Edited By Urmila,Updated: 12 Apr, 2023 11:42 AM
अभी तक पंजाब में इतनी गहराई तक भूजल की तलाश के किसी मिशन को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है।
चंडीगढ़ : पंजाब में लगातार गिरते भूजल के बीच पहली बार सतह के 700 मीटर नीचे भूजल की तलाश हो रही है। अभी तक पंजाब में इतनी गहराई तक भूजल की तलाश के किसी मिशन को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है। यह सब इजरायल की मैसर्ज मेकोरोट नैशनल वाटर कंपनी की सिफारिशों के तहत किया जा रहा है। इसके लिए पंजाब जलस्त्रोत विभाग ने 9 स्थानों का चयन किया है। इसमें अमृतसर, तरनतारन, कपूरथला, जालंधर, लुधियाना की दो साइट, संगरूर की दो साइट और पटियाला की साइट शामिल हैं।
पंजाब के जलस्त्रोत विभाग के अधिकारियों की मानें तो यह मिशन भविष्य में पंजाब की भूजल से जुड़ी चुनौतियों से निपटने व भावी रणनीति तैयार करने के लिहाज से अहम रहेगा। ऐसा इसलिए भी है कि पंजाब में धरती के नीचे सख्त चट्टानी बनावट नहीं है। यहां ज्यादात्तर धरती के नीचे रेत व मिट्टी है, जिसके चलते अधिक गहराई तक खुदाई करने में बड़ी चुनौतियां पेश आती हैं। उस पर देश में अभी तक गहराई खुदाई का ज्यादात्तर कार्य दक्षिण भारत में ही हुआ है लेकिन वहां धरती के नीचे का हिस्सा पठारी व चट्टानी है, जिससे खुदाई करते समय आसपास के हिस्से टूटकर खुदाई वाली जगह में नहीं गिरते हैं। इसके उल्ट पंजाब में रेत व मिट्टी के कारण आसपास के हिस्से बोरवैल में गिर जाते हैं। हालांकि इन सब चुनौतियों के बावजूद पंजाब सरकार तेजी से 700 मीटर तक भूजल की तलाश करने व अध्ययन करने की राह पर है।
पंजाब के 114 ब्लॉक व 3 अर्बन एरिया अति शोषित
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने हाल ही में प्रदेश के 150 ब्लॉक का अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि पंजाब में अंधाधुंध भूजल की निकासी के कारण करीब 114 ब्लॉक व 3 अर्बन एरिया अति शोषित श्रेणी में आ गए हैं। यहां भूजल में तेजी से गिरावट आई है यानी 76.35 फीसदी ब्लॉक अतिशोषित की श्रेणी में है। वहीं, 4 ब्लॉक नाजुक स्थिति में और 15 ब्लॉक अद्र्ध नाजुक स्थिति में हैं। पंजाब के केवल 17 ब्लॉक ही सुरक्षित श्रेणी में हैं। विशेषज्ञों की मानें तो लगातार गिरता भूजल भविष्य में पंजाब जैसे कृषि संपन्न राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है क्योंकि भूजल की गहराई बढने से पानी निकालना किसानें के लिए आर्थिक रूप से महंगा सौदा साबित होगा। गहराई में पानी निकालने के लिए बड़े नलकूपों और गहरे पाइपों की आवश्यकता होगी, जिसकी लागत 40-50 लाख रुपए तक भी पहुंच सकती है।
प्रत्येक वर्ष 40 सैंटीमीटर की रफ्तार से सूख रहा भूजल
700 मीटर गहराई वाले भूजल के अध्ययन की एक बड़ी वजह यह भी है कि 300 मीटर तक उपलब्ध भूजल में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। पंजाब में प्रत्येक वर्ष करीब 40 सैंटीमीटर की रफ्तार से पानी नीचे जा रहा है। विशेषज्ञों की तरफ से हाल ही में किए गए दावे के मुताबिक 2029 तक 100 मीटर में भूजल समाप्त हो जाएगा जबकि 2039 तक भूजल 300 मीटर से नीचे चला जाएगा। यह दावा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्रीय भूजल बोर्ड ने अपनी ताजा रिपोर्ट में आंकड़ों के जरिए गंभीर संकेत दिए हैं। बोर्ड ने कहा है कि पंजाब में 2 साल के दौरान पंजाब में भूजल निकासी 164.2 फीसदी से बढ़कर 165.99 फीसदी हो गई है। पंजाब में इस समय प्रत्येक वर्ष 28.2 बिलियन क्यूबिक मीटर (बी.सी.एम.) भूजल निकाला जा रहा है जबकि ग्राउंड वाटर रिचार्ज 18.94 बिलियन क्यूबिक मीटर है। ग्राउंड वाटर रिचार्ज में आई यह कमी लगातार कम होती बारिश, कच्ची नहरों को पक्का करने, तलाब की घटती संख्या के कारण है।
