महामुकाबले में महारथी, जानें किन-किन सीटों पर हो चुके हैं कड़े मुकाबले

Edited By Sunita sarangal,Updated: 29 Jan, 2022 11:26 AM

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पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए करीब सभी दलों के उम्मीदवारों का ऐलान हो चुका है। मुकाबले के लिए प्रत्याशी और उनके......

चंडीगढ़(हरिश्चंद्र): पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए करीब सभी दलों के उम्मीदवारों का ऐलान हो चुका है। मुकाबले के लिए प्रत्याशी और उनके समर्थक तैयार हैं। कुछ सीटों पर कड़ा मुकाबला भी होने जा रहा है लेकिन पंजाब में इस बार एक सीट ऐसी भी है, जहां कड़ा नहीं बल्कि महा मुकाबला देखने को मिलेगा। अमृतसर पूर्वी विधानसभा हलका ऐसा ही हलका है, जहां दोनों प्रमुख उम्मीदवार जी-जान की बाजी लगाकर प्रतिद्वंद्वी को चित्त करने की हरसंभव कोशिश करेंगे। क्यों है यह सीट पंजाब भर में सबसे खास, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हैं और अब तक कब और किस सीट पर ऐसा ही मुकाबला हो चुका है।

अमृतसर पूर्वी हलके पर कांग्रेस के प्रदेश प्रधान नवजोत सिंह सिद्ध के मुकाबले में अकाली दल ने विक्रम सिंह मजीठिया को उतारा है। खास बात यह है कि उनके नाम की घोषणा तब हुई जब नामांकन का दौर शुरू हुआ। एक दौर ऐसा भी रहा, जब नवजोत सिद्धू सार्वजनिक तौर पर मजीठिया के कसीदे गढ़ते थे। 2009 में जब वह कांग्रेस से महज 8,000 वोट से जीते थे तब मजीठिया के हलके ने ही उनकी लाज बचाई थी। इस कारण मजीठिया को अपना छोटा भाई बताने वाले सिद्धू अब मजीठिया को अपने बड़े दुश्मनों में गिनने लगे हैं। मजीठिया के खिलाफ नशे के मामले में मामला दर्ज करने में अकाली दल सिद्धू की ही बड़ी भूमिका मानता है क्योंकि सिद्धू के चहेते सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय के डी.जी.पी. बनने के बाद ही यह मामला दर्ज हुआ था। 

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सिद्धू, मजीठिया दोनों ही तेजतर्रार
सिद्धू चाहे अमृतसर से सांसद और विधायक रहे लेकिन मजीठिया की भी अमृतसर में पकड़ कमजोर नहीं है। उनके पिता सत्यजीत सिंह मजीठिया लंबे समय से शहर के प्रतिष्ठित खालसा कॉलेज की गवर्निंग काऊंसिल के चेयरमैन हैं और इस समय खालसा यूनिवर्सिटी के चांसलर भी हैं। यही वजह है कि शहर में उनके परिवार के प्रति एक अलग लगाव है। 10 साल सत्ता में रहने के कारण भी भाजपा के कई स्थानीय कार्यकर्ता अकाली दल के प्रति सॉफ्ट कार्नर रखते हैं जिसका फायदा मजीठिया को मिल सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस में सिद्धू विरोधी और कैप्टन अमरिंदर समर्थक लोकल नेता वर्कर भी मजीठिया का साथ दे सकते हैं। ऐसे में यह महामुकाबला बेहद रोचक रहेगा।

बड़ी मश्किल इस राह में
सिद्धू चूंकि कांग्रेस अध्यक्ष हैं व बिक्रम मजीठिया शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के साले तो दोनों दलों की ओर से खूब जोर-आजमाइश यह चुनाव जीतने पर रहेगी। कोई भी पक्ष कहीं भी कमजोरी छोड़ना नहीं चाहेगा। सिद्ध के लिए मुश्किल यह हो सकती है कि उन्हें बतौर प्रधान पंजाब में बाकी हलकों में भी प्रचार करना होगा जबकि बिक्रम मजीठिया को इस मामले में कुछ एडवांटेज रहेगा।

