Edited By Vatika,Updated: 26 Aug, 2024 10:16 AM
सर्दियों में अधिक मांग होने के बावजूद भी यह 5 अथवा 6 रुपए प्रति किलो के उतार-चढ़ाव पर थोक में बिकता है।
अमृतसर: पोल्ट्री फार्म में प्रयोग होने वाली फीड की कीमतों में भारी वृद्धि के बावजूद भी मार्कीट में चिकन की कीमत में कोई वृद्धि नहीं हुई जिसके कारण पोल्ट्री फार्म के मालिकों की मुश्किलें बढ़ गई है। मार्कीट से मिले आंकड़ों के मुताबिक पिछले 3 वर्ष से लेकर अब तक फीड की कीमत दोगुनी बढ़ चुकी है। पहले मक्की की कीमत 20-25 रुपए प्रति किलो थी, जो अब 40 का आंकड़ा पार कर चुकी है।
उधर पोल्ट्री फीड में सोया, बाजरे की कीमतों में 2-3 वर्षों में लगभग 1.5 गुणा वृद्धि दर्ज की गई है। इसके बावजूद पोल्ट्री फार्म द्वारा सप्लाई किया जा रहा बर्ड (पक्षी) के रूप में चिकन मात्र 5 से 10 फीसद की वृद्धि हुई है, जिसके कारण अमृतसर का पोल्ट्री फार्म उद्योग संकट की स्थिति में पहुंच रहा है। हालत यह आ चुके हैं कि अब जिला अमृतसर में कुल 20 से 25 पोल्ट्री फार्मरज कार्यरत है जबकि पिछले वर्षों में 100 से अधिक थे। पोल्ट्री उद्योग के मुताबिक 3 वर्ष पहले भी पोल्ट्री फार्म के द्वारा सप्लाई किया गया बर्ड के रूप में चिकन 90 रुपए प्रति किलो था, जो आज भी मात्र 98 रुपए प्रति किलोग्राम में है। सर्दियों में अधिक मांग होने के बावजूद भी यह 5 अथवा 6 रुपए प्रति किलो के उतार-चढ़ाव पर थोक में बिकता है। इसमें 35 प्रतिशत पंखों अथवा अन्य चीजों की वेस्टेज लगा ली जाए तो ड्रेसड चिकन 135 रुपए प्रति किलो के हिसाब में पड़ता है, जो आगे चल कर ग्राहक के हाथ में पहुंचते-पहुंचते अलग तौर पर मार्केट की कीमत ले जाता है लेकिन पोल्ट्री के रेट में फार्मर को कुछ अधिक मुनाफा नहीं मिलता।
उधर पोल्ट्री फार्म मालिकों का मानना है, यदि इस मामूली वृद्धि को अन्य खर्चों के साथ मिलान किया जाए तो 3 वर्षों में ईंधन, लेबर, किराया व अन्य खर्चे भी बढ़ गए हैं, इसलिए यह मामूली वृद्धि न के बराबर ही गिनी जा सकती है। बड़ी बात है कि उतार-चढ़ाव के समय पोल्ट्री फार्म को कई बार स्टोर न किए जाने की स्थिति में आधी से कम कीमतों में भी बचा हुआ माल बेचना पड़ता है। पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन के अध्यक्ष जी.एस. बेदी एवं महामंत्री उमेश शर्मा का मानना है कि बाजरा, मक्की और सोया पोल्ट्री फार्म में खुराक के रूप में काम आते हैं जबकि उनके महंगे होने का कारण भी यह भी है कि घरों में भी इन चीजों की काफी खप्त है।
अमृतसर का श्रीनगर में पोल्ट्री का निर्यात टूटा
अमृतसर से कभी जम्मू-कश्मीर में मुर्गों की सप्लाई पिछले 6-7 वर्ष पहले खूब होती थी और अमृतसर के पोल्ट्री उद्योग ने काफी तरक्की की, लेकिन अब यह निर्यात दीनानगर से श्रीनगर हो रहा है। उधर, दूसरी तरफ से जम्मू-कश्मीर सरकार ने पोल्ट्री उद्योग को बढ़ावा देने के लिए जम्मू क्षेत्र में सस्ती जमीने, सस्ता लोन और सब्सिडी के रूप में फीड (खुराक) और बिजली पोल्ट्री उद्योग को उपलब्ध कराई। इसके कारण जम्मू-कश्मीर में अपना उद्योग ही काफी मजबूत है। सिर्फ श्रीनगर में क्वालिटी के आधार पर कुछ लोग ब्रायलर भेजते हैं। यह ब्रायलर 2 किलो के करीब होते हैं जो वहां सुरक्षित पहुंच जाते हैं।
बैरियर पर अब भी लगता है 8 रुपए 'मुर्गा- टैक्स'
पंजाब से श्रीनगर मुर्गे भेजने वाले पोल्ट्री फार्म अथवा सप्लायर को जम्मू-कश्मीर बैरियर पर पहुंचते ही 8 रुपए प्रति 'मुर्गा-टैक्स' देना पड़ता है। कारण... मुर्गे की कीमत तो घाटी प्रदेश में एंटर करने से पहले ही बढ़ जाती है। एक वाहन में 3 से 4 हजार मुर्गे जाते हैं और टोल बैरियर पर ही इन पर 25 से 35 हजार रुपए टैक्स लग जाता है। इस कारण पंजाब के सभी पोल्ट्री फार्म को निर्यात में भारी मार पड़ती है और धीरे-धीरे पंजाब से सप्लाई जम्मू- कश्मीर को समाप्त होती जा रही है।
पोल्ट्री प्रोडक्ट बन सकते हैं खाद्य पदार्थों का सस्ता विकल्प : एसोसिएशन
पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन के अध्यक्ष जी.एस बेदी और महासचिव योगेश शर्मा का कहना है कि अन्य प्रदेशों की सरकारें पोल्ट्री उद्योग को खेती बाड़ी की तरह सुविधाएं देती है, लेकिन पंजाब में मात्र नेताओं द्वारा वायदे ही किए जाते हैं। पंजाब में खेती-बाड़ी की तरह ही पोल्ट्री उद्योग को सब्सिडी मिलनी चाहिए। इसी प्रकार बर्ल्ड फीड पर पोल्ट्री फार्मों को सस्ते रेट पर मैटेरियल मिलना चाहिए। यदि सरकार इस उद्योग को सुविधाएं दे तो पोल्ट्री प्रोडक्ट्स आम जनता के लिए खाद्य पदार्थों में सस्ता विकल्प बन सकते है।