आर्टिफिशियल रिचार्ज ग्राऊंड वाटर स्कीम पर फोकस
पंजाब सरकार ने गिरते भूजल की रफ्तार को कम करने के लिए आर्टिफिशियल रिचार्ज ग्राऊंड वाटर स्कीम्स पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके तहत नहरी पानी पर आधारित करीब 129 स्कीम्स को मनरेगा व पंजाब वाटर रैजोल्यूशन एंड डिवैल्पमैंट अथॉरिटी के जरिए लगाने की कार्रवाई की जा रही है। नहरी विश्राम घरों में 30 योजनाओं को अमल में लाया गया है और इनका रिचार्ज मापने के लिए फ्लो मीटर लगाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में पंजाब जल स्त्रोत विभाग अधीन विभिन्न जिलों में स्थित नहरी रेस्ट हाऊस में विभिन्न रिचार्ज स्कीम्स बनाकर अतिरिक्त नहरी पानी को भूजल रिचार्ज के लिए इस्तेमाल करने का प्रस्ताव है। वहीं, जल स्त्रोत विभाग ने एक प्राइवेट संस्था के साथ मिलकर प्रदेश के स्कूल व डिसपेंसरीज सहित 45 जगहों का सर्वेक्षण किया है। इसमें से 13 जगहों पर बरसाती पानी को इकट्ठा करके धरती के नीचे भेजने का काम मुकम्मल किया जा रहा है।
मनरेगा के तहत 192 चेकडैम साइट्स की पहचान
ग्राऊंड वाटर रिचार्ज के लिए मनरेगा के तहत 192 नए चेक डैम की पहचान की गई है। जल स्त्रोत विभाग के ड्रेनेज और कैनाल विंग के आपसी तालमेल से काम कर रहे हैं और जहां कहीं भी नहरी और डै्रन एक दूसरे को पार करते हैं, उस जगह नहरी पानी के इस्तेमाल से ड्रेनेज नेटवर्क के जरिए धरती के नीचे पानी को रिचार्ज करने पर जोर दिया जा रहा है। भूजल को रिचार्ज करने के लिए केवल नहरों की साइड लाइन को ही पक्का किया जा रहा है जबकि जमीनी सतह को कच्चा रखा जा रहा है ताकि अधिक से अधिक वाटर रिचार्ज हो। इसी कड़ी मे नहरों के किनारे अधिक से अधिक वृक्ष रोपित किए जा रहे हैं ताकि पानी का वाष्पीकरण कम हो। साथ ही कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई की योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है। पंजाब सरकार ने अगले 5 वर्षों में 20 हजार हैक्टेयर रकबा कवर करने का लक्ष्य तय किया है।
भूजल की निकासी को कम करने के लिए सरकार ने पटियाला में लगे 13 एम.एल.डी, ग्रेटर लुधियाना एरिया डिवैल्पमैंट अथॉरिटी के अधीन लगे 2.6 एम.एल.डी और पंजाब अर्बन डिवैल्पमैंट अथॉरिटी अधीन लगे 2 एम.एल.डी. के सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट में आने वाले दूषित पानी को शुद्ध कर दोबारा इस्तेमाल पर जोर दिया है। इस पानी का इस्तेमाल बागबानी, कृषि व निर्माण कार्यों में किया जा रहा है। इसके अलावा इको सिटी, मेडिसिटी, एयरोसिटी और आई.टी. सिटी के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से मिलने वाले पानी को इस्तेमाल करने के लिए पाइप लाइन का नेटवर्क बिछाया जा रहा है।
धान की सीधी बिजाई पर 1500 रुपए प्रति एकड़ की अहम योजना
भूजल इस्तेमाल में कमी लाने के लिए पंजाब सरकार ने धान की सीधी बिजाई पर किसानों को 1500 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देने की अहम योजना को अलमीजामा पहनाया है। वहीं, ग्रामीण विकास और पंचायत विभाग के स्तर पर वेस्ट वाटर स्टैबलाइजैशन पॉन्ड तकनीक पर आधारित एक अध्ययन करवाने के उपरांत प्रदेशभर के तालाबों के नवीनीकरण के लिए थापर मॉडल को लागू किया गया है ताकि अधिक से अधिक वाटर रिचार्ज हो सके। वहीं, भूजल के भरोसे पेयजल सप्लाई की बजाए नहरी पानी की सप्लाई पर तेजी से काम चल रहा है। लुधियाना और अमृतसर शहर में 24 घंटे पेयजल उपलब्ध करवाने की स्कीम लागू हो रही है।
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