Edited By Kalash,Updated: 12 Apr, 2025 02:01 PM

जटिल न्यूरोलॉजिकल बीमारी का इलाज पहले से कहीं बेहतर कर दिया है।
चंडीगढ़ (पाल): पार्किंसन अब केवल एक उम्रदराज लोगों की बीमारी नहीं, बल्कि तेजी से बदलती जीवनशैली और जेनेटिक फैक्टर्स की वजह से युवाओं में भी दिख रही है। बीमारी की गंभीरता के बावजूद जेनेटिक टेस्टिंग, मिलेट्स आधारित डाइट और आधुनिक सर्जरी के जरिए इस जटिल न्यूरोलॉजिकल बीमारी का इलाज पहले से कहीं बेहतर कर दिया है।
जी.एम.सी.एच. के पूर्व न्यूरोलॉजिस्ट और एम्स से पास आऊट डॉ. निशित सावल ने बताया कि पार्किंसन के मुख्य इलाज एल-डोपा को अब लिक्विड फॉर्म में दिया जा रहा है, जिससे दवा का असर तेज और लंबे समय तक रहता है। इसके अलावा बाजरा (मिलेटस) आधारित डाइट भी दवा के अवशोषण में मददगार साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि यह खासतौर पर उन मरीजों के लिए उपयोगी है जो डीप ब्रेन सर्जरी नहीं करवा सकते। फ्रीजिंग ऑफ गेट जैसे लक्षणों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह दवाओं और डी. बी. एस. से नहीं सुधरते, लेकिन अब फोर्टिस अस्पताल ने डीप ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन तकनीक अपनाई है, जो ऐसे मामलों में राहत दे सकती है। वहीं एम. आर.आई.-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाऊंड को अभी शुरूआती दौर में बताया
बाजरे की डाइट से मिल रहा बड़ा फायदा
फोर्टिस अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. निशित सावल कहते हैं कि हमने देखा है कि एल-डोपा को लिक्विड फॉर्म में देने से इसका असर ज्यादा देर तक रहता है और यह उन मरीजों के लिए बेहद कारगर है जिनमें गोली का असर जल्दी खत्म हो जाता है। उन्होंने बताया कि मिलेट्स आधारित डाइट दवा के अवशोषण को बेहतर बनाती है क्योंकि इनमें कम प्रतिस्पर्धी अमीनो एसिड होते हैं। एल-डोपा के साथ सही डाइट उतनी ही जरूरी है जितनी खुद दवा, खासकर उन मरीजों के लिए जो डीप ब्रेन सर्जरी से डरते हैं या फिट नहीं है।
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