क्रेडिट वार के बाद अब राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ता दिख रहा होशियारपुर रेलवे ओवर ब्रिज

Edited By Tania pathak,Updated: 30 Nov, 2020 12:38 PM

hoshiarpur railway over bridge is showing political ambition

क्रैडिट वार में उलझे रहे विपक्ष के नेता व कार्यकर्ता अब ऐड़ी चोटी का जोर लगाकर इस प्रोजेक्ट को रद्द कराने और उसका भी क्रैडिट लेने की जुगत भिड़ाते नजर आ रहे हैं...

होशियारपुर (अमरेन्द्र मिश्रा): फगवाड़ा रोड रेलवे मंडी वाली रेलवे फाटक  पर बड़े ही जोर शोर से शहर के लोगों के फायदे के ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर प्रचारित किया जाता रहा करीब 81 करोड़ रुपए से निर्माण होने वाले फ्लाईओवर की तरह दिखने वाले रेलवे ओवर ब्रिज अब राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते डर्टी  पॉलिटिक्स का शिकार हो अब ठंडे बस्ते में जाता दिखाई दे रहा है। हालात ऐसी कि कुछ समय  हले तक रेलवे ओवर ब्रिज निर्माण को अपनी अपनी उपलब्धि होने का दावा करते हुए क्रैडिट वार में उलझे रहे विपक्ष के नेता व कार्यकर्ता अब ऐड़ी चोटी का जोर लगाकर इस प्रोजेक्ट को रद्द कराने और उसका भी क्रैडिट लेने की जुगत भिड़ाते नजर आ रहे हैं। 

81 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट  को रद्द होते देख जनता में भी छाई खामोशी
हैरानीवाली बात तो यह कि राजनीतिक  पैतरेबाजी का शिकार हो रहा यह रेलवे ओवर ब्रिज नेताओं व कार्यकर्ताओं के इसके बनने से सड़क के दोनों ही तरफ के दुकानदारों की समस्या एक मुद्दा भर रहा हो लेकिन भविष्य में इसका दूरगामी दुष्परिणाम देखने के मजबूर होना पड़ेगा इसकी तरफ कोई नहीं देख रहा। रेलवे लाईन के दोनों ही तरफ जिस तेज गति से आबादी बढ़ रही है, भविष्य में रेलवे ओवर ब्रिज की कमी खलेगी इसमें कोई शक नहीं है। सबसे बड़ी हैरानी की बात यह कि होशियारपुर से इतनी बड़ी प्रोजेक्ट बंद होने की तैयारी को देखने के बाद भी जहां सत्ता व वि क्ष के नेता व कार्यकर्ता प्रोजेक्ट के रद्द होने  पर मातम की बजाए खुशियां मनाने में जुटी है वहीं आम जनता जिसे इसका फायदा मिलना था मौन साधे हुए है। 

रखनी चाहिए थी ड्राइंग व डिजाईन में बदलाव की शर्तं
गौरतलब है कि रेलवे व लोक निर्माण विभाग की तरफ से निर्माण होने वाली रेलवे ओवर ब्रिज की लंबाई 1154 मीटर व चौड़ाई करीब 8 मीटर रखी गई है। ऐसे में यदि इस ब्रिज की वजह से दुकानदारों की कोई समस्या है तो वह सरकार के समक्ष इसकी ड्राइंग व डिजाईन में बदलाव की बात करनी चाहिए थी ना कि इस ड्रीम  ्रोजैक्ट को ही ठंडे बस्ते में डलवाने की। रेलवे व लोक निर्माण विभाग ब्रिज के साथ दोनों ही तरफ सड़क (सर्विस रोड) भी बनाने की योजना बनाई हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब  ुल के नीचे सर्विस रोड की सुविधा मिलने जा रही है तो फिर विरोध क्यों? यदि किसी को एतराज भी है तो उसके समाधान के लिए सरकार के  ्रतिनिधि के साथ ड्राइंग व डिजाईन में बदलाव करने के लिए आबाज उठानी चाहिए थी ना कि पूरे प्रोजेक्ट को ही रद्दी के टोकरी में डलवाने की।


लुधियाना, जालंधर व आदमपुर में नहीं हुआ फ्लाईओवर निर्माण का विरोध 
किसी भी शहर के विकास का  पैमाना हुआ के फ्लाईओवर कल्चर से मापी जाती रही है। दिल्ली जैसी व्यस्त शहर में एशियाड के समय 1982 में जब फ्लाईओवर का डिजाईन किया गया व बाद में शहर में मेट्रो का जाल बिछाने की तैयारी हुई तो व्यापारियों ने विरोध जताया था। बाद में उसकी उपयोगिता को देख वहां की जनता ने शीला दीक्षित को विकास का मसीहा के तौर  र विशेष  हचान दी। इसी तरह लुधियाना का सबसे व्यस्त घंटाघर चौक व चौड़ा बाजार के उ र फ्लाईओवर बनने से ना तो उसके नीचे बने बड़े व्यापारियों को नुक्सान हुआ और ना ही स्थानींय निवासियों को। 

फ्लाईओवर से मिलने वाली लाभ से आम जनता ही नहीं बल्कि इस रास्ते से चंद मिनट के अंदर बिना किसी रुकावट गुजरने वाले वाहन चालक सरकार के दुरंदेशी सोंच की वाहवाही करते नहीं थकते। आदमपुर शहर में तो सौ फीसदी बाजार से फ्लाईओवर का निर्माण धीमी गति से होने के बाद भी यहां के लोग विरोध नहीं जता रहे वहीं होशियारपुर के साथ ही घोषित जालंधर में निर्माणाधीन लाडोवाली रोड पर फ्लाईओवर निर्माण कार्य भी शुरू है लेकिन अपने शहर का हाल यह कि निर्माण कार्य को ठप्  करने को लेकर हम खुशी मनाने में जुटे हैं। 

प्रोजेक्ट हुआ रद्द तो भविष्य में दोबारा निर्माण कार्य होना मुश्किल
एक तरफ शहर के लोग होशियारपुर रेलवे स्टेशन का विस्तार नहीं होने को लेकर सरकार को कोसते नजर आते हैं। इतिहास गवाह है कि होशियारपुर में कभी केन्द्र सरकार रेल कोच फैक्टरी की योजना लेकर आई थी कि लेकिन विरोध की वजह से यह  प्रोजेक्ट चली गई। इसी तरह होशियारपुर में फौजियों के लिए कैंट की योजना बनी लेकिन विरोध के चलते वह भी कपूरथला के कांजली में शिफ्ट हो गई। ऐसे में अब केन्द्र व राज्य सरकार बरसो बाद रेलवे ओवर ब्रिज निर्माण के लिए ना सिर्फ एकमत हुए बल्कि फंड की जुगाड़ कर जब वर्क ऑर्डर अलॉट करने लगी तो इसका विरोध किया जाने लगा। ऐसे में अब यदि यह ड्रीम  ्रोजैक्ट कहीं रद्द हो गया तो भविष्य में इसकी जरुरत के बावजूद सरकार की तरफ से क्लीयरैंस मिलना काफी मुश्किल भरा काम होगा।

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