पंजाब में कांग्रेस प्रधानगी पर फिर दावा ठोक रहे हैं नवजोत सिद्धू

Edited By Vatika,Updated: 07 Apr, 2022 08:25 AM

navjot sidhu congress

पंजाब के विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त के बाद हाईकमान द्वारा इस्तीफा

चंडीगढ़(हरिश्चंद्र): पंजाब के विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त के बाद हाईकमान द्वारा इस्तीफा मांगे जाने पर नवजोत सिद्धू ने इस्तीफा चाहे दे दिया था लेकिन प्रधानगी के लिए उनकी कशमकश में कोई कमी नहीं आई है। बीते माह 15 तारीख को सोनिया गांधी ने सिद्धू से इस्तीफा मांगा था और उसके बाद करीब 3 हफ्ते से पंजाब में कांग्रेस बिना प्रधान के ही चल रही है। कुछ दिन की चुप्पी के बाद सिद्धू अचानक राजनीति में सक्रिय होने लगे हैं।

सरगर्मी का आलम यह है कि कभी वह किसी हत्याकांड में मारे गए व्यक्ति के परिजनों से मिलते हैं, कभी चंडीगढ़ व एस.वाई.एल. जैसा मुद्दा उठाते हैं तो कभी बरगाड़ी तक पहुंच जाते हैं। इस दरमियान उन्होंने अपने खेमे को फिर से एकजुट करके उनके बलबूते प्रधान पद पर दावा ठोकने के लिए अमृतसर और पटियाला के अलावा सुल्तानपुर लोधी में पार्टी नेताओं के साथ मुलाकात भी की। खास बात यह है कि सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ने चुनाव प्रचार के चरम पर रहते घोषणा की थी कि यदि सिद्धू हारते हैं तो वह राजनीति छोड़ देंगे। चुनाव में तो वह अमृतसर पूर्वी की अपनी सीट हारे ही, पार्टी आलाकमान ने उनकी प्रधानगी भी एक झटके में छीन ली थी लेकिन चुनाव हारने और प्रधानगी छिनने के बाद राजनीतिक तौर पर बेरोजगार हुए सिद्धू राजनीति छोडऩे के मूड में नहीं दिखते।

विधानसभा चुनाव में हार के बाद हाईकमान ने मांगा था इस्तीफा
यह परंपरा रही है कि चुनावी हार के बाद सूबे का पार्टी नेतृत्व नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश करता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 13 में से 8 सीटें जीत कर बढिय़ा प्रदर्शन किया था लेकिन सुनील जाखड़ गुरदासपुर से सन्नी देओल के मुकाबले हार गए थे। जाखड़ ने तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से तुरंत इस्तीफा दे दिया था। हालांकि हाईकमान ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर बतौर अध्यक्ष काम करते रहने को कहा था। मगर नवजोत सिद्धू के मामले में ऐसा नहीं हुआ। 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद भी जब पार्टी की दुर्गति की जिम्मेदारी स्वीकार कर सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया था तब 5 दिन बाद हाईकमान को उनसे इस्तीफा मांगना पड़ा था। सोनिया गांधी को भेजे उस एक लाइन के इस्तीफे में भी चुनावी हार का कोई जिक्र नहीं था बल्कि सपाट लिखा था कि वह पी.पी.सी.सी. प्रधान पद से इस्तीफा दे रहे हैं। 

अब राह इतनी आसान नहीं 
प्रधानगी के लिए करीब रोजाना ही सक्रियता व शक्ति-प्रदर्शन के जरिए नवजोत सिद्धू चाहे तगड़ा दावा ठोकने का प्रयास कर रहे हों लेकिन उनकी राह अब इतनी भी आसान नहीं है। राहुल-प्रियंका से नजदीकी के चलते सिद्धू 8 माह पहले पंजाब में कांग्रेस की प्रधानगी हासिल करने में कामयाब रहे थे मगर अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। पार्टी के ही कई नेता इस मौके पर उन्हें प्रधानगी सौंपने में अड़चन डालने से नहीं चूकेंगे। पूर्व प्रधान और कादियां से विधायक प्रताप सिंह बाजवा तो कह ही चुके हैं कि कर्नल को अचानक जनरल नहीं बनाया जा सकता। अब हाईकमान वरिष्ठता और पार्टी के प्रति वफादारी का ध्यान रख कर ही कोई फैसला करे। लुधियाना से सांसद रवनीत बिट्टू तो इससे 2 कदम आगे जाकर यहां तक कह गए कि पंजाब में गधों से शेर मरवा दिए। मिसगाइड मिसाइल (सुखबीर बादल अक्सर नवजोत सिद्धू को मिसगाइडेड मिसाइल कहते रहे हैं) हमारे ही तोपखाने पर गिर गई। कभी सिद्धू के साथ चले सुखजिंद्र सिंह रंधावा तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही सिद्धू पर बयान दागने से नहीं चूके थे। उन्होंने सिद्धू पर पंजाब में कांग्रेस का कत्ल करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि सिद्धू कभी कांग्रेस के रंग में रंगे ही नहीं।

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