किसान यूनियन उगराहां के फैसले से बदली पंजाब के कृषि आंदोलन की बयार

Edited By Vatika,Updated: 14 Oct, 2020 09:16 AM

the decision of kisan union ugrahan changed the climate of punjab s agitation

कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का मिजाज अचानक बदल गया है।

चंडीगढ़(अश्वनी कुमार): कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का मिजाज अचानक बदल गया है। पंजाब के 29 किसान संगठनों ने पहली बार केंद्र सरकार के न्यौते को कबूल कर बातचीत की राह पकड़ी है। माना जा रहा है कि इसकी बड़ी वजह भारतीय किसान यूनियन उगराहां है। दरअसल, उगराहां संगठन ने एक दिन पहले ही स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि संगठन केंद्र के न्यौते को कबूल करते हुए 14 अक्तूबर को दिल्ली में बातचीत के लिए बैठक करेगा। भारतीय किसान यूनियन उगराहां पंजाब का बड़ा किसान संगठन है जिसने प्रदेश में 51 जगह पक्के मोर्चे लगाए हुए हैं। इसी कड़ी में भाजपा के कई नेताओं के घरों का घेराव भी किया हुआ है। बताया जा रहा है कि खुद अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह ने भी किसान नेताओं को स्पष्ट कर दिया था कि केंद्र के साथ बातचीत के फैसले पर वह अटल हैं व कोई समझौता नहीं होगा। माना जा रहा है कि 29 किसान संगठनों के नेताओं ने वैचारिक मतभेद से बचने के लिए केंद्र के न्यौते को स्वीकार करते हुए बातचीत की पहल की है। जोगिंद्र सिंह ने 29 किसान यूनियनों के सांझा फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि फैसला बेहद सकारात्मक है और सभी संगठनों को केंद्र सरकार से बातचीत करनी चाहिए। सभी संगठनों को एकजुट रहना चाहिए। जिन मुद्दों पर संगठन सांझा लड़ाई लड़ रहे हैं, कम से कम उस पर कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। जोगिंद्र ने कहा कि केंद्र के न्यौते को ठुकराना सही नहीं है, क्योंकि बातचीत के लिए सभी को पहल करनी चाहिए, भले ही नतीजा कुछ भी निकले। किसान संगठनों को अपनी बात मजबूती से रखनी चाहिए और केंद्र सरकार की बात सुननी चाहिए।


यूनियन के 3 सदस्य करेंगे केंद्र के साथ बातचीत
जोगिंद्र सिंह ने कहा कि उनकी यूनियन के तीन सदस्य केंद्र के साथ कृषि कानूनों को लेकर होने वाली बैठक में भाग लेंगे। केंद्र के न्यौते को स्वीकार करने के पीछे जोङ्क्षगद्र सिंह ने कहा कि किसी को तो पहल करनी ही थी, क्योंकि बातचीत से ही रास्ते खुलते हैं। अगर 29 किसान संगठन बातचीत का न्यौता न भी स्वीकार करते तो भी किसान यूनियन उगराहां केंद्र से बातचीत करता। बेशक संगठन पंजाब के स्तर पर अकेला फैसला नहीं ले सकता है लेकिन केंद्र के जो भी प्रस्ताव होते, उन्हें 29 संगठनों के बीच रखा जाता और उसी आधार पर निर्णय होता। 

भाकियू लक्खोवाल को बैठक से बाहर रखना गलत
जोगिंद्र सिंह ने कहा कि मंगलवार को चंडीगढ़ के किसान भवन में हुई बैठक से भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल को बाहर रखना गलत है। अगर लक्खोवाल संगठन ने कोई गलती की भी तो उसकी सिर्फ इतनी सी सजा होती है कि एक-दो बैठक से बाहर रखा जाए लेकिन एक्शन प्लान में सभी संगठनों को हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए। यह सभी की सांझा लड़ाई है। उन्होंने तो कहा भी है कि अगर लक्खोवाल संगठन सुप्रीम कोर्ट गया था तो उन्होंने केस वापस भी ले लिया है। इसलिए अब सभी को मिलकर किसान हितों की लड़ाई लडऩी चाहिए।


अकाली दल पर भी निशाना कायम
जोङ्क्षगद्र सिंह ने कहा कि मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी किसानों के मुख्य निशाने पर है। पहले शिरोमणि अकाली दल निशाने पर था लेकिन शिअद ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा दिलवाया और भाजपा के साथ नाता तक तोड़ लिया। ऐसे में अब शिअद के खिलाफ सीधे मोर्चेबंदी का कोई औचित्य नहीं है। हालांकि भाजपा के बाद अकाली दल उनके निशाने पर कायम है।

इसलिए बदली रेल ट्रैक की रणनीति
संगठन के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा कि रेल ट्रैक से धरने हटाने की रणनीति किसान संघर्ष को और मजबूती देने के लिए अपनाई है। रेल ट्रैक से उठे प्रदर्शनकारी अपने घर नहीं गए हैं, बल्कि शहरी इलाकों में भाजपा नेताओं के घरों के बाहर धरने लगाकर बैठे हैं। ऐसा इसलिए भी है कि कई अन्य संगठन भी रेल रोक रहे हैं, इसलिए हमने अपने कार्यकत्र्ताओं को भाजपा पर दबाव बनाने के निर्देश दिए हैं।

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