जालंधर के मेयर के 3 साल पूरे: जानिए, क्या खोया क्या पाया

Edited By Tania pathak,Updated: 25 Jan, 2021 02:07 PM

jalandhar s mayor completes 3 years know what is lost

नए नगर निगम के 3 साल के कार्यकाल पर नजर दौड़ाई जाए तो मिश्रित प्रतिक्रियाएं सुनने देखने को मिल रही हैं।

जालंधर (खुराना): आज से ठीक 3 साल पहले 25 जनवरी 2018 को जालंधर के नए मेयर के रूप में जगदीश राज राजा , सीनियर डिप्टी मेयर के रूप में सुरेंद्र कौर और डिप्टी मेयर के रूप में हरसिमरनजीत सिंह बंटी ने शपथ ग्रहण की थी। नए नगर निगम के 3 साल के कार्यकाल पर नजर दौड़ाई जाए तो मिश्रित प्रतिक्रियाएं सुनने देखने को मिल रही हैं।

इस कार्यकाल बाबत पंजाब केसरी की टीम ने जब विभिन्न क्षेत्रों में जाकर आम लोगों से मुलाकात की तो यह बात उभर कर सामने आई कि पहले 2 साल तो नगर निगम की कार्यप्रणाली काफी धीमी रही परंतु इस साल कोरोनावायरस से उभरने के बाद निगम के कामकाज में तेजी आई है, जिसका एक कारण जहां पंजाब सरकार द्वारा विधायकों को 100 करोड़ रुपए की ग्रांट जारी करना है, वहीं स्मार्ट सिटी के प्रोजैक्टों में आई तेजी भी निगम के खाते में गिनी जा रही है। इस समय चाहे नगर निगम के क्षेत्र में विकास के कई बड़े बड़े प्रोजैक्ट चल रहे हैं परंतु क्या वह प्रोजैक्ट आगामी विधानसभा चुनावों तक पूरे हो पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है।

गौरतलब है कि निगम चुनावों को चाहे 2 साल का समय शेष है, परंतु पंजाब में विधानसभा चुनाव ठीक एक साल बाद होने हैं जिनका काऊंटडाऊन शुरू हो चुका है। लोगों की नजर में निगम की परफॉर्मेंस पर ही विधायकों का भविष्य टिका हुआ है। निगम के सामने इस समय सबसे बड़ा चैलेंज यही है कि क्या आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पहले चल रहे प्रोजैक्ट पूरे हो पाते हैं या नहीं।

ध्यान देने योग्य है कि 10 साल राज करने वाली अकाली-भाजपा सरकार ने भी अपने कार्यकाल के आखिरी साल में करीब पौने तीन सौ करोड़ के विकास कार्य शुरू करवाए थे परंतु वह विधानसभा चुनावों तक पूरे नहीं हो पाए थे। इस कारण अकाली-भाजपा को उन कामों का चुनावी लाभ नहीं मिल पाया था। अब कांग्रेस पार्टी के विधायक इन दिनों चल रहे विकास कार्यों का कितना क्रेडिट ले पाते हैं यह नगर निगम की कार्यशैली पर निर्भर करेगा।

स्टॉर्म वाटर के दोनों प्रोजैक्ट निर्माणाधीन
वैसे तो बरसाती पानी जमा होने की समस्या पूरे शहर को ही है परंतु जालंधर नॉर्थ तथा जालंधर वैस्ट में यह समस्या ज्यादा होने के कारण सोडल रोड और 120 फुट रोड पर स्टॉर्म वाटर सीवर प्रोजैक्ट शुरू किए गए जिनका काम चाहे इन दिनों तेज गति से जारी है परंतु फिर भी इन प्रोजैक्टों को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। दोनों विधायकों का हर संभव प्रयास है कि उनके चुनावों से पहले पहले यह प्रोजैक्ट पूरे हो जाएं।

सैनिटेशन पर प्रचार ज्यादा, ग्राऊंडवर्क कम
शहर की सबसे बड़ी समस्या कूड़े से संबंधित है जो पिछले 3 सालों से हल होने का नाम ही नहीं ले रही। विपक्ष के साथ-साथ सत्तापक्ष के ज्यादातर पार्षद भी सफाई का रोना रोते रहते हैं और सभी वार्डों में सफाई कर्मियों की बांट का काम भी सिरे नहीं चढ़ पाया। सॉलि़ड वेस्ट नियमों के तहत सैग्रीगेशन इत्यादि के प्रोजेक्ट भी केवल पाश कालोनियों तक ही सीमित रहे परंतु इनकी सफलता में भी कई अड़चनें आडे आ रही है जो अब धीरे-धीरे सुलझाई जा रही है।