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2017 में भी जलालाबाद और लंबी थी हॉट सीट
यह पहला मौका नहीं, जब किसी सीट पर 2 भारी-भरकम उम्मीदवार मैदान में हो। साल 2017 विधानसभा चुनाव में जलालाबाद व में लंबी में भी ऐसी ही हॉट सीट साबित हुई थी। तब लंबी सीट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चुनाव लड़ा था। हालांकि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से विधायक जरनैल सिंह को भी लंबी से टिकट दे दी थी। बादल ने तब अमरिंदर को 22770 वोट के अंतर से हराया था। जरनैल सिंह 21254 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे। अमरेंद्र अपनी पटियाला सीट जीत कर तब मुख्यमंत्री बने थे।

2014 लोकसभा में भी उलझे थे कई दिग्गज
साल 2014 में जब देशभर में मोदी लहर पूरे चरम पर थी तब कांग्रेस ने पंजाब में 4 सीटों पर अकाली-भाजपा के खिलाफ बड़े नेताओं को उतारा। इनमें अमृतसर लोकसभा हलके में कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली के बीच मुकाबला था। कैप्टन ने वह चुनाव 1,02770 वोट के अंतर से जीता था। पंजाब के उस समय कांग्रेस अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा थे जिनकी टक्कर गुरदासपुर में भाजपा के विनोद खन्ना से थी। खन्ना ने 4,82,042 वोट लेकर तब बाजवा को 1,35,899 वोट से हराकर यह सीट छीनी थी।

बादल-मान भिड़ चुके हैं किला रायपुर में
1997 में प्रकाश सिंह बादल ने अपनी लंबी सीट के अलावा लुधियाना जिले की किला रायपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था। किला रायपुर में उनका मुकाबला सी.पी.आई. के तरसेम जोधा से था। आखिरी वक्त पर अकाली दल मान के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने भी बादल के खिलाफ यहीं से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। बादल तब दोनों सीटों पर चुनाव जीते थे। किला रायपुर में बादल ने जोधा को 11032 वोट से हराया। तीसरे नंबर पर रहे सिमरनजीत सिंह मान को तब 15377 वोट मिले थे।

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जब बादल परिवार में ही हुआ मुकाबला
बठिंडा में बादल परिवार में मुकाबला हुआ था। कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल के खिलाफ मनप्रीत बादल को उतारा। इस चुनाव में बेहद करीबी और कांटे का मुकाबला देखने को मिला जब हरसिमरत कौर बादल 5 लाख से ज्यादा वोट लेकर केवल 19,295 से जीत पाई। गौरतलब है कि इससे पहले 2009 में इसी हल्के में हरसिमरत कौर बादल कैप्टन अमरिंदर के बेटे रणइंद्र सिंह को 1,20,000 वोट से हरा चुकी थी।

जब सुखबीर के सामने आए मान और रवनीत
2017 के चुनाव में ही जलालाबाद से तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ आम आदमी पार्टी से भगवंत मान और कांग्रेस से सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने चुनाव लड़ा। सुखबीर बादल ने मान को 18450 वोट से हराकर यह चुनाव जीता जबकि बिट्टू 31539 वोट लेकर यहां तीसरे स्थान पर रहे।

चंदूमाजरा ने 23,697 वोट से हराया था अंबिका सोनी को
कांग्रेस हाईकमान की बेहद करीबी दिग्गज नेता अंबिका सोनी ने भी 2014 में श्री आनंदपुर साहिब से चुनाव लड़ा था। उन्हें पटियाला के पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने नजदीकी मुकाबले में 23,697 वोट से हराया था। उस चुनाव में चंदूमाजरा को करीब साढ़े 3 लाख वोट मिले थे।

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