फिर दिल्ली के दरवाजे पर किसान, भाजपा के सिख नेता तालमेल बनवाने में नाकाम

Edited By Vatika,Updated: 14 Feb, 2024 11:27 AM

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अध्यक्ष खुद किसान होने के बावजूद किसानों के भीतर चल रही बड़े आंदोलन की तैयारी को भांपने में नाकाम रहे।

जालंधर: दो साल पहले कृषि कानूनों के मामले पर केंद्र सरकार को झुकने पर मजबूर करने वाले पंजाब और हरियाणा के किसान एक बार फिर बड़ा आंदोलन कर रहे हैं और पिछली बार की तरह पंजाब की भाजपा यूनिट एक बार फिर किसानों के साथ तालमेल करने में नाकाम साबित हुई है। पिछली बार अगस्त 2020 से लेकर दिसंबर 2021 के मध्य हुए किसान आंदलोन के दौरान ही पंजाब में अकाली दल ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा था और इसकी भरपाई करने के लिए भाजपा ने पंजाब में सिख चेहरों को तरजीह देने की राजनीति की, लेकिन पंजाब में भाजपा के अध्यक्ष खुद किसान होने के बावजूद किसानों के भीतर चल रही बड़े आंदोलन की तैयारी को भांपने में नाकाम रहे।

40 फीसदी पदाधिकारी सिख, जमीन पर कनैक्ट जीरो
इस बीच जब पंजाब में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने अपनी टीम की घोषणा की तो इस टीम में 45 फीसदी पद सिख नेताओं को दिए गए। पंजाब में किसानों के साथ कनैक्ट करने के लिए ही जाट नेता और किसान सुनील जाखड़ को पंजाब में भाजपा की कमान दी गई और जाखड़ ने जब अपनी टीम की घोषणा की तो इसमें  40 फीसदी सिख चेहरे शामिल किए। आज पंजाब भाजपा के पास कई सिख चेहरे हैं लेकिन पार्टी में इतने सिख चेहरे होने के बावजूद भाजपा के किसी सिख नेता का जमीनी कनैक्ट नहीं है।

कृषि कानूनों को रद्द करने का श्रेय लेने में नाकाम
केंद्र सरकार द्वारा 2020 में लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों ने पहला आंदोलन 9 अगस्त 2020 को शुरू किया था। यह आंदोलन 16 महीने चला था और 11 दिसंबर 2021 को कृषि कानूनों को रद्द किए जाने के बाद समाप्त हुआ था। पंजाब में भाजपा नेताओं ने इन आंदोलनों को रद्द किए जाने का श्रेय लेने के लिए न तो कोई प्रचार मुहिम चलाई और न ही गांवों में जाकर इन कृषि कानूनों के संबंध में किसानों को यह अहसास दिलाया कि केंद्र की सरकार ने किसानों के हितों को देखते हुए ही झुकने का फैसला किया है। इतना ही नहीं पंजाब में भाजपा के नेता केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही किसानों की भलाई की योजनाओं के संबंध में भी उन्हें अपने साथ लेने में विफल रहे। पंजाब में न तो पार्टी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने गांवों में जाकर चौपाल पर किसानों के साथ कोई वार्ता की और न ही पार्टी के अन्य किसी नेता ने किसानों को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए कोई कदम उठाया।

सुरक्षा हासिल करने के लिए भाजपा में आए सिख नेता
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि भाजपा की केंद्रीय लीडरशिप पंजाब की सियासत को समझ नहीं पा रही और पार्टी में ऐसे नेताओं को शामिल किया जा रहा है जिनका जमीनी आधार नहीं है। केंद्रीय लीडरशिप इन्हें सिर्फ सिख चेहरा होने के नाते ही पार्टी में शामिल करवा रही है जबकि वोट की सियासत के लिहाज से ये चेहरे 2022 के विधान सभा चुनाव में भी काम नहीं आए। इनमें से अधिकतर नेता खुद की सुरक्षा हासिल करने के लिए पार्टी में शामिल हो रहे हैं अथवा ये नेता किसी न किसी मामले में खुद कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए भाजपा का दामन थाम रहे हैं।

किसान आंदोलन से चिंतित हुए व्यापारी, भाजपा के कोर वोटर को भारी आर्थिक नुकसान की आशंका
किसानों के आंदोलन के चलते पंजाब में अब एक बार फिर व्यापारियों को भारी घाटे का डर सताने लगा है। पिछली बार जब किसानों का आंदोलन चला था तो इससे सिर्फ लुधियाना में ही 16 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का व्यापारिक घाटा हुआ था और हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू भी आर्हतिक तौर पर इस आंदोलन से प्रभावित हुए थे। अब एक बार फिर किसानों के आंदोलन से उत्तर भारत के इन राज्यों में व्यापारियों को चिंता सताने लगी है। यह वर्ग भाजपा का कोर वोटर है और यदि किसान आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ता है तो भाजपा के इस कोर वोटर को ही भारी क्षति होगी। भाजपा अपने कोर वोटर के अलावा सिख नेताओं के सहारे गांवों के वोटरों को जोड़ने की कोशिश तो कर रही है लेकिन जिस तरीके से पंजाब में भाजपा की लीडरशिप इस आंदोलन की तैयारी को भांपने में नाकाम रही है उससे पार्टी के कोर वोटर के भी भाजपा से छिटकने की आशंका है।

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