विवादों में घिरा रहा है बायोमाइनिंग प्रोजैक्ट
शहर को कूड़े की समस्या से निजात दिलाने वाला बायोमाइनिंग प्रोजेक्ट पिछले 3 साल से विवादों में घिरा चला आ रहा है और अब भी इसे लेकर विरोध चरम सीमा पर है। खुद कांग्रेसी ही अपनी सरकार द्वारा बनाए इस प्रोजैक्ट का विरोध कर रहे हैं और इसे महंगा करार दिया जा रहा है। इस प्लांट को लगाने में हो रही देरी के कारण वरियाणा डंप समस्या का सुधार नहीं हो रहा जिस कारण निगम को एन.जी.टी. और प्रदूषण विभाग की लगातार नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।

निगम को स्मार्ट सिटी का बहुत बड़ा सहारा
देखा जाए तो नगर निगम पंजाब सरकार की अनदेखी के कारण पिछले 3 साल आर्थिक संकट का शिकार रहा और कई मौके ऐसे आए जब स्टाफ को वेतन देने तक में देरी हुई। ऐसे में स्मार्ट सिटी के करोड़ों रुपए के चल रहे काम नगर निगम का सहारा बने हुए हैं। स्मार्ट सिटी मिशन का मकसद शहर को सुंदर बनाना तथा अपग्रेड करना था परंतु जालंधर में स्मार्ट सिटी के तहत मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। चौकों को सुधारने का काम, पार्कों के सौंदर्यीकरण, स्टॉर्म वाटर तथा अन्य प्रकार के काम निगम की जिम्मेदारी है परंतु यह काम ही स्मार्ट सिटी के खाते में से करवाए जा रहे हैं।

बागी कांग्रेसी पार्षदों पर कोई कंट्रोल नहीं
एक जमाना था जब कांग्रेस में अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण होता था और जो भी पार्टी या अपने नेता विरुद्ध बोलता था उसे 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया जाता था परंतु पिछले 3 सालों दौरान जालंधर निगम में कांग्रेस के बीच अनुशासन नाम की कोई चीज दिखाई नहीं दी। देसराज जस्सल जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी पार्षदों ने हाऊस में अपनी ही पार्टी को जमकर घेरा। यहां तक कि विधायक सुशील रिंकू और विधायक परगट सिंह ने भी जालंधर निगम में भ्रष्टाचार बढ़ने की बात मानी और निगम की कार्यप्रणाली पर असंतोष व्यक्त किया। आज भी कांग्रेसी पार्षदों व अन्य नेताओं में आपसी मतभेद चरम सीमा पर हैं जिनका असर आगामी विधानसभा तथा निगम चुनावों में साफ देखने को मिल सकता है।

44 पार्षदपति , परंतु बैठने तक को स्थान नहीं
नगर निगम के 80 पार्षदों में 44 महिला पार्षद हैं, ज्यादातर महिला पार्षदों के पति ही निगम में कामकाज की खातिर आते जाते हैं और पिछले समय दौरान पार्षदपति हाऊस की बैठकों में भी बतौर दर्शक शामिल होते रहे हैं परंतु पिछले 3 साल दौरान निगम प्रबंधन इन पार्षदपतियों को हाऊस में बिठाने तक का प्रबंध नहीं कर पाया। निगम का अपना पार्षद हाऊस इतना तंग है कि वहां पार्षदपतियों की एंट्री बैन है और कोरोना काल के दौरान जितने भी पार्षद हाऊस आयोजित हुए उसमें भी भीड़ को कम करने के उद्देश्य से पार्षदपतियों को आने से मना कर दिया गया। इस कारण भी सक्रिय रूप से काम कर रहे पार्षदपतियों को कई तरह की समस्याएं आईं।

अवैध बिल्डिंगों व कॉलोनियों का बोलबाला बढ़ा
पिछले 3 साल के कार्यकाल पर नजर दौड़ाई जाए तो शहर में अवैध बिल्डिंगों व अवैध कालोनियों के मामले काफी बढ़ गए। आज खुद कांग्रेसी ही आरोप लगा रहे हैं कि निगम अवैध कालोनियों और बिल्डरों पर कोई कार्रवाई नहीं करता जबकि तथ्य यह है कि ज्यादातर अवैध निर्माण कांग्रेसी नेताओं की शह पर ही हो रहे हैं। आज से पहले नगर निगम प्रबंधन में ऐसी मनमर्जी कहीं नहीं देखी गई और आज ऐसे कामों में राजनीतिक हस्तक्षेप आशा से कहीं अधिक बढ़ चुका है।

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