जज्बे को सलाम, सड़कों पर गाड़ियों के पीछे भाग कर फूल बेचने वाली पहुंची अमेरिका

Edited By Urmila,Updated: 14 May, 2022 11:42 AM

salute to the spirit america reached the seller of flowers

जुनून और संघर्ष करने का जज्बा हो तो क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता? इसी कथन की पुष्टि कर रही है जवाहरलाल नहरू यूनिवर्सिटी (जे.एन.यू.) की छात्रा रही सरिता माली। सरिता माली की चयन अमरीका की...

जालंधर (विशेष): जुनून और संघर्ष करने का जज्बा हो तो क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता? इसी कथन की पुष्टि कर रही है जवाहरलाल नहरू यूनिवर्सिटी (जे.एन.यू.) की छात्रा रही सरिता माली। सरिता माली की चयन अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुई है। अब वह जे.एन.यू. से पी.एच.डी. करने के बाद अमेरिका जाएगी। जहां वह अगले 7 वर्ष तक संशोधन करेगी। सरिता माली जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से आती है, वहां से जे.एन.यू. और अब अमेरिका जाना कोई आम बात नहीं है। यह किसी सपने जैसा है, जिसको सरिता माली ने सत्य कर दिखाया है। उसे अमेरिका से चांसलर फैलोशिप मिली है। नगरपालिका स्कूल में पढ़ी सरिता ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होने तक हर दिन अपने पिता के फूलों के व्यापार में मदद की। एक समय था जब वह मुंबई की सड़कों पर फूलों के हार बेचते हुए नजर आती थी। उसने अपने संघर्ष की कहानी को अपनी फेसबुक अकाउंट पर सांझा किया है।

संघर्ष न करती तो इस तरह ही बीत जाती जिंदगी
आपनी पोस्ट में उसने लिखा कि जब हम सभी भाई-बहन त्योहारों पर पिता के साथ सड़क किनारे बैठ कर फूल बेचते थे तब वह भी गाड़ियों वालों के पीछे इस तरह ही दौड़ते था। पिता उस समय उन्हें समझाते थे कि उनकी पढ़ाई ही उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिला सकती है। यदि वह नहीं पढ़ेंगे तो उनकी पूरी जिंदगी खुद को जीवित रखने के लिए संघर्ष करने और भोजन के जुगाड़ करने में बीत जाएगी। वह इस देश और समाज को कुछ नहीं दे सकेंगे और उनकी तरह अनपढ़ रह कर समाज में अपमानित होते रहेंगे। वह यह सब नहीं कहना चाहती थी परन्तु वह यह भी नहीं चाहती कि सड़क किनारे फूल बेचते किसी बच्चे की उम्मीद टूटे उसका हौसला खत्म हो।

मूल रूप से जौनपुर की रहने वाली है सरिता
वह लिखती है कि कुछ सफर के आखिर में वह भावुक हो उठते हैं क्योंकि यह ऐसा सफर है जहां मंजिल की चाहत से ज्यादा उसके साथ की चाहत ज्यादा सकून देती है। वह लिखती है कि हो सकता है कि आपको इस कहानी पर भरोसा न हो परन्तु यह उसकी कहानी है, उसकी अपनी कहानी। वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से हैं परन्तु उसका जन्म और पालन-पोषण मुंबई में हुआ है। वह भारत के जिस समाज से आई हैं, वह भारत के करोड़ों लोगों की नियती है परन्तु आज यह एक सफल कहानी इसलिए बन सकी है क्योंकि वह यहां तक पहुंची हैं। जब आप किसी अंधेरमयी समाज में पैदा होते हो तो उम्मीद की मध्यमम रोशनी जो दूर से रुक-रुक कर आपके जीवन को जगमगाती रहती है वह आपका सहारा बनती है। वह भी उसी जगमगाती हुई शिक्षा रूपी रोशनी के पीछे चल पड़ी।

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22 वर्ष की उम्र में से संशोधन
जे.एन.यू. ने उसे वह मनुष्य बनाया, जो समाज में फैले हर तरह के शोषण खिलाफ बोल सके। वह बेहद उत्साहित है कि जे.एन.यू. ने अब तक जो कुछ सिखाया उसे आगे संशोधन के माध्यम से पूरी दुनिया को देने का एक मौका उसे मिला है। वह जे.एन.यू. मास्टर्स करने आई थी और अब यहां से एम.ए.एम. फिल की डिग्री लेकर इस वर्ष पी.एच.डी. करने के बाद उसे अमरीका में दोबारा पी.एच.डी. करने और वहां पढ़ाने का मौका मिला है। पढ़ाई को लेकर हमेशा उसके अंदर एक जनून रहा है। 22 वर्ष की उम्र में वह संशोधन की दुनिया में कदम रखा था। खुश हूं कि यह सफर आगे 7 वर्षों तक जारी रहेगा।

2014 में वह आई थी जे.एन.यू. 
इसे भूख, अत्याचार, अपमान और आसपास होते अपराध को देखते हुए 2014 में वह जे.एन.यू. हिंदी साहित्य में मास्टर्स करने आई। सही पढ़ा आप ‘जे.एन.यू.’ वही जे.एन.यू. जिसको कई लोग बंद करने की मांग करते हैं, जिसको आतंकवादी, देशद्रेही, देश विरोधी पता नहीं क्या-क्या कहते हैं परन्तु जब वह इन शब्दों को सुनती हैं तो अंदर एक उम्मीद टूटती है। कुछ ऐसी जिंदगियां यहां आकर बदल सकतीं हैं और बाहर जाकर अपने समाज को कुछ दे सकतीं हैं। सरिता का अमेरिका की दो यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में चयन हुई है। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को प्राथमिकता दी है। इस यूनिवर्सिटी ने उनको मैरिट और अकादमिक रिकार्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फैलोशिप में से एक ‘चांसलर फैलोशिप’ दी है। 

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