आजादी मिलने के बाद भी 3 दिन तक पाकिस्तान का हिस्सा रहा था Punjab ये जिला

Edited By Kamini,Updated: 15 Aug, 2025 01:13 PM

gurdaspur was a part of pakistan for 3 days

1947 में भले ही पूरा देश 15 अगस्त को ब्रिटिश शासन से आजाद हो गया था लेकिन।

गुरदासपुर (हरमन/विनोद): 1947 में भले ही पूरा देश 15 अगस्त को ब्रिटिश शासन से आजाद हो गया था, लेकिन सरहदी जिला गुरदासपुर 17 अगस्त तक पाकिस्तान का हिस्सा बना रहा। भारत-पाकिस्तान के संभावित बंटवारे के लिए तैयार की गई योजना में इस जिले को पहले पाकिस्तान में शामिल किया गया था। इस फैसले के बाद 14 अगस्त को यहां पाकिस्तानी डिप्टी कमिश्नर सहित अन्य अधिकारियों की नियुक्ति भी हो गई थी और पाकिस्तानी अधिकारियों और मुस्लिम समुदाय ने यहां जश्न भी मनाया था। इतिहासकारों का दावा है कि लगभग 3 दिनों तक यहां पाकिस्तान का झंडा लहराता रहा था। बाद में, कूटनीतिक प्रयासों के बाद ही गुरदासपुर को भारत में शामिल किया जा सका।

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आजादी से पहले गुरदासपुर जिले की स्थिति

आजादी से पहले गुरदासपुर जिला देश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें गुरदासपुर, बटाला, पठानकोट और शकरगढ़ तहसीलें थीं। 1941 की जनगणना के अनुसार, उस समय गुरदासपुर जिले में मुस्लिम समुदाय की आबादी 51.14 प्रतिशत थी। इसी आधार पर इस जिले को पाकिस्तान को सौंपने का फैसला किया गया था।

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14 अगस्त को गुरदासपुर पहुंचे थे पाकिस्तानी डिप्टी कमिश्नर

15 अगस्त से पहले ही, संभावित बंटवारे के अनुसार, गुरदासपुर जिले का कार्यभार संभालने के लिए पाकिस्तान के डिप्टी कमिश्नर मुश्ताक अहमद चीमा यहां पहुंचे और जिले का चार्ज ले लिया। उनका नाम जिला मैजिस्ट्रेट के दफ्तर में लगे बोर्ड पर 14 अगस्त से 17 अगस्त 1947 तक तैनात डिप्टी कमिश्नर के रूप में दर्ज है। यह भी पता चला है कि उस समय नगर कौंसिल गुरदासपुर के अध्यक्ष एक मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने गुरदासपुर जिले के पाकिस्तान में शामिल होने की खुशी में जश्न भी मनाया था।

17 अगस्त को लाहौर रेडियो से हुआ था ऐलान

गुरदासपुर जिला 17 अगस्त तक पाकिस्तान का ही हिस्सा रहा। लेकिन इस दौरान देश के कूटनीतिज्ञों ने कई पहलुओं पर विचार किया। इस दौरान यह बात सामने आई कि अगर गुरदासपुर जिले को पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया जाता है तो माधोपुर हैडवर्क्स से अमृतसर तक का नहर सिस्टम कट जाएगा और यह इलाका पानी से वंचित हो जाएगा। साथ ही, जम्मू-कश्मीर को देश से जोड़ने का एकमात्र मुख्य सड़क मार्ग भी गुरदासपुर जिले से ही था। यदि गुरदासपुर जिला पाकिस्तान का हिस्सा बन जाता तो जम्मू-कश्मीर भी सीधे तौर पर देश से कट सकता था।

इसी तरह, कई अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार करने के बाद, दोनों देशों के कूटनीतिज्ञों ने कई समझौतों के बाद यह सहमति बनाई कि गुरदासपुर जिले की तत्कालीन चार तहसीलों में से रावी पार की शकरगढ़ तहसील पाकिस्तान का हिस्सा रहेगी, जबकि गुरदासपुर, बटाला और पठानकोट तहसील को भारत में शामिल किया जाएगा। उस समय भारत के बंटवारे का नक्शा तैयार करने वाले रेडक्लिफ कमीशन के चेयरमैन सर सिरिल रेडक्लिफ ने यह बदलाव किया और 17 अगस्त को लाहौर रेडियो से औपचारिक रूप से ऐलान करके गुरदासपुर जिले को भारत का हिस्सा बनाया गया। इसके बाद भारतीय डिप्टी कमिश्नर चनैय्या लाल ने गुरदासपुर जिले का कार्यभार संभाला।

3 दिन तक भयभीत रहे गुरदासपुर के ज्यादातर लोग

इससे पहले, गुरदासपुर जिले में रहने वाले हिंदू, सिख और अन्य समुदायों के लोग कापी मायूस और भयभीत थे। लेकिन जब उन्हें भारत में शामिल होने के बारे में पता चला, तो उन्होंने बड़ी राहत महसूस की। गुरदासपुर जिले को भारत में रखने का यह फैसला कई बार भारत के लिए फायदेमंद साबित हुआ है। माना जाता है कि अक्तूबर 1947 में जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला किया था, तो भारत ने गुरदासपुर के रास्ते ही कश्मीर को सेना और अन्य सामान सड़क मार्ग से भेजा था, जिसके कारण भारतीय सेनाएं कश्मीर को बचाने में सफल रहीं।

मुस्लिम समुदाय के लिए पनयाड़ में लगाया गया रिप्यूजी कैम्प

जब गुरदासपुर जिले को भारत का हिस्सा घोषित कर दिया गया, तो यहां रह रही लगभग 51 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को पाकिस्तान भेजा जाना था। इस समुदाय की सुरक्षा और अन्य सुविधाओं के लिए पनयाड़ में एक रिफ्यूजी कैम्प लगाया गया, जिसकी निगरानी के लिए भारतीय सेना को 24 घंटे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसी कैंप में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी आए थे। यह कैम्प कई महीनों तक चला और जब सभी मुस्लिम अपनी मर्जी से पाकिस्तान चले गए, तब इसे समाप्त किया गया। गुरदासपुर जिले के लिए यह घटनाक्रम बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण था, जिसके बारे में अब कुछ गिने-चुने इतिहासकारों और आम लोगों को ही जानकारी है, जबकि युवा पीढ़ी और बहुसंख्यक लोगों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

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