शिरोमणि कमेटी के आम चुनाव ठंडे बस्ते में, गुरुद्वारा आयोग कार्यालय में सन्नाटा

Edited By Urmila,Updated: 21 May, 2022 09:34 AM

shiromani committee general elections in cold storage

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनावों का मुद्दा फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। गुजरे कुछ माह में गुरुद्वारा चुनाव आयोग के चंडीगढ़ कार्यालय की ओर से गृह मंत्रालय से मात्र इतना ...

जालंधर (नरेंद्र मोहन): शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनावों का मुद्दा फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। गुजरे कुछ माह में गुरुद्वारा चुनाव आयोग के चंडीगढ़ कार्यालय की ओर से गृह मंत्रालय से मात्र इतना ही पत्राचार हुआ है कि शिरोमणि कमेटी चुनावों का कोई मामला अब किसी अदालत में नहीं है। नए मतदाता बनाने अथवा मतदाता सूचियों की तैयारी जैसा कोई निर्देश गृह मंत्रालय से नहीं आया।
 
चंडीगढ़ के सैक्टर 17 में गुरुद्वारा चुनाव आयोग का कार्यालय फिर से तैयार हो चुका है। आयोग के कर्मचारी, जो पंजाब सचिवालय में विभिन्न विभागों में प्रतिनियुक्ति पर भेज दिए गए थे, अब आयोग के कार्यालय में काम कर रहे हैं। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस.एस. सरोन गुरुद्वारा चुनाव आयोग के मुख्याधिकारी हैं परंतु आयोग कार्यालय में सन्नाटा है। चुनाव सूचियां, नए वोटर या कोई अन्य तैयारी अभी ठप्प है।  

स्वतंत्र भारत के अभी तक के इतिहास में और पंजाब के पुनर्गठन से लेकर अब तक एक बार भी शिरोमणि कमेटी के चुनाव निर्धारित समय पर नहीं हुए। अंग्रेजी राज में एस.जी.पी.सी. के जनरल हाऊस की अवधि 3 वर्ष होती थी। तब चुनाव समय पर ही होते रहे परंतु बाद में चुनावों में अवरोध पैदा होने लगे। अंग्रेजी राज के 21 वर्षों में एस.जी.पी.सी. के आम चुनाव 7 बार हुए परंतु स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष के इतिहास में ये चुनाव मात्र 5 बार ही हुए। वर्ष 1944 में अकाली दल के कहने पर संशोधन करके चुनाव का समय 5 वर्ष कर दिया गया। बस तभी से कभी भी चुनाव समय पर नहीं हो सके।

2011 में पंजाब में 157 सीटें जीतने वाले शिअद के लिए चुनाव अब आसान नहीं
एस.जी.पी.सी. में कुल 190 सदस्यों का चुनाव होना है। अकेले पंजाब से 157 सदस्य चुने जाने हैं शेष हरियाणा, हिमाचल और चंडीगढ़ से। इससे पूर्व वर्ष 2011 में एस.जी.पी.सी. के चुनाव हुए थे जिसमें अकाली दल ने संत समाज के साथ मिलकर 157 सीटें जीती थीं। पंजाब में अकाली दल और भाजपा का गठजोड़ अकाली दल द्वारा तोड़ लेने और सुखबीर सिंह बादल के अकाली दल अध्यक्ष बनने के बाद हालात में काफी तबदीली आई है। 

पंजाब में कांग्रेस समेत अन्य दल केंद्रीय गृह मंत्रालय से एस.जी.पी.सी. चुनाव करवाने की लगातार मांग करते आ रहे हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी एस.जी.पी.सी. चुनावों को लेकर सक्रिय हैं। वैसे भी पूर्व की बादल सरकार में घटे बहबल कलां गोलीकांड, बेअदबी मामले और उससे पहले डेरा सिरसा के मुखी को माफी देने के मामले के बाद अकाली दल का वोट कटकर अधिकतर आप से और कुछ कांग्रेस से जुड़ गया। 
हालांकि कांग्रेस ने एस.जी.पी.सी. चुनाव में सीधे प्रवेश से इंकार किया है परंतु परोक्ष रूप से कांग्रेस भी इस चुनाव के लिए तैयारी में है। अकाली दल द्वारा भाजपा से रिश्ते तोड़ लेने के बाद भाजपा भी अकाली दल को जमीन दिखाने का इरादा रखती है। वैसे भी विधानसभा चुनाव में अकाली दल की पराजय के बाद उसके लिए शिरोमणि कमेटी चुनाव आसान नहीं। 

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