लोकसभा चुनावों में विरोधी पक्ष को फतवा देते रहे हैं पंजाबी

Edited By Vatika,Updated: 12 Apr, 2019 10:17 AM

lok sabha election 2019

देश को मिली आजादी के बाद से अब तक करीब 16 बार हुए लोकसभा चुनावों में पंजाब के लोगों का रुझान बहुत दिलचस्प तरीके से तबदील होता आ रहा है। अगर कुछ चुनावों को छोड़कर शेष चुनाव परिणामों को देखा जाए तो यह बात सामने आती है कि पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर...

गुरदासपुर(हरमनप्रीत): देश को मिली आजादी के बाद से अब तक करीब 16 बार हुए लोकसभा चुनावों में पंजाब के लोगों का रुझान बहुत दिलचस्प तरीके से तबदील होता आ रहा है। अगर कुछ चुनावों को छोड़कर शेष चुनाव परिणामों को देखा जाए तो यह बात सामने आती है कि पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर ज्यादातर जीत उस पार्टी को मिलती रही, जो सत्ता में न हों, जबकि सत्ताधारी पक्ष से संंबंधित पार्टी को ज्यादातर पंजाब के लोगों ने समर्थन नहीं दिया।  2014 के लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी ने कुछ समय के बाद ही यहां पंजाब की 4 सीटें जीतकर इतिहास बनाया था, वहीं इस पार्टी ने पंजाब के पुराने चुनाव इतिहास के रुझान में एक नई तस्वीर पेश कर दी थी। क्योंकि इससे पहले कभी भी किसी नई पार्टी और तीसरे पक्ष को पंजाब में इतने बड़े स्तर पर समर्थन नहीं मिला था। 


पंजाब में कांग्रेस को कब कितनी सीटों पर नसीब हुई जीत
आजादी के पश्चात देश की पहली हदबंदी मुताबिक पंजाब में 1952 में 18 लोकसभा क्षेत्र थे, जबकि दूसरी हदबंदी मुताबिक 1957 और 1962 के चुनावों में पंजाब में 22-22 लोकसभा क्षेत्र थे, मगर पंजाब के पुनर्गठन के बाद पंजाब में 13 लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आए। इसके बाद अब तक 13 लोकसभा क्षेत्रों में ही चुनाव होते आ रहे हैं। इन्हीं क्षेत्रों में भी विधानसभा क्षेत्रों की जोड़-तोड़ की जा चुकी है मगर लोकसभा हलकों की संख्या 13 ही रही है। पंजाब के पुनर्गठन से पहले तो कांग्रेस का बोलबाला ही रहा है, मगर बाद में पंजाब में अकाली दल के बढ़े ग्राफ ने कांग्रेस को खोरा लगाया। इसी तरह अकाली दल ने 1997 में भाजपा से किए गठबंधन ने भी कांग्रेस की बड़ी जीत को हार में तबदील करना शुरू कर दिया था, जिससे पंजाब में लोकसभा चुनाव व परिणामों के रुझान बदलने शुरू हो गये। ज्यादातर यही होता रहा कि पंजाब के लोग ज्यादातर सीटें विरोधी पार्टी की झोली में डालते रहे।

चुनावी वर्ष  लोकसभा  सीटें  विजयी सीट
1952 18 16
1957 22 21
1962 22 14
1967 13 09
1971  13 10
1977 13 00
1980 13 12
1985 13 06
1989  13 01
1992  13 12
1996 13 01
1998 13 00
1999  13 08
2004 13 02
2009   13 08
2014 13

03

अकाली दल को कब मिली कितनी सीटें?
पंजाब के पुनर्गठन से पहले हुए लोकसभा चुनावों में अकाली दल पतली हालत में से ही गुजरता रहा, मगर पुनर्गठन के बाद अकाली दल की स्थिति में सुधार होना शुरू हो गया, विशेषकर देश में लगी एमरजैंसी के बाद यहां देश में कई अन्य क्षेत्रीय पार्टियों में उभार देखने को मिला, वहीं पंजाब में अकाली दल ने भी मजबूती से पांव पसारे और लोगों का फतवा मिलने से बड़ी जीत दर्ज की। 

चुनावी वर्ष सीटें  विजयी सीट
1977 13 09
1980 13 01
1985 13 07
1989     
1992 13

बायकाट

1996  13 09
1998  13 08
1999 13 02
2004 13 08
2009 13 04
2014 13 04


अकाली दल के साथ गठबंधन के बाद भाजपा का बढ़ा ग्राफ
पंजाब में जनसंघ, जनता पार्टी और भाजपा के रूप में यह तीसरा पक्ष जब अकेले चुनाव लड़ता था तो इसे अधिकतर समर्थन नहीं मिलता रहा, मगर अकाली दल से गठबंधन के बाद यहां अकाली दल को मजबूती मिली, वहीं भाजपा को भी इसका बड़ा सियासी लाभ हुआ। इसके बाद कई बार भाजपा अकाली दल से किये समझौते के तहत तीन सीटों पर चुनाव लड़कर 3 सीटों पर भी जीत प्राप्त करती रही है।

 

चुनावी वर्ष विजयी सीट
1962  03
1967 01
1977 03
1989  01
1998   03
1999 01
2004 03
2009 01
2014  02


1977 के बाद बदलने लगी सियासी तस्वीर
पंजाब में जो भी पार्टी सत्ता में रही है, उसके कार्यकाल के दौरान विरोधी पक्ष स्वरूप उभर रही पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की है। मिसाल के तौर पर 1997 के दौरान बनी अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान 1999 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस 8 सीट लेने में सफल रही, जबकि 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान 2004 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान अकाली भाजपा गठबंधन 13 में से 11 सीटों पर शानदार जीत हासिल करने में सफल रहा। इसी तरह 2007 के दौरान फिर से अकाली भाजपा गठबंधन की सरकार में 2009 के दौरान हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस फिर से 8 सीटें हासिल करने में सफल रही, जबकि 2014 के दौरान पंजाब में बदले सियासी हालातों के दौरान जब रा’य में अकाली दल-भाजपा गठबंधन निरंतर दूसरी बार सत्ता पर राज कर रहा था तो उस समय पंजाब के लोगों ने अकाली दल को 4 सीटों पर जीत मिली, जबकि आप की झोली में 04 सीटें डाल दीं, जिससे कांग्रेस को सत्ता से बाहर होने के बावजूद 3 सीटों पर ही सबर करना पड़ा था। 

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