसेवी संस्थाओं के लिए भी परेशानी बनी कालाबजारी
आम लोगों के हित्तों के लिए कर्फ्यू के दौरान आगे आई शहर की धार्मिक व समाजिक संस्थाओं के लिए भी शहर में राशन की हो रही कालाबजारी परेशानी बन गई है। बता दें कि 22 मार्च से कर्फ्यू के बाद शहर की समाजसेवी व धार्मिक संस्थाएं अपने स्तर पर खर्च कर जरूरतमंद लोगों तक राशन व लंगर पहुंचा रही है लेकिन अब राशन की कालाबजारी से समाजसेवा के कार्यों पर भी असर पडऩे लगा है क्योंकि ऐसे माहौल में महंगे दामों पर मिल रहे राशन को आगे जरूरतमंदों तक पहुंचा जा रहा है जबकि प्रशासन की ओर से इस ओर ध्यान न दिए जाने के चलते संस्थाओं को मानवता का भला करने में भी रूकावट बन रही है। 

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