कांग्रेस के ‘चाणक्य’ अहमद पटेल को दूर करना राहुल को पड़ा महंगा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Dec, 2017 09:42 AM

rahul gandhi s expensive chanakya to remove ahmed patel

गुजरात का विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच की सीधी टक्कर थी।

जालंधर (पाहवा): गुजरात का विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच की सीधी टक्कर थी। 22 साल में पहली बार मोदी गुजरात की जमीन पर इतनी मुश्किल जंग लड़ रहे थे और राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार परीक्षा में बैठे थे। बड़े-बड़े विश्लेषणों को किनारे कर दें तो एक सीधी-सादी उस वजह की ओर ज्यादातर लोगों ने ध्यान नहीं दिया जिसके चलते मोदी शायद यह अग्नि परीक्षा हारते-हारते जीत गए और राहुल गांधी गुजरात जीतते-जीतते हार गए।

 

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की रणनीति में सबसे बड़ा फर्क अपने-अपने ‘चाणक्य’ के इस्तेमाल को लेकर था। भाजपा में जीत की रणनीति हमेशा की तरह अमित शाह ने बनाई लेकिन राहुल ने चुनाव से पहले अपना चाणक्य बदल दिया। राहुल अगर अहमद पटेल को अपने साथ लेकर उनके हिसाब से चलते तो स्थिति कुछ अलग हो सकती थी। कुछ महीने पहले राज्यसभा चुनाव के समय अहमद पटेल ने अपनी रणनीति से अकेले दम पर अमित शाह को हराया था लेकिन इसके कुछ महीने बाद राहुल ने एक तरह से उनसे किनारा कर लिया। वह अहमद पटेल की बात सुन जरूर लेते थे लेकिन उस पर चलते नहीं थे। 


सूत्र बताते हैं कि सिर्फ नौ फीसदी मुस्लिम आबादी वाले गुजरात में कांग्रेस के प्रदेश नेताओं को अहमद पटेल एक अनुभवी रणनीतिकार से ज्यादा एक मुस्लिम नेता लगने लगे थे। राहुल ने भी उनकी इस दलील को मान लिया जबकि गुजरात में कांग्रेस के पास अहमद पटेल के अलावा कोई ऐसा नेता नहीं जो एक-एक जिले, एक-एक इलाके को जानता-समझता हो और उससे भी ज्यादा अमित शाह की एक-एक चाल को पढ़ सकता हो। 


अहमद पटेल इस बार कुछ भी करके भाजपा को हराना चाहते थे। वह राज्यसभा चुनाव के दौरान हुई तोड़-फोड़ का बदला लेना चाहते थे लेकिन राहुल उनकी मदद लेने को तैयार ही नहीं थे। आखिर में कांग्रेस के सबसे सक्षम रणनीतिकार को ज्यादातर वक्त चुनावी मैदान से बाहर ही रहना पड़ा। इसके उलट अमित शाह ने 2 महीने गुजरात में ही गुजारे। उनके कहने पर गुजरात की 182 सीटों के एक-एक बूथ की रिपोर्ट मंगाई गई। जब भाजपा को यह लगा कि सौराष्ट्र और ग्रामीण इलाके में जीतना मुश्किल है तो फिर शहर की उन पक्की सीटों पर पूरी ताकत झोंक दी गई जहां पार्टी अजेय मानी जाती है। जानकार बताते हैं कि एक-एक सीट के लिए रणनीति बनाई गई। इसका सबसे बढिय़ा उदाहरण उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल की सीट मेहसाना है। मेहसाना पाटीदार बहुल इलाका है और हार्दिक पटेल के आंदोलन का केंद्र रहा है। नितिन पटेल को हराना हार्दिक ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और पाटीदारों का रुख भी कुछ-कुछ ऐसा दिख रहा था। 


इन सबने पाटीदार वोट काटे और आखिरकार नितिन पटेल अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गए। गुजरात में इस बार वोटों का बंटवारा शहर बनाम गांव की तर्ज पर हुआ। शहर में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया और गांवों में कांग्रेस आगे निकली लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी कमी यह रही कि वह अपने वोटरों को बूथ तक पहुंचा ही नहीं पाई। यहीं पर राहुल गांधी को अहमद पटेल की जरूरत थी। कांग्रेस में अहमद पटेल ही एक ऐसे नेता हैं जो दिल्ली हो या गुजरात संसाधन और संपर्क  में अमित शाह का मुकाबला कर सकते हैं। राहुल गांधी ने दिल्ली और मुंबई से नेताओं को गुजरात भेजा, बस अहमद पटेल को ही किनारे कर दिया। 

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