बदलाखोरी की राजनीति ने पंजाब को हाशिए पर धकेला

Edited By swetha,Updated: 04 Sep, 2018 08:21 AM

punjab politics

पंजाब के लोगों ने कांग्रेस को दो तिहाई सीटों से इसलिए जिताया था कि वह नशे के कलंक से छुटकारा पाने के साथ-साथ प्रदेश को दोबारा विकास की ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे। अकाली-भाजपा के 10 साल के राज में न केवल पंजाब नशे की दलदल में डूब चुका था, बल्कि विकास...

जालंधर (रविंदर): पंजाब के लोगों ने कांग्रेस को दो तिहाई सीटों से इसलिए जिताया था कि वह नशे के कलंक से छुटकारा पाने के साथ-साथ प्रदेश को दोबारा विकास की ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे। अकाली-भाजपा के 10 साल के राज में न केवल पंजाब नशे की दलदल में डूब चुका था, बल्कि विकास का पहिया भी थम चुका था, मगर कांग्रेस को सत्ता में लाने के बाद पंजाबियों की सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। आज हालात पूर्व सरकार के कार्यकाल से भी बुरे हो चुके हैं। प्रदेश बदलाखोरी की राजनीति में फंस चुका है। कांग्रेस व अकाली दल दोनों पार्टियां प्रदेश में ब्लेम की राजनीति में उलझ गई हैं, लोगों की तरफ और विकास के कामों की तरफ किसी का ध्यान नहीं। विकास पूरी तरह से पटरी से उतर चुका है। वहीं मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी अपने घर की लड़ाई में ही उलझ कर रह गया है। 

अकाली-भाजपा के 10 साल के कामकाज की बात करें तो प्रदेश को सबसे ज्यादा चोट नशे की पड़ी। इन 10 सालों में प्रदेश पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में आ चुका था। शहरी हलके विकास को तरस गए थे, उद्योगपति व व्यापारी असमंजस की स्थिति में थे और प्रदेश का व्यापार पूरी तरह से चौपट हो चुका था। अकाली दल ने अपनी मनमर्जी व मनमानी से सरकार चलाई और भाजपा पिछलग्गू बनकर चुपचाप तमाशा देखती रही। लोगों को कांग्रेस से बड़ी उम्मीदें थीं कि सत्ता बदलेगी तो प्रदेश की तस्वीर भी बदलेगी, मगर ऐसा न हो सका। पिछले डेढ़ साल की बात करें तो कांग्रेस सरकार के कामकाज पर कई तरह के सवाल खड़े हुए हैं। कांग्रेस सरकार प्रदेश के लोगों का दिल जीतने में नाकाम रही है।

न तो प्रदेश की कानून व्यवस्था सुधर सकी है और न ही प्रदेश नशे की दलदल से मुक्त हो सका है। उलटा नौजवानों में नशे की लत ज्यादा बढ़ी है और नशे से होने वाली मौतों का सिलसिला भी पहले से ज्यादा हुआ है। रही बात विकास की तो प्रदेश में विकास नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। सरकार के पास अपने मुलाजिमों की तनख्वाह तक देने के लिए पैसे नहीं हैं। सिर्फ बयानबाजियों व मीटिंगों तक ही सरकार की कारगुजारी सीमित होकर रह गई है। लोग खुद को कोसने लगे कि किस घड़ी में कांग्रेस को वोट दिया था। रही-सही कसर अब बहबल कलां व बरगाड़ी गोलीकांड की रिपोर्ट ने पूरा कर दी है। जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन ने पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सैनी समेत पूरी पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं व पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पर भी उंगली उठाई है, मगर मुख्य गवाह हिम्मत सिंह के अपने बयानों से पलटने के बाद अकाली दल को भी हमला करने का मौका मिल गया है। 

विधानसभा पूरी तरह से विकास की बातें या योजनाओं पर चर्चा करने की बजाय बदलाखोरी का अड्डा बनकर रह गया है। विधानसभा में चर्चा सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ रिपोर्ट तक ही सीमित होकर रह गई है। रही बात आम आदमी पार्टी की तो वह जनता हित के मुद्दे उठाने की बजाय खुद की लड़ाई में ही उलझ कर रह गई है। पिछले सैशन में जिस मजबूती से सुखपाल खैहरा ने सरकार को घेरा था, इस बार उन्हें विपक्षी दल के नेता से हटाए जाने के बाद आम आदमी पार्टी दोफाड़ हो चुकी है और सरकार को घेरने की बजाय पार्टी के नेता इस सैशन में एक-दूसरे को ही घेरते दिखाई दिए।  

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