Jalandhar: सब-रजिस्ट्रार ऑफिस बना जंग का मैदान, आपस में भिड़े नंबरदार

Edited By Urmila,Updated: 03 May, 2025 11:12 AM

sub registrar office jalandhar

सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 कार्यालय में गवाही प्रक्रिया को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान एक बार फिर सतह पर आ गई।

जालंधर (चोपड़ा): सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 कार्यालय में गवाही प्रक्रिया को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान एक बार फिर सतह पर आ गई। रजिस्ट्री के दस्तावेजों में गवाही डालने को लेकर दो नंबरदारों के गुटों में जमकर बहस बाजी और विवाद हुआ। इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल कार्यालय का माहौल तनावपूर्ण बना दिया बल्कि रजिस्ट्री कराने आए आम आवेदकों को भी भारी परेशानी झेलनी पड़ी। गवाही की इस रस्साकशी के केंद्र में खांबड़ा, वडाला क्षेत्र से जुड़ी एक रिहायशी प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री थी, जहां नंबरदारों के दो गुट गुरदेव लाल और मदन लाल एक-दूसरे के सामने आ डटे।

जिक्रयोग्य है कि सब-रजिस्ट्रार कार्यालयों में रजिस्ट्री, वसीयत, पॉवर ऑफ अटॉर्नी, तबदील मलकियत आदि दस्तावेजों की ऑनलाइन अप्रूवल सिस्टम से होता है। इस व्यवस्था में प्रॉपर्टी से संबंधित गवाही नंबरदारों से ली जाती है, जिससे दस्तावेज की प्रामाणिकता सुनिश्चित की जा सके। हालांकि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने का उद्देश्य था, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर यह प्रणाली विवाद टकराव का कारण बनती जा रही है। कई बार देखा गया है कि एक क्षेत्र का नंबरदार किसी अन्य क्षेत्र की प्रॉपर्टी में भी गवाही डालने लगता है। इसी चलन के चलते अब नंबरदारों के बीच गुटबाजी बढ़ने लगी है और गवाही एक औपचारिक प्रक्रिया से ज़्यादा "कंट्रोल और कमाई" का जरिया बनती जा रही है।

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वहीं कार्यालय में मौजूद कुछ लोगों का कहना था कि प्रशासन को चाहिए कि वह नंबरदारों के गुटों की मनमानी पर रोक लगाए और एक रोटेशनल सिस्टम या डिजिटल रैंडम अलॉटमैंट प्रणाली लागू करे, जिससे गवाही प्रक्रिया निष्पक्ष रूप से की जा सके। सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 कार्यालय में इस समय दो प्रमुख गुट बन चुके है। एक ग्रुप की अगुआई नंबरदार यूनियन के प्रधान गुरदेव लाल कर रहे हैं जबकि दूसरा गुट मदन लाल के नेतृत्व में सक्रिय है। रोजाना रजिस्ट्री दस्तावेजों में गवाही डालने को लेकर इन दोनों के बीच तनातनी चल रही है। आपसी मनमुटाव अब खुलकर सामने आ चुका है और हर दस्तावेज में कौन गवाही देगा, इसे लेकर लगातार टकराव हो रहे हैं।

आज का विवाद भी इसी गुटबाजी की उपज था। रजिस्ट्री दस्तावेज में पहले सुरिंदर सिंह नामक नंबरदार की गवाही दर्ज की गई थी। लेकिन ऐन वक्त पर सुरिंदर की पत्नी की तबीयत खराब होने के चलते वह कार्यालय से चला गया। ऐसे में गुरदेव लाल गुट के एक नंबरदार ने उसकी जगह स्व-घोषणा पत्र के साथ गवाही देने की कोशिश की। इस पर मदन लाल गुट ने तीखा एतराज जताते हुए कहा कि सुरिंदर उनके ग्रुप से संबंधित है, इसलिए गवाही उनका ही नंबरदार देगा।

ज्वाइंट सब-रजिस्ट्रार के सामने हुई बहसबाजी, अधिकारी बने रहे मूकदर्शक

यह विवाद उस समय और गहरा गया जब दोनों गुटों के बीच बहसबाजी ज्वाइंट सब-रजिस्ट्रार रवनीत कौर और जगतार सिंह के सामने होने लगी। दोनों ज्वाइंट सब रजिस्ट्रार इस मामले में मूकदर्शक बने रहे और अपना अन्य काम निपटाते रहे। इतना ही नहीं रजिस्ट्री क्लर्क के साथ भी एक नंबरदार की बहस हो गई। इस बीच रजिस्ट्री कराने आए आवेदक असहज होकर एक कोने में खड़े होकर तमाशा देखते रहे। उनमें से कई बार-बार यह पूछते नजर आए कि "हमारी रजिस्ट्री कब होगी?" लेकिन नंबरदारों की लड़ाई के चलते उनकी सुनवाई नहीं हो सकी।

बहस से परे गवाही के पीछे की सच्चाई है आर्थिक लाभ

इस घटना ने यह उजागर कर दिया कि यह लड़ाई केवल गवाही डालने तक सीमित नहीं है। असल में यह उस आर्थिक लाभ की लड़ाई है जो हर रजिस्ट्री दस्तावेज में गवाही देने के बदले मिलता है। सूत्रों के अनुसार एक गवाही के बदले नंबरदारों को निर्धारित फीस से कहीं ज्यादा 1000 रुपए तक की राशि मिलती है। ऐसे में अधिक से अधिक गवाहियों पर कब्जा बनाए रखने के लिए गुटबाजी स्वाभाविक रूप से जन्म ले रही है। इतना ही नही इस हंगामे के दौरान मदन लाल ने सार्वजनिक तौर पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि "चाहे नंबरदारों का सारा काम बंद हो जाए, हमें कोई परवाह नहीं, लेकिन हमारे ग्रुप के दस्तावेज में किसी और की गवाही नहीं डाली जाएगी।

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