क्या विकास की रफ्तार का बोझ झेल पाएगा नया केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख?

Edited By Vaneet,Updated: 08 Aug, 2019 01:56 PM

ladakh will be able to bear the burden pace of development

संविधान का अनुच्छेद-370 हटने के बाद अब जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख 2 केंद्र शासित प्रदेश हो गए हैं..

जालंधर(सूरज ठाकुर): संविधान का अनुच्छेद-370 हटने के बाद अब जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख 2 केंद्र शासित प्रदेश हो गए हैं। केंद्र सरकार के इस कदम को बेशक पूरे देश ने सराहा है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि अब इन 2 हिस्सों में पर्यावरण से भारी छेड़छाड़ होगी। लद्दाख की बात करें तो यू.टी. में तबदील होने के बाद यहां की आबादी का बढ़ना तय है। कई उद्योग भी यहां लगाए जाएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक लद्दाख में ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में अनुमान है कि 2050 तक लद्दाख के अनगिनत गांवों को पानी के संकट की मार झेलनी पड़ेगी। देश के सबसे बड़े ऐतिहासिक फैसले के बाद एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उत्तरी हिमालयी इलाके में लद्दाख विकास की रफ्तार का बोझ झेल पाएगा?

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विकास लद्दाख के लोगों का हक है!
स्थानीय तौर पर हो रही विकासात्मक गतिविधियों के कारण भी लद्दाख के तापमान में बढ़ौतरी हो रही है जिससे लोगों को गर्मियों में पानी की कमी से जूझना पड़ता है। मौसम में इस बदलाव के कारण आने वाले समय में ठंडे इलाके के वन्य जीवों के विलुप्त होने का भी अनुमान है। लद्दाख को 6 अगस्त 2019 को बेशक नया जीवन मिला है। यहां के लोगों की संस्कृति भी अनूठी है। विकास की धारा का प्रवाह यहां की जनता तक पहुंचना जरूरी ही नहीं उनका हक भी है। पर इसके लिए लद्दाख के लोगों को खुद भी पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना पड़ेगा। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ गूंजने वाली लद्दाख की घाटी के पर्यावरण की रक्षा करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी तो है ही लेकिन स्थानीय जनता के सहयोग के बिना यह संभव भी नहीं है।

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नए केंद्र शासित प्रदेशों में पर्यावरण कानून लागू
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एन.सी.पी.) नेता और सांसद सुप्रिया सुले ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के बाद इसकी पर्यावरण सुंदरता पर सवाल उठाया तो जवाब में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘देश में पर्यावरण के लिए कानून है और अनुच्छेद-370 हटते ही वह लागू हो जाएगा।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘जम्मू और-कश्मीर धरती का स्वर्ग था, है और रहेगा।’’ जाहिर है कि अनुछेच्द-370 समाप्त हो चुका है और देश का पर्यावरण कानून भी वहां तत्काल प्रभाव से लागू हो चुका है। यह कानून जम्मू-कश्मीर के साथ लगते हिमाचल और उत्तराखंड के इलाकों में पहले से ही लागू है। 

विकास से कार्बन उत्सर्जन में होगी बढ़ौतरी
पर्यावरण के कानूनों का पालन न किया गया तो इस क्षेत्र में होने वाला जलवायु परिवर्तन मानव और वन्य जीवों की प्रजातियों के लिए घातक होगा। गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में केंद्र शासित प्रदेशों की तस्वीर तो साफ कर ही दी है कि यहां के लोगों को वे सभी सुविधाएं भी मिलेंगी जो देश के हर नागरिक को मिलती हैं। दूसरे राज्यों के लोग इन प्रदेशों में अब जमीन भी खरीद सकेंगे। बड़े-बड़े उद्योग, शिक्षण संस्थान और प्रशासनिक ढांचों के भवन भी यहां खड़े किए जाएंगे जिसके चलते कार्बन उत्सर्जन में बढ़ौतरी होगी। इससे स्थानीय इलाके में तापमान में बढ़ौतरी होगी और आस-पास के तेजी से पिघल रहे हिमखंडों का अस्तित्व पूरी तरह से खतरे में पड़ जाएगा। विकास की रफ्तार से किसी को कोई तकलीफ नहीं है, यदि यह सब योजनाबद्ध तरीके से पर्यावरण को ध्यान में रख कर किया जाए। यह सब तभी संभव हो पाएगा जब केंद्र सरकार इसके प्रति सजग होगी।  

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घास तक नहीं उग पा रही
करीब 3 लाख की आबादी वाला लद्दाख देश के सबसे चुनिंदा पर्यटन स्थलों में से एक है। पूरे विश्व में विख्यात इस पर्यटन स्थल पर लाखों की संख्या में टूरिस्ट हर साल यहां के खूबसूरत मठों, सतूपों और ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए आते हैं। इसी कारण पूर्व में पर्यावरण के कोई ठोस कानून न होने के चलते पिछले 3 दशकों से कचरे का बोझ काफी बढ़ गया है। स्थानीय लोगों की मानें तो करीब 3 दशक पहले यहां का मौसम समय के अनुसार चलता था। विश्व भर में हो रही विकासात्मक गतिविधियों के कारण वैश्विक तापमान में जो बढ़ौतरी हुई है, उसका असर लद्दाख में भी देखने को मिलता है। ग्लोबल वाॄमग के चलते यहां के आस-पास के हिमखंड तेजी से पिघल जाते हैं। फसलों की सिंचाई के लिए लोगों को पानी नहीं मिलता। ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ ज्यादा देर तक नहीं रह पाती जिसके चलते जमीन पर घास तक नहीं उग पाती।

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लेह में मोटर-गाडि़यों का प्रैशर और भवन निर्माण
पर्यटन स्थल होने के कारण लेह में मोटर-गाडिय़ों की संख्या में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है। बाहर से आने वाले पर्यटकों के कारण भी लेह में प्रदूषण काफी मात्रा में बढ़ता जा रहा है। गर्मियों में पर्यटक जगह-जगह पानी की बोतलें, खाद्य पदार्थों के खाली पैकेट फैंक देते हैं। सॢदयों में लोग ठंड से बचने के लिए रबड़ के टायर, पुराने कपड़े और प्लास्टिक जलाते हैं। पानी बचाने के लिए क्षेत्र में सूखे शौचालयों की भी परंपरा रही है जो अब आंशिक रूप में ही है। लेह में होटलों के निर्माण का सिलसिला लंबे अर्से से जारी है। यहां डीजल के जैनरेटरों का प्रयोग सेना सहित स्थानीय लोग लंबे अर्से से कर रहे हैं। घरों और होटलों के कचरे को ठिकाने लगाने की भी उचित व्यवस्था नहीं है।

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