Edited By Urmila,Updated: 03 Mar, 2023 11:35 AM

पिछले लंबे समय से जालंधर नगर निगम किसी न किसी विवाद से जुड़ा ही रहा है और अब भी जालंधर निगम में 5 करोड़ रुपए का ट्यूबवैल टैंडर घोटाला चर्चा का विषय बना हुआ है।
जालंधर: पिछले लंबे समय से जालंधर नगर निगम किसी न किसी विवाद से जुड़ा ही रहा है और अब भी जालंधर निगम में 5 करोड़ रुपए का ट्यूबवैल टैंडर घोटाला चर्चा का विषय बना हुआ है। इस घोटाले की खास बात यह है कि ट्यूबवैल मेंटेनेंस के टेंडर लेने में दिलचस्पी दिखा रहे तमाम ठेकेदार बार-बार कह रहे हैं कि वह जो काम 3 करोड़ रुपए में करने को तैयार हैं उनके लिए नगर निगम 8 करोड़ रुपए के टैंडर बार-बार क्यों लगा रहा है।
इस संबंध में जब पिछले दिनों नगर निगम के ओ. एंड एम. सेल के एस.ई. अनुराग महाजन से संपर्क किया गया तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यह टैंडर चंडीगढ़ बैठे चीफ इंजीनियर की स्वीकृति से ही लगाए जा रहे हैं। चाहे अनुराग महाजन ने टैंडरों में करोड़ों रुपए की लेबर कॉस्ट कम करने से साफ इंकार कर दिया है परंतु अब पता चला है कि निगम कमिश्नर अभिजीत कपलिश ने करोड़ों रुपए के यह टैंडर लेबर कॉस्ट के बगैर लगाए जाने के निर्देश दिए हैं। अब सवाल यह उठता है कि अगर निगम के पुराने अधिकारियों ने इन टैंडरों को लगाने में गड़बड़ी की या किसी विशेष ठेकेदार की फेवर की तो उनके स्थान पर बदल कर आए नए अधिकारी इतने महंगे टेंडरों पर ही क्यों अड़े हुए हैं। निगम में आम चर्चा है कि अगर इस 5 करोड़ के ट्यूबवैल टैंडर घोटाले की विजिलैंस से निष्पक्ष जांच करवाई जाए तो निगम के कई अधिकारी फंसेंगे ।
सीवरेज की सफाई में गंभीरता नहीं दिखा रहे अफसर
इस समय शहर के ज्यादातर हिस्से बंद सीवरेज की समस्या झेल रहे हैं। एक ओर जहां निगम को ट्रीटमैंट प्लांटों से दिक्कत आ रही है वहीं लंबे समय से सीवर लाइनों की सफाई नहीं हुई और सुपर सक्शन या जैटिंग मशीनों से सीवर क्लीनिंग के टेंडर भी नहीं हुए। अब भी निगम अधिकारी सीवरों से संबंधित काम में गंभीरता नहीं दिखा रहे। स्थिति काफी खराब है परंतु फिर भी निगम अधिकारियों ने सीवर सफाई के जो 18 टेंडर लगा रखे हैं वह मार्च महीने के अंत तक ही मैच्योर हो पाएंगे । करीब 4.30 करोड़ रुपए के इन टेंडरों से कई क्षेत्रों में सुपर सक्शन मशीनों से सीवर की सफाई होनी है। इस प्रकार सीवरेज की समस्या से जूझ रहे लोगों को पूरा मार्च महीने तक इंतजार करना होगा और उसके बाद भी यह समस्या टेंडर लेने वाले ठेकेदारों के कामकाज पर निर्भर करती है।
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