अकाली दल के लिए खुद के नेताओं को पार्टी में संभाले रखना बना बड़ी चुनौती!

Edited By Sunita sarangal,Updated: 02 Dec, 2021 11:40 AM

it is a big challenge for the akali dal to keep its own leaders in the party

शिरोमणि अकाली दल (ब) को बुधवार उस समय झटका लगा जब शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के राइट हैंड व दिल्ली सिख गुरुद्वारा.....

जालंधर(मृदुल): शिरोमणि अकाली दल (ब) को बुधवार उस समय झटका लगा जब शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के राइट हैंड व दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व प्रधान मनजिंद्र सिंह सिरसा ने भाजपा का दामन थाम लिया। सिरसा के भाजपा में जाने के पंजाब के सियासी पंडितों द्वारा कई मायने निकाले जा रहे हैं। पंजाब के सियासी पंडितों की मानें तो सिरसा के जाने से अकाली दल राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ पंजाब में अपनी सियासी जमीन खो रहा है। अब अकाली दल के लिए अपने नेताओं को संभालना बड़ी चुनौती बन गया है।

दिल्ली में बैठे शिरोमणि अकाली दल के कद्दावर नेता सिरसा सिख समुदाय में काफी बड़ा रसूख रखते हैं। चाहे वह पार्टी की गतिविधियों की बात हो या धार्मिक गतिविधियों की, सिरसा हमेशा इनमें बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। हैरानी की बात है कि सिरसा ने उस समय भाजपा का दामन थामा जब शिरोमणि अकाली दल को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी जिस कारण अकाली दल (ब) को इसका सियासी नुकसान आगामी 2022 के चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। हैरानी की बात है कि सिरसा के चुपके से भाजपा में जाने पर न सिर्फ अकाली दल, कांग्रेस समेत समूची पार्टियां मंथन कर रही हैं बल्कि भाजपा उन्हें आगामी चुनावों के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा भी बना सकती है या उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देकर पंजाब में सियासी फायदा लेने के लिए इस्तेमाल कर सकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मनजिंद्र सिंह सिरसा के अच्छे संबंध होने का फायदा अब उन्हें मिलेगा। बहरहाल, किसानी आंदोलन में उन्हें मजबूरन भाजपा के खिलाफ बोलना पड़ा, मगर अंदरूनी तौर पर उन्होंने भाजपा की हिमायत की थी। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानून रद्द कर दिए गए हैं तो अब भाजपा का फोकस पंजाब पर है क्योंकि पंजाब में भाजपा के लिए बढ़िया प्रदर्शन करना व आगामी चुनावों में ज्यादा सीटें जीतना भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के लिए चैलेंज है, ताकि वह विपक्षी पार्टियों को करारा जवाब दे सकें।

पार्टी प्रधान सुखबीर बादल की बढ़ी मुश्किलें
सिरसा के जाने के बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल प्रधान सुखबीर सिंह बादल की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं क्योंकि एक ओर जहां भाजपा विभिन्न पार्टियों के नेताओं को शामिल करवा रही है, उसी के साथ-साथ पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अकाली दल के लिए गले की फांस बन सकते हैं क्योंकि भाजपा के साथ-साथ हो सकता है कि आने वाले दिनों में कैप्टन अमरिंदर द्वारा बनाई गई नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस में भी कई अकाली नेता शामिल हो सकते हैं।

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भाजपा छोड़ अकाली दल में शामिल हुए सभी नेताओं को मिला करारा जवाब
वहीं सिरसा के भाजपा में शामिल होने से भाजपा के नेतृत्व द्वारा पार्टी छोड़कर अकाली दल में शामिल हुए नेताओं को करारा जवाब मिला है क्योंकि सियासी फायदा लेने के लिए कई नेता भाजपा का दामन छोड़ अकाली दल में शामिल हुए थे, उन्हें एक सख्त व साफ मैसेज भेजने के लिए भाजपा ने अपना सियासी पत्ता चला है।

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